गांधीजी की प्रेरणा से सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar vallabhbhai patel) आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। वे कुशल वक्तृत्व शैली, निडरता, किसानों के प्रति आत्मीयता, श्रेष्ठ संगठन – शैली इत्यादि गुणों से सम्पन्न थे।

गुजरात की बारडोली तहसील में भयंकर बाढ़ का प्रकोप हुआ। बाढ़ से पूरी तरह राहत भी नहीं मिल पायी थी कि अकाल ने आक्रमण कर दिया। किसानों के पास न बैल, न बीज। जोताई के बिना बोआई भी कैसे करते और कर (टैक्स) कैसे देते ?

बेरहम अंग्रेज शासन ने ऊपर से कहर बरसा दिया, ‘जो देर से कर जमा करेगा, उससे ३० प्रतिशत अधिक कर वसूल किया जायेगा।’ ऐसी स्थिति में किसान कहाँ जाये ! वे वल्लभभाई के पास पहँचे और अपनी व्यथा सुनायी।

सरदार दृढ़तापूर्वक बोले : “खूब सोच – समझ लो। सरकार का विरोद करेंगे तो सरकार भी आपको दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। यदि सरकार की हर यातना सहने को तैयार हो तो आओ, हम सब मिलकर अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध संघर्ष करें।”

किसान तैयार हो गये। उन्हें सरदार पटेल की दृढ़ता, चतुराई, गम्भीरता और नेतृत्व पर विश्वास था। सरदार ने नेतृत्व स्वीकार कर लिया। संघर्ष का बिगुल बज गया।

ऐलान कर दिया गया : ‘कोई किसान एक पाई भी लगान नहीं देगा।’

वल्लभभाई ने हर क्षेत्र में स्वयंसेवक भर्ती किये। सरकारी अधिकारियों की प्रत्येक गतिविधि की जानकारी प्राप्त करने के लिए गुप्तचर नियुक्त किये।

बम्बई (वर्तमान मुम्बई) के गवर्नर ने घोषणा कर दी : “सरकार किसान आंदोलन को दबाने के लिए हर सख्त कदम उठायेगी।” सरकार ने किसानों को धमकाने के लिए गुंडे भेजे। यह गुंडे मारपीट करते, परिवारों को लूटते बेइज़्ज़ती करते परंतु किसान नहीं झुके। इस कदम की असफलता पर सरकार ने लगान न जमा करनेवाले किसानों की संपत्ति को नीलाम करने की घोषणा की।

नीलाम करनेवाले अधिकारी जैसे ही किसी गाँव में आनेवाले होते, स्वयंसेवक बिगुल बजा देते। इससे किसान अपने घरों में ताला लगाकर जंगलों में भाग जाते। जब खरीदनेवाला कोई न होता तो नीलामी कैसे होती ? सरकार शहरों से जमीन खरीदनेवाले अमीर आदमी साथ लाने लगी। सरदार पटेल ने गाँववालो को कह दिया कि: “शहरों से आये अमीरों को कोई अन्न – पानी तक न दे। अवसर मिले तो उन्हें चेतावनी भी दे दो। ” सरकार नीलामी नहीं कर पायी।

जन-आंदोलन ने जोर पकड़ लिया और किसानों की विजय हुई। वल्लभभाई को तभी से ‘सरदार पटेल‘ (Sardar Patel) कहा जाने लगा। बारडोली के किसानों ने उनकी सराहना की एवं महान नेतृत्व – क्षमता के लिए उन्हें मानपत्र भेंट में दिया। परंतु सरदार बोले : “मानपत्र में आप लोगों ने जो कुछ कहा है, वह तो (सत्याग्रह के प्रेरक) गांधीजी और आप लोगों के लिए लागू होता है, मेरे लिए बच जाता है मानपत्र का कोरा कागज !” सरदार पटेल के व्यवहार में कितनी विनम्रता छलकती है !

स्वयं अमानी रहकर दूसरों को मान देनेवाला, दूसरों के काम आनेवाला, सूझबूझ का धनी, साधना और सत्संग के द्वारा बन जाता है। इन्हीं के द्वारा सत्यस्वरूप ईश्वर में विश्रांति पाकर मुक्तात्मा,महानात्मा बन जाता है, जीवनमुक्ति का परम सुख, परमानंद पाया जाता है, जन्म-मरण के चक्कर से पार हुआ जाता है।