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अलख पुरुष की आरसी, साधु का ही देह ।
लखा जो चाहे अलख को, इन्हीं में तू लख लेह ॥

  • किसी भी देश की सच्ची संपत्ति संतजन ही होते हैं । वे जिस समय अविर्भूत होते हैं, उस समय के जन समुदाय के लिए उनका जीवन ही सच्चा पथ-प्रदर्शक होता है । एक सिद्ध संत तो यहाँ तक कहते हैं कि भगवान के दर्शन से भी अधिक लाभ भगवान के चरित्र सुनने से मिलते हैं और भगवान के चरित्र सुनने से भी ज्यादा लाभ सच्चे संतों के जीवन चरित्र पढ़ने-सुनने से मिलते हैं ।
  • वस्तुतः विश्व के कल्याण के लिए जिस समय जिस धर्म की आवश्यकता होती है, उसका आदर्श उपस्थित करने के लिए स्वयं भगवान ही तत्कालीन संतों के रूप में नित्य अवतार लेकर आविर्भूत होते हैं । वर्तमान युग में यह दैवी कार्य जिन संतों द्वारा हो रहा है, उनमें एक लोकलाडले संत हैं अमदावाद (गुज.) के श्रोत्रिय, ब्रह्मनिष्ठ योगीराज परम पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ।
  • बापूजी इतनी ऊँचाई पर अवस्थित हैं कि शब्द उन्हें बाँध नहीं सकते । जैसे विश्वरूप दर्शन मानव-चक्षु से नहीं हो सकता, उसके लिए दिव्य दृष्टि ही चाहिए और जैसे विराट को नापने के लिये वामन का नाप बौना पड़ जाता है, वैसे ही पूज्य बापूजी के विषय में कुछ भी लिखना मध्याह्न के देदीप्यमान सूर्य को दीपक दिखाने जैसा ही होगा । फिर भी अंतर में श्रद्धा प्रेम व साहस जुटाकर गुहा ब्रह्मविद्या के इन मूर्तिमंत स्वरूप की जीवन-झाँकी प्रस्तुत करने का हम एक विनम प्रयास कर रहे हैं ।

Sant Shri Asharam Ji Bapu Intro (जन्म परिचय)

  • संत श्री आशारामजी बापू का जन्म अखण्ड भारत के सिंध प्रान्त के नवाबशाह जिले में सिंधु नदी के तट पर बसे बेराणी गाँव में नगरसेठ श्री थाऊमलजी सिरुमलानी के घर दिनांक 17 अप्रैल 1937 तदनुसार विक्रम संवत् 1994 को चैत्र वद षष्ठी “(हिन्दी माह अनुसार वैशाख कृष्ण पक्ष छः) के दिन हुआ था । पूज्यश्री की पूजनीया माताजी का नाम महँगीबा है। नामकरण संस्कार के दौरान आपका नाम आसुमल रखा गया था ।

भविष्यवेत्ताओं की घोषणाएँ

बाल्यावस्था से ही आपश्री के चेहरे पर विलक्षण कांति तथा नेत्रों में एक अद्भुत तेज था । आपकी विलक्षण क्रियाओं को देखकर अनेक लोगों तथा भविष्यवेत्ताओं ने यह भविष्यवाणी की थी कि ‘यह बालक पूर्व का अवश्य कोई सिद्ध योगी पुरुष है, जो अपना अधूरा कार्य पूरा करने के लिए ही अवतरित हुआ है । निश्चित ही यह एक अत्यंत महान संत बनेगा… और आज वही भविष्यवाणी अक्षरशः सत्य सिद्ध हो रही है ।

Asharam Ji Bapu Childhood

  • संतश्री का बाल्यकाल संघर्षों की एक लम्बी कहानी है । सन् 1947 में आपका परिवार देश विभाजन की विभीषिका को सहन कर भारत के प्रति अत्याधिक प्रेम होने के कारण अपनी अथाह चल-अचल सम्पत्ति को छोड़कर भारत के अमदावाद शहर में आ पहुँचा । अपना धन-वैभव सब कुछ छूट जाने के कारण वह परिवार आर्थिक विषमता के चक्रव्यूह में फँस गया लेकिन आजीविका के लिए किसी तरह से पिताश्री थाऊमलजी द्वारा लकड़ी और कोयले का व्यवसाय आरम्भ करने से आर्थिक परिस्थिति में सुधार होने लगा । तत्पश्चात् शक्कर का व्यवसाय भी आरम्भ हो गया ।

पूज्य संत श्री आशारामजी बापू की पद्ममय संक्षित जीवनगाथा : श्री आशारामायण पढ़ें, सुने अथवा विडियो झाँकियों के साथ Video में देखें

Asharam Bapu Ji Education [School Life]

  • बापूजी की प्रारम्भिक शिक्षा सिन्धी भाषा से आरम्भ हुई । तदनन्तर सात वर्ष की आयु में प्राथमिक शिक्षा के लिए आपको जयहिन्द हाईस्कूल, मणिनगर (अमदावाद) में प्रवेश दिलवाया गया । अपनी विलक्षण स्मरणशक्ति के प्रभाव से आप शिक्षकों द्वारा सुनायी जाने वाली कविता, गीत या अन्य अध्याय तत्क्षण पूरा-का-पूरा हूबहू सुना देते थे । विद्यालय में जब भी मध्याह्न की छुट्टी होती, बालक आसुमल खेलने-कूदने या गपशप में समय न गँवाकर एकांत में किसी वृक्ष के नीचे ईश्वर के ध्यान में बैठ जाते थे ।
  • चित्त की एकाग्रता, बुद्धि की कुशाग्रता, नम्रता, सहनशीलता आदि गुणों के कारण बालक का व्यक्तित्व पूरे विद्यालय में मोहक बन गया था । आप अपने पिता की लाडले संतान थे । अतः पाठशाला जाते समय पिताश्री आपकी जेब में पिस्ता, बादाम, काजू, अखरोट आदि भर देते थे, जिसे आप स्वयं भी खाते एवं प्राणिमात्र में आपका मित्रभाव होने से परिचित-अपरिचित सभी को खिलाते थे । पढ़ने में आप बड़े मेधावी थे तथा प्रतिवर्ष प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण होते थे, फिर भी इस सामान्य विद्या का आकर्षण आपको कभी नहीं रहा ।
  • लौकिक विद्या, योगविद्या और आत्मविद्या ये तीन विद्याएँ हैं लेकिन आपका पूरा झुकाव योगविद्या व आत्मविद्या की तरफ ही रहा । आज तक सुने गये जगत के आश्चर्यों को भी मात कर दे, ऐसा यह आश्चर्य है कि तीसरी कक्षा तक पढ़े हुए बापूजी के आज एम.ए. व पीएच.डी. पढ़े हुए तथा लाखों प्रबुद्ध मनीषी भी शिष्य बने हुए हैं ।

Asharam Ji Bapu Family Details

  • माता-पिता के अतिरिक्त बालक आसुमल के परिवार में एक बड़े भाई तथा दो बड़ी एवं एक छोटी बहनें थीं । बालक आसुमल को माताजी की ओर से धर्म के संस्कार बचपन से ही दिये गये थे । माँ आपको ठाकुरजी की मूर्ति के सामने बिठा देतीं और कहतीं :
  • “बेटा ! भगवान की पूजा और ध्यान करो । इससे प्रसन्न होकर वे तुम्हें प्रसाद देंगे।” आप ऐसा ही करते और माँ अवसर पाकर आपके सम्मुख चुपचाप मक्खन-मिश्री रख जातीं… बालक आसुमल जब आँखें खोलकार प्रसाद देखते तो प्रभु-प्रेम में पुलकित हो उठते थे ।
  • घर में रहते हुए भी बढ़ती उम्र के साथ-साथ आपकी भक्ति भी बढ़ती ही गयी । प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर ठाकुरजी की पूजा में लग जाना आपका नियम था ।

माँ महँगीबा ने बालक आसुमल के अंदर बोये प्रभु प्रीति के संस्कार : पूरा प्रसंग पढ़ें

  • भारत-पाक विभाजन की भीषण आँधियों में अपना सब कुछ लुटाकर यह परिवार अभी ठीक ढंग से उठ भी नहीं पाया था कि दस वर्ष की कोमल वय में बालक आसुमल को संसार की विकट परिस्थितियों से जूझने के लिए परिवार सहित छोड़कर पिता श्री थाऊमलजी देहत्याग कर स्वधाम चले गये ।
  • पिता के देहत्याग उपरांत आसुमल को पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी । उस समय आप चौथी कक्षा के विद्यार्थी थे । पढ़ाई छोड़कर छोटी-सी उम्र में ही कुटुम्ब को सहारा देने के लिए पिता का धंधा सँभाला फिर स्वजन के यहाँ चले गये । मोल-तोल में इनकी सच्चाई, प्रसन्न एवं परिश्रमी स्वभाव से परिजन की उस दुकान पर अच्छी कमाई होने लगी । आपने उनका ऐसा विश्वास अर्जित कर लिया कि उन स्वजन ने आपको छोटी-सी उम्र में ही दुकान का सर्वेसर्वा बना दिया । मालिक कभी आता, कभी दो-दो दिन नहीं भी आता । आपने चार वर्ष तक दुकान का कार्यभार संभाला ।
  • मोल-तोल में इनकी सच्चाई, प्रसन्न एवं परिश्रमी स्वभाव से परिजन की उस दुकान पर अच्छी कमाई होने लगी । आपने उनका ऐसा विश्वासअर्जित कर लिया कि उन स्वजन ने आपको छोटी-सी उम्र में ही दुकान का सर्वेसर्वा बना दिया । मालिक कभी आता, कभी दो-दो दिन नहीं भी आता । आपने चार वर्ष तक दुकान का कार्यभार संभाला ।

रात व प्रभात जप एवं ध्यान में ।
और दिन में आसुमल मिलते दुकान में ।।

  • जप-ध्यान से आपकी सुषुप्त शक्तियाँ विकसित होने लगी थीं । आपकी आध्यात्मिक शक्तियों से सभी परिचित होने लगे । अब तो लोग आपसे आशीर्वाद, मार्गदर्शन लेने आते । अंतःप्रेरणा से आपको सही मार्गदर्शन प्राप्त होता था और इससे लोगों के जीवन की गुत्थियाँ सुलझा दिया करते थे ।

Asaram Bapu Spiritual Journey [गृहत्याग]

  • आसुमल की विवेक सम्पन्न बुद्धि ने संसार की असारता तथा ‘परमात्मा ही एकमात्र परम सार है’ यह बात दृढ़तापूर्वक जान ली थी । आपने ध्यान-भजन और बढ़ा दिया । ग्यारह वर्ष की उम्र में तो अनजाने ही ऋद्धि सिद्धियाँ आपकी सेवा में हाजिर हो चुकी थीं लेकिन आप उसमें ही रुकने वाले नहीं थे । वैराग्य की अग्नि आपके हृदय में प्रकट हो चुकी थी ।
  • तारुण्य के प्रवेश के साथ ही घर वालों ने आपकी शादी करने की तैयारी की । वैरागी आसुमल सांसारिक बंधनों में नहीं फँसना चाहते थे, इसलिए विवाह से आठ दिन पूर्व ही आप चुपके से घर से निकल पड़े। काफी खोजबीन के बाद घर वालों ने आपको भरुच के एक आश्रम में पा लिया ।

Asharam Ji Bapu Marriage [Vivah]

“सगाई निश्चित हो चुकी है, अतः संबंध तोड़ना परिवार की प्रतिष्ठा पर आघात पहुँचाना होगा । अब हमारी इज्जत तुम्हारे हाथ में है ।” सभी परिवारजनों के बार-बार इस आग्रह के वशीभूत होकर तथा तीव्रतम प्रारब्ध कारण आपका विवाह हो गया किंतु आसुमल उस स्वर्णबन्धन में रुके नहीं । अपनी सुशील एवं पवित्र धर्मपत्नी लक्ष्मी देवी को समझाकर आपने परम लक्ष्य ‘आत्मसाक्षात्कार’ की प्राप्ति तक संयमी जीवन जीने का संकल्प किया । अपने पूज्य स्वामी के धार्मिक एवं वैराग्यपूर्ण विचारों से सहमत होकर लक्ष्मी देवी ने भी तपोनिष्ठ एवं साधनामय जीवन व्यतीत करने का निश्चय कर लिया ।

पुनः गृहत्याग एवं ईश्वर की खोज
Life After Marriage

  • विक्रम संवत 2020 की फाल्गुन सुद 11 तदनुसार 23 फरवरी 1964 के पवित्र दिवस आप किसी भी मोह- ममता एवं अन्य विघ्न-बाधाओं की परवाह न करते हुए अपने लक्ष्य की सिद्धि के लिए घर छोड़कर चल पड़े। घूमते-घामते आप केदारनाथ पहुँचे, जहाँ रुद्राभिषेक करवाने पर आपको ने ‘लक्षाधिपति भव’ का आशीर्वाद दिया । इस माया को ठुकराकर आप ईश्वर की खोज में निकले, वहाँ भी मायाप्राप्ति का आशीर्वाद..!
  • आपको यह आशीर्वाद रास न आया । अतः आपने पुनः अभिषेक करवाकर ईश्वरप्राप्ति का आशीष पाया एवं प्रार्थना की : भले मांगने पर भी दो समय का भोजन न मिले लेकिन हे ईश्वर ! तेरे स्वरूप का ज्ञान मुझे मिले तथा ‘इस जीवन का बलिदान देकर भी अपने लक्ष्य की सिद्धि करके रहूंगा….।’ इस प्रकार का दृढ़ निश्चय करके वहाँ से आप भगवान श्रीकृष्ण की पवित्र लीलास्थली वृंदावन पहुँच गये । होली के दिन यहाँ के दरिद्रनारायणों में भंडारा कर कुछ दिन वहीं पर रुके और फिर उत्तराखंड की ओर निकल पड़े ! गुफाओं, कन्दराओं, वनाच्छादित घाटियों, हिमाच्छादित पर्वत-श्रृंखलाओं एवं अनेक तीर्थों में घूमे, कंटकाकीर्ण मार्गों पर चले, शिलाओं की शैय्या पर सोये । मौत का मुकाबला करना पड़े, ऐसे दुर्गम स्थानों पर साधना करते हुए, ईश्वर के लिए तड़पते हुए आप नैनीताल के जंगलों में पहुँचे ।

Asharam Ji Bapu Mile Apne Sadguru Sai Leela Shah Ji Maharaj

  • चालीस दिवस के लम्बे इन्तजार के बाद वहाँ आपका परमात्मा से मिलाने वाले परम पुरुष से मिलन हुआ, जिनका नाम था स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज ।
  • गुरु के द्वार पर भी कठोर कसौटियाँ हुईं लेकिन परमात्मा के प्यार में तड़पता हुआ यह परम वीर पुरुष सारी-की-सारी कसौटियाँ पार करके सदगुरुदेव का कृपा-प्रसाद पाने का अधिकारी बन गया । सद्गुरुदेव ने साधना-पथ के रहस्यों को समझाते हुए आसुमल को अपना लिया । आध्यात्मिक मार्ग के इस पिपासु- जिज्ञासु साधक की आधी साधना तो उसी दिन पूर्ण हो गयी, जब सद्गुरु में अपना लिया । परम दयालु सद्गुरु साईं श्री लीलाशाहजी महाराज ने आसुमल को घर में ही ध्यान-भजन करने का आदेश देकर 70 दिन बाद वापस अमदावाद भेज दिया । घर आये तो सही लेकिन जिस सच्चे साधक का आखिरी लक्ष्य सिद्ध न हुआ हो, उसे चैन कहाँ…?
तेरह दिन तक घर रुके रहने के बाद आप नर्मदा किनारे मोटी कोरल पहुँचकर पुनः तपस्या-साधना में लीन हो गये । आपने यहाँ चालीस दिन का अनुष्ठान प्रारंभ किया । यहाँ कई अंधेरी और चाँदनी रातें आपने नर्मदा मैया के विशाल तट की बालुका में प्रभु-प्रेम की अलौकिक मस्ती में बितायी । प्रभु-प्रेम में आप इतने खो जाते थे कि न तो शरीर की सुध-बुध रहती, न खाने-पीने का ख्याल.. घंटों समाधि में ही बीत जाते ।

तीव्र साधना की ओर…

Pujya Asharam Bapu Miracles during Sadhana Period

  • एक दिन वे नर्मदा नदी के किनारे ध्यानस्थ बैठे थे । मध्यरात्रि के समय जोरों की आँधी-तूफान चली । आप उठकर चाणोद करनाली में किसी मकान के बरामदे में जाकर बैठ गये। रात्रि में कोई मछुआरा बाहर निकला और संतश्री को चोर-डाकू समझकर उसने पूरे मोहल्ले को जगाया । सभी लोग लाठी, भाला, चाकू, छुरी, धारिया आदि लेकर हमला करने को उद्यत खड़े हो गये, लेकिन जिस के पास आत्मशान्ति का हथियार हो, उसका भला कौन सामना कर सकता है? शोरगुल के कारण साधक का ध्यान टूटा और एक प्रेमपूर्ण दृष्टि डालते हुए धीर-गंभीर निश्चल कदम उठाता हुआ आसुमल भीड़ चीरकर बाहर निकल आये । बाद में लोगों को सच्चाई का पता चला तो सबने क्षमा माँगी ।
  • आप अनुष्ठान में संलग्न ही थे कि घर से माताजी एवं धर्मपत्नी आपको वापस घर ले जाने के लिए आ पहुँची । आपको इस अवस्था में देखकर मातुश्री एवं धर्मपत्नी लक्ष्मीदेवी दोनों ही फूट-फूट कर रो पड़ीं । इस करुण दृश्य को देखकर अनेक लोगों का दिल पसीज उठा, लेकिन इस वीर साधक की दृढ़ता तनिक भी न डगमगाई ।
  • अनुष्ठान के बाद मोटी कोरल गाँव से संतश्री की विदाई का दृश्य भी अत्यधिक भावुक था । हजारों आँखें उनके वियोग के समय बरस रही थीं । लाल जी महाराज जैसे स्थानीय पवित्र संत भी आपको विदा करने स्टेशन तक आये। मियांगाँव स्टेशन से आपने अपनी मातुश्री एवं धर्मपत्नी को अमदावाद की ओर जाने वाली गाड़ी में बिठाया और स्वयं चलती गाड़ी से कूदकर सामने के प्लेटफार्म पर खड़ी गाड़ी से मुंबई की तरफ रवाना हो गये ।

Asharam Ji Bapu Self Realization [Atma Sakshatkar]

  • दूसरे दिन प्रातः मुंबई में वृजवेश्वरी पहुंचे, जहाँ आपके सदगुरुदेव परम पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज एकांतवास हेतु पधारे थे । साधना की इतनी तीव्र लगन वाले अपने प्यारे शिष्य को देखकर सद्गुरुदेव का करुणापूर्ण ह्रदय छलक उठा । गुरुदेव ने वात्सल्य बरसाते हुए कहा : हे वत्स ! ईश्वरप्राप्ति के लिए तुम्हारी इतनी तीव्र लगन देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ ।”
  • दूसरे दिन प्रातः मुंबई में वृजवेश्वरी पहुंचे, जहाँ आपके सदगुरुदेव परम पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज एकांतवास हेतु पधारे थे । साधना की इतनी तीव्र लगन वाले अपने प्यारे शिष्य को देखकर सद्गुरुदेव का करुणापूर्ण ह्रदय छलक उठा । गुरुदेव ने वात्सल्य बरसाते हुए कहा : हे वत्स ! ईश्वरप्राप्ति के लिए तुम्हारी इतनी तीव्र लगन देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ ।”
  • गुरुदेव के हृदय से बरसते हुए कुपा-अमृत ने साधक की तमाम साधनाएँ पूर्ण कर दी । पूर्ण गुरु ने शिष्य को पूर्ण गुरुत्व में सुप्रतिष्ठित कर गया । साधक में से सिद्ध प्रकट हो गया । संवत 2021 आश्विन मास, शुक्ल पक्ष द्वितीया तदनुसार 7 अक्टूबर 1964 बुधवार को मध्याह्न ढाई बजे आपको आत्मदेव-परमात्मा का साक्षात्कार हो गया । आसुमल में से संत श्री आशारामजी बापू का आविर्भाव हो गया ।

Sant Shri Asharamji Ashram Foundation

  • दिनांक 29 जनवरी 1972 को साबरमती नदी किनारे की उबड़-खाबड़ खाई पर भक्तों द्वारा आश्रम के रूप में एक कच्ची कुटिया तैयार की गयी । इस स्थान के चारों ओर कँटीली झाड़ियाँ व बीहड़ जंगल थे, जहाँ दिन में भी आने पर लोगों को शराबियों – लुटेरों का भय सतत बना रहता था । लेकिन आश्रम की स्थापना के बाद यहाँ का भयावह एवं दूषित वातावरण एकदम बदल गया । आज इस आश्रमरूपी विशाल वृक्ष की शाखाएँ भारत ही नहीं, विश्व के अनेक देशों तक पहुँच चुकी हैं । साबरमती के बीहड़ों में स्थापित यह कुटिया आज ‘संत श्री आशारामजी आश्रम’ के नाम से एक पावन तीर्थधाम बन चुका है । इस ज्ञान के सरोवर से आज लाखों की संख्या में हर जाति, धर्म व देश के लोग ध्यान और सत्संग का अमृत पीते हैं तथा अपने जीवन की दुःखद गुत्थियों को सुलझाकर धन्य हो जाते हैं ।

सर्वधर्म समभाव

  • आप सभी धर्मों का समान आदर करते हैं । आपकी मान्यता है कि सारे धर्मों का उद्गम भारतीय संस्कृति के पावन सिद्धांतों से ही हुआ है । आप कहते हैं : “सारे धर्म उस एक परमात्मा की सत्ता से उत्पन्न हुए हैं और सारे-के-सारे उसी एक परमात्मा में समा जायेंगे । लेकिन जो सृष्टि के आरंभ में भी था, अभी भी है और जो सृष्टि के अंत में भी रहेगा, वह तुम्हारा आत्मा ही सच्चा धर्म है । उसे ही जान लो, बस । तुम्हारी सारी साधना, पूजा, इबादत और प्रेयर (प्रार्थना) पूरी हो जायेगी ।”

वर्ष भर क्रियाशील

  • आपके दिल में मानवमात्र के लिए करुणा, दया व प्रेम भरा है । जब भी कोई दीन-हीन आपश्री को अपने दुःख-दर्द की करुण गाथा सुनाता है, आप तत्क्षण ही उसका समाधान बता देते हैं । भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शों का स्थायित्व समाज में सदैव बना ही रहे, इस हेतु आप सतत क्रियाशील बने रहते हैं । भारत के प्रांत-प्रांत और गाँव-गाँव में भारतीय संस्कृति का अनमोल खजाना बाँटने के लिए आप सदैव ही विचरण करते हैं । समाज के दिशाहीन युवाओं को, पथभ्रष्ट विद्यार्थियों को एवं लक्ष्यविहीन मानव समुदाय को सन्मार्ग पर प्रेरित करने के लिए अनेक कष्टों व विघ्नों का सामना करते हुए भी आप सतत प्रयत्नशील रहते हैं । आप चाहते हैं कि कैसे भी करके मेरे देश के नौजवान सत्यमार्ग का अनुसरण करते हुए अपनी सुषुप्त शक्तियों को जागृत कर महानता के सर्वोत्कृष्ट शिखर पर आसीन हो जायें ।

AsharamJi Bapu Seva Sanstha

संत आशारामजी के वर्तमान में 425 से अधिक आश्रम, अनेक गौशाला (जिसमें 8000 से अधिक गायों का पालन), 1400 समितियां, बच्चों में अच्छे संस्कारों का सिंचन हो इस उद्देश्य से हजारों निशुल्क बाल संस्कार केंद्र तथा उच्च शिक्षा के साथ उत्तम संस्कार मिले इसके लिए 40 गुरुकुल व डिग्री कॉलेज हैं । प्रतिमाह मासिक प्रकाशनों – ‘ऋषि प्रसाद’ व ‘लोक कल्याण सेतु’ तथा मासिक विडियो मैगज़ीन ‘ऋषि दर्शन’ का लाखों लोग लाभ ले रहें है ।

पूज्य बापूजी के जीवन प्रेरक प्रसंग पढ़ें

आखिर क्या है सच ?
Real Facts of Asharam Bapu Case

आरोप :

20 अगस्त को उत्तर प्रदेश की एक लड़की द्वारा पूज्य बापूजी पर छेड़खानी का आरोप लगाया गया । दिल्ली के कमला मार्केट थाने में एफआईआर दर्ज करायी गयी ।

कैसी मनगढंत कहानी !

लड़की कहती है : ‘बापूजी ने मुझे कमरे में बुलाया, मेरी माँ कमरे के बाहर बैठी हुई थी ।

बापूजी ने दरवाजा बंद करके मेरे कपड़े उतारने चाहे तो मैं चिल्लाने लगी तो मेरा मुँह बंद कर दिया। डेढ़ घंटे तक मेरे शरीर पर हाथ घुमाते रहे । फिर मुझे कहा : ‘माता-पिता को बताना नहीं। नहीं तो जान से मार डालूँगा ।’ डेढ़ घंटे बाद मैं कमरे से बाहर आयी तो घबरायी हुई थी । माँ के साथ कुटिया के कम्पाउंड के बाहर ही जो साधक का घर है, उसमें चली गयी । मैंने अपने माता पिता को कुछ नहीं बताया और सो गयी ।”

जरा सोचें....
उनकी हर चाल पर कई सवाल खड़े होते हैं..

  • माँ कमरे के बाहर बैठी है तो उसे लड़की के चिल्लाने की आवाज सुनायी क्यों नहीं दी ?
  • लड़की कहती है कमरा व लाइट बंद थी । ऐसी स्थिति में डेढ़ घंटे वहीं बाहर बैठी माँ ने दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया ?
  • बाहर जो तथाकथित लड़के खड़े कर दिये गये थे, उनसे क्यों नहीं पूछा ?
  • डेढ़ घंटे तक जिसका यौन शोषण हुआ हो, ऐसी लड़की जब माँ के सामने आती है तब क्या माँ को उसकी हालत देखकर मन में आशंका नहीं होगी ?
  • ऐसा होने पर कोई लड़की चुपचाप कैसे सो सकती है ?
  • फिर सुबह किसान के बच्चों के साथ लड़की खेली व खुशी-खुशी 200 रुपये भी दे गयी । क्या ऐसा सम्भव है ?
  • घटना तो बताती है 15 अगस्त की और एफआईआर दर्ज कराती है 5 दिन बाद रात को 2:45 बजे । ऐसा क्यों ?
  • लड़की उत्तर प्रदेश की, पढ़ रही थी छिंदवाड़ा (म.प्र.) में, तथाकथित घटना जोधपुर (राजस्थान) की बता रही है तो फिर एफआईआर दिल्ली के कमला मार्केट थाने में क्यों ?
  • डेढ़ घंटे तक अगर उसका मुँह दबाया रहता, हाथ घूमता रहता, वह विरोध करती रहती तो क्या उसके शरीर पर कहीं भी कोई निशान नहीं होता ?
"मेडिकल जाँच रिपोर्ट में लिखा गया है कि उसके शरीर पर कहीं भी खरोंच, बाइट (दाँतों से काटने) के निशान नहीं हैं । उसके साथ कोई भी यौन-शोषण (Sexual Assault) तथा शारीरिक शोषण (Physical Assault) नहीं हुआ है । लड़की ने अपनी सहेली के पूछने पर उसे बताया कि मेरे से जैसा बुलवाते हैं, वैसा मैं बोलती हूँ ।"

FAQ's

Where is Asaram Bapu now ?
केंद्रीय कारागृह, जोधपुर (राज.)
4 जून 2021 के अनुसार : बापूजी Covid से अभी स्वस्थ हो चुके हैं परंतु वह कोरोना की जटिलताओं का सामना कर सकते हैं । उसी के साथ उनको 11 प्राणघातक बीमारियों ने घेरा हुआ है जिसमें प्रोस्ट्रेट सम्बंधित बीमारी का भी समावेश हैं ।

हाँ, संत श्री आशारामजी बापू पर लगाए गए सारे आरोप बेबुनियाद हैं । मनगढ़ंत कहानी से बढ़कर और कुछ भी नहीं ।

बापूजी की निर्दोषता के कई प्रमाण हैं फिर भी उन्हें पिछले 8 सालों में बेल न देना अत्याचार है ।

यह केवल और केवल हिन्दू संत एवं संस्कृति के लिए षडयंत्र के अलावा कुछ नहीं है ।

आशारामजी (आसुमल) थाऊमल सिरुमलानी
संत आशारामजी बापू 85 वर्ष के है ।
हाँ
बापूजी के धर्मपत्नी का नाम लक्ष्मी देवी है ।
केंद्रीय कारागृह, सूरत