मेवाड़ के महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह की कन्या का नाम था किरण देवी। अकबर शक्तिशाली सम्राट अवश्य था किंतु उतना ही विलासी भी था। 

उसने ʹखुशरोज मेराʹ की एक प्रथा निकाली, जिसमें स्त्रियाँ जाया करती थीं। पुरुषों को जाने की अनुमति नहीं थी परंतु इस मेले में अकबर स्त्री वेश में घूमा करता था। जिस सुंदरी पर वह मुग्ध हो जाता, उसे उसकी कुट्टिनियाँ फँसाकर राजमहल में ले जाती थीं।

एक दिन खुशरोज मेले में किरण देवी आयी। अकबर के संकेत से उसकी कुट्टिनियों ने किरण देवी को धोखे से अकबर के महल में पहुँचा दिया। किरण देवी के सौंदर्य को देखकर विषांध अकबर की कामवासना भड़की। 

ज्यों ही उसने किरण देवी को स्पर्श करने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, त्यों ही उसने रणचंडी का रूप धारण कर लिया और अपनी कमर से तेज धारवाली कटार निकाली तथा अकबर को धरती पर पटककर उसकी छाती पर पैर रख के बोलीः “नीच ! नराधम ! भगवान ने सती-साध्वियों की रक्षा के लिए तुझे बादशाह बनाया है और तू उन पर बलात्कार करता है ? दुष्ट ! अधम ! तुझे पता नहीं मैं किस कुल की कन्या हूँ ? 

महाराणा प्रताप के नाम से तू आज भी थर्राता है। मैं उसी पवित्र राजवंश की कन्या हूँ। मेरे अंग-अंग में पावन भारतीय वीरांगनाओं के चरित्र की पवित्रता है।
अगर तू बचना चाहता है तो प्रतिज्ञा कर कि अब से खुशरोज मेला नहीं लगेगा और किसी भी नारी की आबरू पर तू मन नहीं चलायेगा। नहीं तो आज इसी तेज धार की कटार से तेरा काम तमाम किये देती हूँ।”

अकबर के हाथ थरथर काँपने लगे ! उसने हाथ जोड़कर कहाः “माँ ! क्षमा कर दो। मेरे प्राण तुम्हारे हाथों में हैं, पुत्र प्राणों की भीख चाहता है। अब से खुशरोज मेला कभी नहीं लगेगा।”
दयामयी किरण देवी ने अकबर को प्राणों की भीख दे दी ! 

कैसा था किरण देवी का शौर्य ! हे भारत की देवियो ! आपमें अथाह शौर्य है, अथाह सामर्थ्य है, अथाह बल है। जरूरत है केवल अपनी सुषुप्त शक्तियों को जगाने की।
☑जवाब दें और जीवन में लायें।
किरणदेवी ने अकबर की छाती पर पैर रखकर क्या सीख दी ?
ʹहममें पावन भारतीय वीरों एवं वीरांगनाओं के चरित्र की पवित्रता है।ʹ – टिप्पणी लिखें।