• ब्रह्मनिष्ठ संत श्री आशारामजी बापू का पावन जीवन तो ऐसी अनेक घटनाओं से परिपूर्ण है, जिनसे उनकी करुणा-उदारता एवं परदुःखकातरता सहज में ही परिलक्षित होती है ।
  • आज से 30 वर्ष पहले की बात है…
  • एक बार पूज्य श्री डीसा में बनास नदी के किनारे संध्या के समय ध्यान-भजन के लिए बैठे हुए थे । नदी में घुटने तक पानी बह रहा था । जख्मी पैर वाला एक व्यक्ति नदी पार अपने गाँव जाना चाहता था । पैर में भारी जख्म, नदी पार कैसे करे ! इसी चिंता में डूबा-सा दिखा । पूज्य श्री समझ गये और उसे अपने कंधे पर बैठाकर नदी पार करा दी । वह गरीब मजदूर दंग रह गया । साईं की सहज करुणा-कृपा भरे व्यवहार से प्रभावित होकर उस मजदूर ने कहा … ‘‘पैर पर जख्म होने से ठेकेदार ने काम पर आने से मना कर दिया है । कल से मजदूरी नहीं मिलेगी ।”
  • पूज्य बापूजी ने कहा … ‘‘मजदूरी न करना, मुकादमी करना । जा, मुकादम हो जा ।”
  • दूसरे दिन ठेकेदार के पास जाते ही उस मजदूर को उसने ज्यादा तनख्वाह वाली मुकादमी की नौकरी दे दी । किसकी प्रेरणा से दी, किसके संकल्प से दी यह मजदूर से छिपा न रह सका । कंधे पर बैठाकर नदी पार कराने वाले ने रोजी-रोटी की चिंता से भी पार कर दिया तो मालगढ का वह मजदूर प्रभु का भक्त बन गया ।
  • ऐसे अगणित प्रसंग हैं जब बापूजी ने निरीह, निसहाय जीवों को अथवा सभी ओर से हारे हुए, दुखी, पीड़ित व्यक्तियों को कष्टों से उबारकर उनमें आनंद, उत्साह भरा हो ।
  •  सीख ~ संतों का हृदय बडा दयालु होता है । जाने-अनजाने कोई भी जीव उनके सम्पर्क में आ जाता है तो उसका कल्याण हुए बिना नहीं रहता ।
  • संकल्प ~ ‘हम भी पूज्य बापूजी का ज्ञान जीवन में लायेंगे और दूसरों को भी सत्संग में लेकर आयेंगे ।