maa ke diye sanskar - vinoba bhave
  • विनोबा भावे की माँ रुक्मणी भावे भगवान के आगे हाथ जोड़कर प्रार्थना करती है :’अनंत ब्रम्हांड नायक प्रभु ! तू मेरे दोषों का शमन कर दे । मेरे प्यारे ! तू मुझे अपनी प्रीति दे दे ।’
  • इस प्रकार की पुकार करते-करते रुक्मणी का हृदय भीग जाता था । आंखें भी भीग जाती थी ।
  • इससे माँ को उन्नत हुई लेकिन नन्हा सपूत विनोबा माँ को देखते-देखते इतने बड़े संत बन गए कि गाँधीजी से भी दो कदम आगे की यात्रा विनोबा भावे की हुई ।
  • एक बार पत्रकारों ने विनोबाजी से पूछा :”आपको ईश्वर मिले हैं ? “नहीं।” “आप ईश्वर को चाहते हैं?” “नहीं” “आप ईश्वर को मानते हैं ?” “नहीं । मानना तो दूसरे को पड़ता है । चाहना तो दूसरे को होता है । ईश्वर तो मेरा आत्मा है। मैं ही ब्रह्म हूँ।”
  • ऐसा तो गांधीजी भी नहीं बोलते ! वे तो आपके गुरु थे ।
  • “गाँधीजी मेरे गुरु थे। ठीक है,वे ऐसा नहीं बोलते थे परंतु बाप के कंधे पर बेटा बैठता है तो बाप से भी ज्यादा दूर का देख सकता है ।
  • -जो ब्रह्मनिष्ठा गाँधीजी की नहीं हो सकी,वह माँ के द्वारा किए गए संस्कार-सिंचन से विनोबाजी ने कर दिखायी।
    ~ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2005