“रूचि, लगन और एकाग्रता से निरंतर अभ्यास द्वारा कोई भी आदमी महान बन सकता है ।” -परम पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

विश्वविख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन (Albert Einstein) बचपन में पढ़ने में कमजोर थे । उनकी इस कमजोरी का उनके साथी मजाक उड़ाया करते थे।

एक दिन उन्होंने अध्यापक से गम्भीरतापूर्वक पूछा :-“क्या मैं किसी प्रकार महान बन सकता हूँ ?”

अध्यापक : “रूचि, लगन और एकाग्रता से निरंतर अभ्यास द्वारा कोई भी आदमी महान बन सकता है ।”

यह शिक्षा मानो आइंस्टीन के लिए महामंत्र थी । उन्होंने इसे मन में बैठाया और दृढ़ संकल्प के साथ अध्ययन में जुट गये । रूचि और लगन के लिए एकाग्रता का धन कमाने के लिए आइंस्टीन ने भारतीय योग-पद्धति का आश्रय लिया और पूरा विश्व जानता है कि उन्होंने “अणु विज्ञान पुरोधा” और “सापेक्षवाद के जनक” के रूप में ख्याति प्राप्त की।

यदि आइंस्टीन (Albert Einstein) जैसे जिज्ञासु व प्रयत्नशील विद्यार्थी को किन्हीं ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु का मार्गदर्शन व दीक्षा-शिक्षा मिलती तो ऐसा व्यक्ति आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके सर्व से ऊँचा आत्मपद पाकर मुक्तात्मा, ब्रह्मवेत्ता, ब्रह्मस्वरूप हो सकता था।

शिक्षा : विद्यार्थियों को अध्ययनकाल में आत्मज्ञानी महापुरुषों की शिक्षा-दीक्षा का लाभ अवश्य लेना चाहिए। उनके बताये
एकाग्रता, लगन, उत्साह एवं कार्य में रूचि बढ़ाने के प्रयोगों का लाभ लेकर अपने जीवन का सर्वांगीण विकास करना चाहिए । इससे विद्यार्थी व्यवहार- जगत एवम् दिव्य आत्मिक अनुभव दोनों क्षेत्रों में बाजी मार लेता है ।

~लोक कल्याण सेतु/अप्रैल २०१४