▣ विदेशों में बच्चों द्वारा हो रहे अपराधों में काफी वृद्धि हुई है। अपराध करने वाले बच्चों की आयु बहुत कम है लेकिन ये अपराध वैज्ञानिकों ( Criminologists ) को अभी से भयभीत और चिंतित कर रहे हैं । इनका अधिकतर समय गलियों में भटकने और हिंसात्मक टीवी कार्यक्रम देखने में गुजरता है।

➠  नॉर्थ-ईस्टर्न यूनिवर्सिटी के प्रसिद्ध ‘अपराध वैज्ञानिक’ जेम्स फॉक्स का कहना है कि- “कुछ वर्षों के बाद ये बच्चे ऐसे मानसिक रोगी बन जायेंगे जो आक्रामक, हिंसक और असामाजिक विचार व व्यवहार करने वाले तथा पश्चात्ताप एवं सहानुभूति की भावना से रहित होंगे। यदि इनको बंदूकें व नशीली दवाएँ प्राप्त हो जायेंगी तो ये अत्यंत खतरनाक साबित हो सकते हैं।”

➠ वेलेंटाइन डे की परम्परा को बढ़ाने वाले देशों की बाल-युवा पीढ़ी की दुर्दशा के बारे में प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के राजनीति के प्रोफेसर डिलुलियो कहते हैं: “ये बच्चे ‘नैतिक दरिद्रता’ में पलकर विकसित हुए हैं क्योंकि इनको माता-पिता, शिक्षकों, धर्मगुरुओं से यह ज्ञान नहीं मिला कि सही क्या है ? और गलत क्या है ? और उनका नि:स्वार्थ प्रेम नहीं मिला।”

▣ तबाही की ओर…

➠ कैथरीन मेयर ( पत्रकार, टाइम मैगजीन ) लिखती हैं : ‘हिंसात्मक अपराध,अविवाहित गर्भवती किशोरियाँ, शराब और नशीली दवाओं के व्यसन की महामारी युवाओं को तबाही की ओर ले जाने का भय दिखा रहीं हैं। अविवाहित गर्भवती किशोरियों व यौन संक्रमित रोगों में ब्रिटेन पूरे यूरोप में सबसे आगे है।’ किड्स कंपनी, जो लंदन के दरिद्रतम बच्चों की सेवा करने वाली एक संस्था है, की संस्थापक कैमिला कहती हैं : “यदि मैं सरकार में होती तो आतंकवादियों के बम से नहीं, इस ( टीनेज टाइम बम ) से चिंतित होती।” ( टीनेज = किशोर )

▣ इस ‘टीनेज टाइम बम को निष्क्रिय करने का उपाय क्या है ?

➠ प्रोफेसर डिलुलियो का कहना है कि “धार्मिक संस्थाओं को सुदृढ़ बनाया जाये जिससे बच्चों और युवाओं के जीवन में अच्छे संस्कार डाले जायें।” इसलिए यदि पूज्य बापूजी जैसे संतों-महापुरुषों द्वारा दिये जा रहे संस्कारों, शिक्षाओं का लाभ समाज लेगा तो ही यह ‘टीनेज टाइम बम’ निष्क्रिय हो सकेगा अन्यथा विदेशों की जो स्थिति है वही स्थिति भारत की भी हो सकती है।

➠ भारत में ऐसे ज्ञानी महापुरुष सिर्फ उपदेश ही नहीं देते बल्कि हजारों ‘बाल संस्कार केन्द्रों’ के द्वारा बच्चों में दिव्य संस्कारों का सिंचन भी करते हैं, ‘दिव्य-प्रेरणा-प्रकाश’ जैसी पुस्तकों के राष्ट्रव्यापी प्रचार के द्वारा युवा पीढ़ी को पाश्चात्य कुसंस्कारों की आँधी से चरित्रभ्रष्ट होने से बचाते भी हैं और युवा वर्ग को वेलेंटाइन-डे जैसी महामारी से बचाने के लिए ‘मातृ-पित पूजन दिवस’ जैसा अक्सीर इलाज भी बताते हैं-

❀ “१४ फरवरी को लड़के-लड़कियाँ एक-दूसरे को फूल देते हैं । एक-दूसरे को फूल देना, ‘मैं तुमसे प्रेम करता हूँ / करती हूँ….’ कहना बड़ी बेशर्मी की बात है। इसलिए लोफर-लोफरियाँ पैदा हो रहे हैं। यह गंदगी विदेश से आई है। इस विदेशी गंदगी से बचाकर हमें भारतीय संस्कृति की सुगंध से बच्चे-बच्चियों को सुसज्ज करना है ।”  – परम पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

~लोक कल्याण सेतु /फरवरी २०१४