यूरोप के प्रतिष्ठित चिकित्सक भी भारतीय योगियों के कथन का समर्थन करते हैं। डॉ. निकोल कहते हैं- “यह एक भैषजिक और दैहिक तथ्य है कि शरीर के सर्वोत्तम रक्त से स्त्री तथा पुरुष दोनों ही जातियों में प्रजनन तत्त्व बनते हैं। शुद्ध तथा व्यवस्थित जीवन में यह तत्त्व पुनः अवशोषित हो जाता है। यह सूक्ष्मतम मस्तिष्क, स्नायु तथा मांसपेशीय उत्तकों (Tissues-कोशों) का निर्माण करने के लिए तैयार होकर पुनः परिसंचारण में जाता है। मनुष्य का यह वीर्य वापस ले जाने तथा उसके शरीर में विसारितत होने पर उस व्यक्ति को निर्भीक, बलवान, साहसी तथा वीर बनाता है। यदि इसका अपव्यय किया गया तो यह उसको स्त्रैण, दुर्बल तथा कृशकलेवर, कामोत्तेजनशील तथा उसके शरीर के अंगों के कार्यव्यापार को विकृत तथा स्नायुतंत्र को शिथिल (दुर्बल) करता है तथा उसे मिर्गी (मृगी) एवं अन्य अनेक रोगों और शीघ्र मृत्यु का शिकार बना देता है। जननेन्द्रिय के व्यवहार की निवृत्ति से शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक बल में असाधारण वृद्धि होती है।”