A Short Story from Munshi Premchand’s biography in Hindi :

!! गुरु-सन्देश !!

“सच्चाई, निष्पक्षता एक अच्छे पत्रकार की पहचान है। अन्याय उजागर करना पत्रकारिता का धर्म है।”

➠ एक दिन ‘कलम सम्राट’ मुंशी प्रेमचंद उनके प्रांत के गवर्नर सर हेली के पत्र को पढ़कर थोड़े-से चिंतित हो गये क्योंकि उसमें लिखा था कि ‘आपकी लोकप्रियता को देखते हुए अंग्रेज सरकार आपको “राय साहब” का खिताब देना चाहती है ।’

➠ उनकी पत्नी को जब इस बात का पता चला तो वह ख़ुशी के मारे फूली न समायीं और हँसते हुए पूछीं : “ख़िताब के साथ कुछ और भी देंगे ?”

➠ मुंशी प्रेमचंद ने बुझी हुई आवाज में कहा :”हाँ ।”

“तो आप इतने दुःखी और परेशान क्यों हैं ?”

“मैं यह सम्मान स्वीकार नहीं कर सकता ।”

पत्नी ने आश्चर्य से पूछा :”क्यों ?”

“अब तक मैंने जनता के लिए लिखा है लेकिन ‘राय साहब’ बनने के बाद मुझे अंग्रेज सरकार के लिए लिखना पड़ेगा । मेरी कलम स्वतंत्र रूप से चलती है, किसी के दबाव में नहीं । कलम को किसी भी कीमत में बेचना मुझे स्वीकार नहीं है ।”

➠ इसके बाद उन्होंने सन्देश भिजवाया कि ‘मैं जनता की रायसाहबी तो ले सकता हूँ लेकिन अंग्रेज सरकार की नहीं ।’  प्रेमचंद का उत्तर पढ़कर गवर्नर स्तब्ध रह गया । बाद में जब प्रेमचंद उससे किसी आयोजन में मिले तो गवर्नर हेली ने सर झुकाकर उनके स्वाभिमान का सम्मान किया ।

❀ शिक्षा – धन्य हैं मुंशी प्रेमचंद, पंडित मदनमोहन मालवीय, योगी अरविंद जैसे भारत के सच्चे लेखक, पत्रकार जिन्होंने समाज के समक्ष केवल सच्चाई उजागर करने के लिए, समाज के हित में अपनी कलम चलायी, उसे कदापि बेचा नहीं ।

➠ यह वास्तविकता है कि पत्रकारिता में वे लोग ही चिरकाल तक आदरणीय व स्मरणीय रहते हैं, जो अपना ईमान कभी नहीं बेचते ।

धिक्कार है उनको, जो निर्दोष संतों पर लांछन लगाते हैं !!!

~ लोक कल्याण सेतु/अप्रैल २०१४