• प्राचीनकाल में तिब्बत के कालियांग प्रांत में वानचुंग नामक बुद्धिमान व्यक्ति अपने पुत्र सानचुंग के साथ रहता था । वहाँ के राजा ने नियम लागू किया था कि ‘जब आदमी बूढा हो जाय और कामकाज न कर सके तो उसे पहाड़ पर ले जाकर छोड़ दिया जाय । कुछ समय बाद वह भूख-प्यास से मर जाता था ।
  • जब वानचुंग बूढा हो गया तो नियमानुसार सानचुंग मजबूरन पिता को अपनी पीठ पर लादकर पहाड़ पर ले जा रहा था परंतु पिता को चिंता सता रही थी कि कहीं पुत्र लौटते समय राह न भटक जाय । इसलिए पीठ पर बैठे- बैठे ही वह रास्ते के पेडों की फूल-पत्तियाँ तोड़-तोड़कर जमीन पर गिराता गया ताकि बेटा उनको देखता-देखता सकुशल घर लौट सके । पिता का प्यार देखकर सानचुंग की आँखों में आँसू आ गये । घर वापस आकर वह दुःखी रहने लगा ।
  • एक दिन राजा ने घोषणा करवायी कि ‘जो व्यक्ति राख की रस्सी बनाकर लायेगा उसे पुरस्कार दिया जायेगा । सानचुंग ने जाकर पिता को यह बात बतायी । पिता ने यह सोचकर कहा : ‘‘बेटा ! यह कोई कठिन काम नहीं है । एक खूब कसी हुई रस्सी बनाओ और उसे एक तख्ते पर रखकर जला दो तो राख की रस्सी तैयार हो जायेगी । सानचुंग ने ऐसा ही किया । रस्सी देख राजा बड़ा खुश हुआ और बहुत सारा धन उसे दिया ।
  • कुछ समय बाद राजा ने सानचुंग को एक ऐसा ढोल बनाने को कहा जो बिना बजाये बजने लगे । उसने जाकर अपने पिता को सारी बात बतायी । वानचुंग ने एक ढोल मँगवाकर उसके अंदर मधुक्खियों सहित एक छत्ता डाल दिया और ऊपर से चमड़ा मढ़ दिया । फिर बोला : ‘‘बेटा ! इसे आराम से ले जाओ और राजा के सामने जाकर थोड़ा हिला देना ।
  • बेटे ने ऐसा ही किया । ढोल के हिलने-डुलने से मधुक्खियाँ इधर-उधर उड़ीं और ढोल के चमड़े से जा टकरायीं,जिससे ढोल अपने आप बजने लगा ! यह करामात देख राजा खुश हो गया और इनाम देकर उससे पूछा : ‘‘तुमने यह युक्ति कैसे खोजी ?”
  • सानचुंग सारी बात सही-सही बताते हुए अंत में बोला : ‘‘मैं अपने पिता से बहुत प्यार करता हूँ इसलिए उनसे अलग नहीं रह सकता । यह कहते-कहते वह रो पडा । वृद्ध वानचुंग की समझदारी व तरकीब से राजा बहुत प्रभावित हुआ और बोला : ‘‘मुझे आज पता चला कि बुजुर्ग लोग वास्तव में बुद्धिमान व अनुभवी होते हैं । आज से बूढ़े लोगों को पहाड़ पर भेजने की प्रथा हमेशा के लिए खत्म की जाती है । अब सभी लोग वृद्ध माता-पिता की सेवा करेंगे, उन्हें अपने साथ रखेंगे ।”
  • इस तरह से एक पितृभक्त पुत्र के सच्चे प्रेम व उसकी समझदारी के कारण पूरे प्रांत में फैली कुप्रथा सदा के लिए समाप्त हो गयी ।
  • सीख : गुरु और माता-पिता बच्चों के सच्चे हितैषी होते हैं । ये तीनों जीवन में आनेवाली कठिनाइयों व समस्याओं का सहज में ही हल निकाल देते हैं । जो उनका आदर-सत्कार तथा सेवा-पूजा करता है, वह उनकी प्रसन्नता पा लेता है और जीवन-संग्राम में सफल हो जाता है ।
    बाल संस्कार पाठ्यक्रम : प्रथम सप्ताह, फरवरी