स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) जब अमरीका की यात्रा से लौटे तो एक अंग्रेज पत्रकार ने भारत की गुलामी और गरीबी की हँसी उड़ाने की नीयत से व्यंग्य भरे स्वर में उनसे पूछाः ʹʹऐश्वर्य और वैभव विलास की रंगभूमि अमेरिका को देखने के बाद आपको अपनी मातृभूमि कैसी लगती है ?”

अंग्रेज पत्रकार ने सोचा कि विवेकानंद जी (Swami Vivekananda ji) अमेरिका की सम्पन्नता और चमक-दमक से प्रभावित हुए होंगे लेकिन उत्तर सुन उसे मुँह की खानी पड़ी।

विवेकानंद (Swami Vivekananda) जी ने उत्तर दियाः “अमेरिका जाने से पहले मैं अपने देश को प्यार करता था परंतु वहाँ से लौटने के बाद तो मैं इसकी पूजा करने लग गया हूँ। अध्यात्म, नैतिकता, जीवदया, कर्मफल सिद्धान्त पर विश्वास आदि ऐसी बाते हैं, जिन पर भारत अनादिकाल से आस्थावान है। भारत से बाहर इन बातों पर या तो विश्वास नहीं है या है तो उस रूप में नहीं जैसा भारत में उपलब्ध होता है। भारत अपनी इन आस्थाओं के कारण मेरे लिए पूज्य है।”

अपने सम्पर्क में आने वाले बच्चों को यह दृष्टान्त जरूर सुनाएँ ताकि उनमें देशभक्ति के संस्कार दृढ़ हों ।