उरु प्रदेश में एक नर्तकी थी, जिसका नाम था मृदुला। वह इतनी खूबसूरत थी और उसकी नृत्य कला इतनी मोहक थी कि बड़े-बड़े मंत्री, सेनाधिकारी वगैरह भी उसके नृत्य के चाहक थे। उसका नृत्य और हास्य तो क्या, उसके नेत्रों के एक कटाक्षमात्र से भी अनेकों घायल हो जाते थे ! उसके सौंदर्य पर मुग्ध होकर इतने राजवी पुरुष वहाँ आते थे कि कभी-कभी तो उन्हें मृदुला से मिले बिना ही लौट जाना पड़ता था।

उसके रूप-लावण्य एवं नृत्य कला की प्रशंसा वहाँ के राजा करुष तक पहुँची । एक दिन राजा स्वयं मृदुला के पास आया। मृदुला ने देखा कि राजा खुद आये हैं वह सोचने लगी : अगर राजा ही नर्तकी के चक्कर में पड़कर विलासी हो जायेंगे तो प्रजा का तो सत्यानाश हो जाएगा…, फिर मेरे देश का क्या होगा ?’ भले, वह एक नर्तकी थी लेकिन देशभक्ति उसके अंदर कूट-कूटकर भरी हुई थी।

मृदुला : ‘राजन्! आप और मेरे जैसी, लोगों को विलासिता की खाई में धकेलनेवाली, लोगों की जिंदगी बर्बाद करने वाली एक तुच्छ नर्तकी के पास ?”

राजा : ”हे प्रिये तेरे सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर मैं खिंचा चला आया हूँ। तेरा रूप-लावण्य अप्सराओं को भी लज्जित करने वाला है। तू मेरी रानी से भी अधिक सुंदर है। अब दूसरी बातें छोड़ और मेरे साथ अपने भवन में चल।”

मृदुला : ”अगर आप जैसे प्रजापालक भी फिसलने लगे तो देश का क्या होगा, राजन ?”

राजा: ‘‘अब इन फालतू बातों में समय नष्ट न कर। मैं कुछ सुनना नहीं चाहता। मैं जो अभिलाषा लेकर आया हूँ उसे पूरी कर। इसी में तेरी भलाई है।”

राजा पर तो कामविकार हावी हो चुका था। चतुर मृदुला समझ गयी कि अब इन्हें समझाना मुश्किल है। उसने बात बदल दी।

मृदुला : ‘‘राजन् आप मेरे रूप-लावण्यव सौन्दर्य पर इतने मोहित हैं तो ठीक है। मैं आपके ही राज्य की एक नर्तकी हूँ, अबला हूँ। आपकी आज्ञा का उल्लंघन मैं कैसे कर सकती हूँ ? लेकिन उरु प्रदेश के सर्वेसर्वा ! मैं अभी रजोदर्शन में हूँ। स्त्री अगर रजस्वला हो और पुरुष उसे छुए तो पुरुष की बुद्धि, ओज, तेज और तंदुरुस्ती का नाश होता है, यह आप जानते ही हैं। इसलिए मेरे मासिक धर्म के पाँच दिन बीत जायें फिर मैं अपने रूप-लावण्य और सौन्दर्य को सजा-धजाकर चैत्य सरोवर पर आपसे मिलूंगी।”

मृदुला रजस्वला है यह जानकर राजा ने अपने-आपको सँभाला। अब उसके इंतजार में राजा का एक-एक दिन मानो एक-एक वर्ष के समान बीत रहा था। पहले तो उसने मृदुला के रूप लावण्य-सौन्दर्य के विषय में सुना था लेकिन अभी तो वह स्वयं देखकर आया था। राजा बस यही सोचता रहता कि ‘कब उसके पाँच दिन पूरे होंगे ?’ पाँच दिन पूरे हुए मानो पाँच साल बीत गये। छठे दिन राजा चैत्य सरोवर पर आया। उसे मृदुला तो मिली लेकिन जीवित नहीं, मृतावस्था में।

उसकी लाश के साथ एक चिट्ठी मिली, जिसमें लिखा था: ‘देश का राजा ही यदि एक नर्तकी के चक्कर में पड़कर विलासिता में डूब जायेगा तो देश पतन के गर्त में चला जायेगा। उसकी अपेक्षा एक नर्तकी की कुर्बानी को मैं अधिक अच्छा समझती हूँ। हालाँकि राजा को बचाने के लिए आत्महत्या जैसा घृणित पाप करने की अपेक्षा वह किसी संत-महात्मा की शरण में जाती तो उसे दूसरे अनेक सुंदर उपाय मिलते।