( क्या आप अपने बच्चों को हर प्राणी में…. हर वस्तु में…. ईश्वर को देखने का नजरिया देना चाहते हैं ???? तो उन्हें तुलसीदासजी की जयंती पर यह प्रसंग जरूर सुनाएं । )

संत तुलसीदासजी की प्रभुनिष्ठा……..

▪ संत तुलसीदासजी अरण्य में विचरण करने जा रहे थे । एक सुंदर, सुहावना वृक्ष देखकर वे उसकी छाया में बैठ गये और सोचने लगे :- ‘ प्रभु ! क्या आपकी लीला है ! आप कैसे फूलों में, फलों में निखरे हैं ! आपने वृक्ष के अंदर रस खींचने की कैसी लीला की है और कैसे रंग दे रखे हैं ! मेरे प्रभु ! आप कैसे सुहावने लग रहे हैं, मेरे रामजी ! ‘

▪ प्रभु की लीला देखते-देखते तुलसीदासजी आनंदित हो रहे थे । इतने में कोई लकड़हारा वहाँ से निकला और पेड़ पर चढ़कर धड़-धड़ करके वृक्ष काटने लगा । तुलसीदाजी घबराये और लकड़हारे के पास जाकर बोले :- भैया ! मैं तेरे पैर पकड़ता हूँ तू मेरे प्रभु को मत मार ।

लकड़हारे ने कहा :- ‘‘ महाराज ! मैं आपके प्रभु को तो कुछ नहीं कर रहा हूँ । “

तुलसीदाजी बोले :- ‘‘ नहीं, चोट तो पहुँच रही है । मुझे पेड़ नहीं…. पेड़ में मेरे प्रभु दिख रहे हैं । तू उनके इस रूप को न मार, चाहें मेरे इस शरीर को मार दे । मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ ।

लकड़हारा :- ‘‘ महात्मन् ! यह क्या हो गया है आपको ??? “

तुलसीदाजी :- ‘‘ देखो वे प्रभु कैसा सुंदर रूप लेकर सजे-धजे हैं और तुम उनके हाथ-पैर काट रहे हो । ऐसा न करो….मेरे हाथ काट लो । “

लकड़हारे का मन बदल गया और वह आगे चला गया………………………………….

▪ एक बार तुलसीदासजी यात्रा करते-करते किसी शांत वातावरण में बैठे थे । वहाँ से कभी हिरणों के झुंड गुजरते तो कभी अन्य प्राणियों के !! वहाँ से गुजर रहे हिरणों के झुंड को देखकर वे सोचने लगे :- ‘ प्रभु ! क्या आपकी लीला है !!! कैसी प्यारी-प्यारी आँखें हैं….. आपने कैसा निर्दोष चेहरा बनाया है….. मेरे रामजी !

तभी एक शिकारी तीर लेकर बारहसिंगे पर निशाना साध रहा था । तुलसीदासजी समझ गये ।

▪ शिकारी के पास गये और बोले :- ‘‘ यह क्या करता है ? मेरे ठाकुरजी, मेरे रामजी इतने सुंदर-सुंदर दिख रहे हैं । तू इनको न मार । भैया ! मारना है तो मुझे मार ।

…………..तो ये जो महात्मा लोग/ आत्मज्ञानी संत हैं……. वे तो तत्त्व में टिके हुए होते हैं लेकिन भाव से सब जगह – कीड़ी में, हाथी में, माई में, भाई में….. सबकी गहराई में परमेश्वर को देखते हैं ।

संतप्रवर तुलसीदासजी की वाणी है :- सीय राममय सब जग जानी । करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी ।।

संकल्प :- हम भी हर प्राणी की गहराई में छुपे हुए ईश्वर को निहारेंगे और सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करेंगे ।

प्रश्नोत्तरी :- लकड़हारे का मन कैसे बदल गया ?????