पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

एक मिशनरी ने श्री रामकृष्ण परमहंस से पूछा : “आप माता काली के रोम-रोम में अनेक ब्रह्माण्डों की बातें करते हैं और उस छोटी-सी मूर्ति को काली कहते हैं, यह कैसे ?

इस पर परमहंसजी ने पूछा : “सूरज दुनिया से कितना बड़ा है ?”

मिशनरी ने उत्तर दिया : “नौ लाख गुना ।”

परमहंसजी : “तब वह इतना छोटा कैसे दिखायी देता है ?”

“नौ लाख गुना बड़ा होने पर भी सूरज हमसे दूर है। इसीलिए वह इतना छोटा दिखायी देता है ।”
“कितनी दूर ?”

“नौ करोड़ तीस लाख मील ।”

“ठीक इसी प्रकार आप माँ काली से इतनी दूर हैं कि आपको वे छोटी दिखायी देती है | मैं उनकी गोद में हूँ इसलिए मुझे वे बड़ी लगती हैं । आप स्थूल दृष्टि से पत्थर देखते हैं और मैं आस्था की सृष्टि शक्तिपुंज देखता हूँ ।”

सनातन धर्म में चाहे मूर्तिपूजा हो या शिखाबंधन,
यज्ञोपवीत संस्कार हो या अंतिम संस्कार सबके पीछे भारतीय ऋषियों की गहन खोज छुपी है।
स्थूल दृष्टि से देखकर जो उनकी गहराई में जाने की कोशिश नहीं करते,उन बेचारों को उनका रहस्य कैसे समझ में आ सकता है ?

लोक कल्याण सेतु/जुलाई-अगस्त २००६