[Short Story From Life of Vinayak Damodar Savarkar in Hindi]

एक बालक का विद्यालय जाने से पहले अपनी माँ के चरणस्पर्श करने का नियम था ।

एक दिन जल्दी जल्दी में वह माँ के चरणस्पर्श किये बिना ही विद्यालय के लिए निकल गया । रास्ते में उसे आचनक स्मरण हुआ कि ‘आज तो मैं माँ के चरणस्पर्श करना भूल गया!’ पलभर भी बिना कुछ सोचे-विचारे वह अपनी भूल सुधारने के लिए घर की ओर लौटने लगा ।

उसके मित्रों ने उसकी हँसी उड़ायी और बोले :”अरे !एक दिन माँ के पैर नहीं छुए तो क्या हो गया,कौन-सा पहाड़ टूटनेवाला है ! और पैर छूने के चक्कर में अगर समय पर विद्यालय में नहीं पहुँचोगे तो जरूर दंड मिलेगा ।”

बालक बोला :”दंड से बचने के लिए भूल न सुधारना अपनी अंतरात्मा को दबाना होगा ! क्या विद्यालय के दंड से यह कर्तव्यपलायनता का दंड अधिक कष्टकर न होगा ?”

सभी मित्र अवाक् रह गये । वह दृढ़निश्चयी बालक दंड की परवाह किये बिना घर पहुँचा,माँ के चरणस्पर्श करके क्षमा माँगी और फिर विद्यालय गया ।

उस दिन उस बालक को अपना कर्तव्य पूरी दृढ़ता और निष्ठा से निभाने के कारण विशेष आनंद व आत्मविश्वास का अनुभव हुआ । जानते हैं वह बालक कौन था ?
यह वही बालक था जो आगे चलकर भारत के महान स्वतंत्रता-सेनानी विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) यानी वीर सावरकर के नाम से विख्यात हुआ ।

शिक्षा – माता-पिता व गुरु को प्रणाम करना,उनका आदर-सम्मान व आज्ञापालन करना – ये ऐसे सद्गुण हैं जो व्यक्ति को महानता की ऊँचाइयों पर पहुँचा देते हैं ।