निरन्तर परिश्रम (Parishram) करते रहने का संदेश देती हुई यह कहानी बच्चों को जरूर सुनाएँ।

एक दिन अपने शिष्यों की परीक्षा लेने की इच्छा से महात्मा नित्यानंदजी (Swami Nityananda ji) ने अपने सभी शिष्यों को बुलाकर कहा : ‘‘आश्रम की सफाई हेतु आप ये बाल्टियाँ ले जाकर नदी से पानी ले आओ।’’

बाँस की बाल्टियों को देखकर सभी शिष्यों को आश्चर्य हुआ, वे एक-दूसरे की तरफ देखने लगे कि इन बाल्टियों से पानी कैसे लाया जा सकता है ! फिर भी सभी शिष्य बाल्टियाँ उठाकर नदी-तट पर पानी भरने गये । जब वे बाल्टियाँ भरते तो सारा जल निकल जाता ।

अंततः सारे शिष्य निराश हो गये व अपनी सेवा छोड़कर लौट आये तथा गुरुजी को अपनी दुविधा बतायी परंतु एक शिष्य तो जल भरने की सेवा में लगा ही रहा । वह जल भरता और जल रिसता तो पुनः भरने लगता । गुरुजी अन्य शिष्यों से वह क्या कर रहा है, इसकी जानकारी ले रहे थे ।

शाम होने तक वह इसी प्रकार करता रहा । इसका परिणाम यह हुआ कि बाँस की शलाकाएँ फूल गयीं और छिद्र बंद हो गये । तब वह बहुत प्रसन्न हुआ और बाल्टी में जल भरकर गुरुजी के पास पहुँचा । उसे देखकर गुरुजी का हृदय प्रसन्न हो गया ।

अन्य शिष्यों को सम्बोधित करते हुए गुरुजी ने कहा :
‘‘विवेक, धैर्य, निष्ठा,ईमानदारी व सातत्य से दुर्गम कार्य भी सुगम हो जाता है । असम्भव कुछ नहीं, सब सम्भव है।”

संकल्प : “हम भी निरन्तर अभ्यास करते रहेंगे।”