अम्मा जी ने बालक आसुमल (Balak Asumal) को लाड़-प्यार देने के साथ उनमें भक्ति के संस्कारों का सिंचन कर दिया ।

बाल्यावस्था (Childhood) में ही उनके चेहरे पर विलक्षण कांति तथा नेत्रों में अद्भुत तेज था । अम्मा जी उनको ठाकुर जी की मूर्ति के सामने बिठा देतीं व कहतीं : “बेटा ! भगवान की पूजा और ध्यान करो। प्रसन्न होकर वे तुम्हें प्रसाद देंगे।”

बापूजी ऐसा ही करते और अम्माजी अवसर पाकर चुपचाप उनके सम्मुख मक्खन-मिश्री रख जातीं। जब वे आँखे खोलकर प्रसाद देखते तो प्रभुप्रेम में पुलकित हो उठते थे ।

उन दिनों बापू जी की बड़ी बहनें खिम्मी और किस्सी बालसुलभ चपलता से बोलती थीं :”आसु ! यह प्रसाद तो अम्मा ने रखा है, भगवान ने नहीं रखा है ।”

तो भी आसुमल जी को उनकी बातों पर विश्वास नहीं होता और अम्मा जी की बात को सच मानते थे ।

अम्माजी अपनी दोनों बेटियों को डाँटती थीं कि “क्यों तोड़ती हो उसका विश्वास ? इस बहाने उसे भक्ति का रंग लगेगा।”

दे दे मक्खन मिश्री कूजा
माँ ने सिखाया ध्यान और पूजा।।

सभी माताओं को ऐसे युक्तियों से अपने बच्चों में भक्ति के संस्कार (Sanskar) डालने चाहिए। अम्माजी सत्संग सुनने जातीं और आकर अपने सुपुत्र आसुमल को सुनातीं तथा उन्हें भी सत्संग में ले जाती थीं। सत्संग के संस्कारों से बालक आसुमल कितने महान संत बने !