भगवान बुद्ध (Lord Buddha) की जीवन-काल का एक प्रसंग है….. :

भगवान बुद्ध (Lord Buddha)  भिक्षा के लिए निकले तब एक माई ने उनको आमंत्रित किया : “आइए,महाराज !”

बुद्ध के आने पर उसने अपने रूप-लावण्य,लटके-झटके से बुद्ध को आकर्षित करना चाहा और कहा :”भिक्षा में मैं आपको क्या दूँ ? मैं अपने आप को ही समर्पित करना चाहती हूँ। आप मेरे स्वामी और मैं आपकी दासी हूँ।”

बुद्ध (Lord Buddha) : तेरी सब बातें मुझे स्वीकार है लेकिन अभी समय नहीं है। अभी मुझे जरा जल्दी है। यह सुंदर-सुहावना फल है। इसको संभालकर रख । मैं आऊँगा,यह वचन देता हूँ। लेकिन तुम इस फल को संभालकर रखना ।

कुछ सप्ताह के बाद बुद्ध आए और बोले : “मैंने वचन दिया था,मैं आ गया । पहले मेरा प्यारा खूबसूरत फल लाओ।”

महिला :”महाराज ! हद हो गई ! वह पका हुआ सुंदर, प्यारा फल दूसरे-तीसरे दिन बासी हो गया और जैसे बुढ़ापे में शरीर पर झुर्रियां पड़ जाती हैं वैसी ही दशा उस फल की हो गई चौथे-पाँचवे दिन फल बदबू मारने लगा। फिर भी एक सप्ताह तक मैंने सँभाला। आखिर फेंके बिना कोई चारा न था,अतः मैंने फेंक दिया।

बुद्ध (Lord Buddha)  : “इतना तुम समझ गयी इतना सुंदर फल भी समय की धारा में बासी होकर सड़ गया।ऐसे ही शरीर का सौंदर्य भी उस फल जैसा नहीं है क्या ?
ऐसा ही तो तुम्हारा-मेरा पंचभौतिक शरीर है । इन शरीरों से भोग-भोगकर एक-दूसरे का विनाश करना,क्या यही जीवन है या जीवन कुछ और है ?”

बुद्ध की वाणी सुनकर उस महिला का हृदय परिवर्तित हो गया। वह भंते के चरणों में गिर पड़ी एवं जीवन का सही मार्ग बताने के लिए प्रार्थना करने लगी।

बुद्ध (Lord Buddha) के सत्संग से उसकी मलिन भावना बदल गयी, मानसिक मलीनता नष्ट हो गयी,शारीरिक दोष भी नष्ट हो गये और वह एक श्रेष्ठ साध्वी बन गयी ।

हे भारत की नारियों ! हे भारत के नवयुवकों ! तुम भी अपने जीवन को संयमी,ओजस्वी-तेजस्वी बनाने का यत्न करो । महापुरुषों के सान्निध्य से, सत्संग से, उनके सत्शास्त्रों से ‘युवाधन सुरक्षा’ की युक्तियाँ जान लो एवं अपने जीवन को भी संयमी,ओजस्वी-तेजस्वी बनाओ। आपका जीवन भी धन्य हो जायेगा और भारत की नींव भी सुदृढ़ हो जायेगी।
आज पाश्चात्य अंधानुकरण, भोग-विलास और वैमनस्य के प्रभाव से हमारे देश की युवा पीढ़ी कमजोर होती जा रही है, उसकी नींव खोखली होती जा रही है…
सावधान !!! षड्यंत्रकारियों का जाल विफल कर दो….. जागो, स्वयं भी चेतो,औरों को भी चेताओ । भारत का भविष्य सुदृढ़ एवं मजबूत करो और यह तुम कर सकते हो…!!