संयम [Sanyam] बड़ी चीज है। जो संयमी है, सदाचारी है और अपने परमात्म-भाव में है, वही महान बनता है । हे भारत के युवानों ! तुम भी उसी गौरव को हासिल कर सकते हो ।

चाहें बड़ा वैज्ञानिक हो या दार्शनिक, विद्वान हो या बड़ा उपदेशक, सभी को संयम की जररूत है । स्वस्थ रहना हो, सुखी रहना हो और सम्मानित रहना हो, सबमें ब्रह्मचर्य [Brahmacharya] की जरूरत है ।

ब्रह्मचर्य [Brahmacharya] बुद्धि में प्रकाश लाता है, जीवन में ओज तेज लाता है । जो ब्रह्मचारी रहता है वह आनंदित रहता है, निर्भीक रहता है, सत्यप्रिय होता है । उसके संकल्प में बल होता है, उसका उद्देश्य ऊँचा होता है और उसमें दुनिया को हिलाने का सामर्थ्य होता है । स्वामी रामतीर्थ, रमण महर्षि, समर्थ रामदास, भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज, स्वामी विवेकानंद आदि महापुरुषों को ही देखें । उनके जीवन में ब्रह्मचर्य था तो उन्होंने पूरी दुनिया में भारतीय अध्यात्म-ज्ञान का डंका बजा दिया था ।

यदि जीवन में संयम [Sanyam] को अपना लो, सदाचार को अपना लो एवं समर्थ सदगुरु का सान्निध्य पा लो तो तुम भी महान-से-महान कार्य करने में सफल हो सकते हो । लगाओ छलाँग…. कस लो कमर… संयमी बनो…. ब्रह्मचारी बनो और ‘युवाधन सुरक्षा अभियान’ के माध्यम से ‘दिव्य प्रेरणा-प्रकाश’ पुस्तक अपने भाई-बन्धुओं, मित्रों, पड़ोसियों, ग्रामवासियों, नगरवासियों तक पहुँचाओ । उन्हें भी संयम की महिमा समझाओ और शास्त्र की इस बात को चरितार्थ करो :

सर्व भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ।।

‘सभी सुखी हों, सभी नीरोगी हों, सभी सबका मंगल देखें और कोई दुःखी न हो ।’

– संत श्री आशारामजी बापू का बलप्रद संदेश

योग्यता विस्तार

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित ‘दिव्य प्रेरणा प्रकाश’ पुस्तक कम से कम 5 बार पढ़ें तथा अपने अन्य मित्रों को भी पढ़ने को दें ।