Pujya Sant Shri Asharamji Bapu's 61th Enlightenment Day
4th October 2024
ऊँचे-से-ऊँचा है आत्मसाक्षात्कार
- सरल-से-सरल अगर कोई काम है तो भगवत्प्राप्ति और कठिन-से-कठिन काम है तो भगवत्प्राप्ति ! ऐसा सरल कोई काम नहीं त्रिभुवन में जितना भगवत्प्राप्ति का काम सरल है ।
7 दिन में कोई स्नातक नहीं हो सकता । 7 दिन में 2 कक्षा भी पास नहीं कर सकता लेकिन राजा परीक्षित को 7 दिन में भगवत्प्राप्ति, परमात्म साक्षात्कार हो गया, इतना सरल है ! परीक्षित की तड़प ऐसी थी कि सातवें दिन तक्षक काटने वाला था तो पूरे राजपाट का त्याग कर शुक्रताल (शुक्रताल) चले गये ।
- सातवें दिन परीक्षित को शुकदेव जी ने कहा : “राजन् ! यह जो तुमको राजाओं की वंश-परम्परा की विस्तार से कथा सुनायी, वह तुम्हारे मन रूपी पक्षी को शांत करने के लिए है । बाकी सार बात तो यह है कि तुम यह हाड़-मांस का शरीर नहीं हो । अपने को शरीर मानने की बुद्धि का त्याग करना है ।”
- ‘ मैं शरीर हूँ और मैं मर जाऊँगा, मैं शरीर हूँ और मैं बीमार हूँ ‘ – यह दुर्बुद्धि है ।
- परीक्षित को 7 दिन में आत्मसाक्षात्कार हो गया । खट्वांग राजा को दो घड़ी में हो गया । जनक राजा को घोड़े की रकाब में पैर डालते-डालते हो गया । हमको 40 दिन में हो गया । 40 दिन में एक कक्षा पास हो सकते हैं क्या ? फिर यह कितना सरल है ! आत्म साक्षात्कार होने से आदमी कितना ऊँचा हो जाता है !
- बड़े में बड़ा है आत्मसाक्षात्कार ।
स्नातं तेन सर्व तीर्थ दातं तेन सर्व दानम् ।
कृतं तेन सर्व यज्ञं येन क्षणं मनः ब्रह्मविचारे स्थिरं कृतम् ।।
सारे तीर्थों में उसने स्नान कर लिया, सारा दान उसने दे दिया, सारे यज्ञ उसने कर लिये, जिसने एक क्षण भी ब्रह्मज्ञान में मन स्थिर किया ।
Aatma Ka Swaroop Kya Hai ?
- आत्मा किसको बोलते हैं ? जहाँ से “मैं” स्फुरित होता है । सभी के हृदय में ‘मैं’-‘मैं’ होता है । तो इतना व्यापक है यह… । यह तो अपने चमड़े के अंदर बोलते हैं इधर-इधर, बाकी केवल इधर नहीं है, सर्वत्र वही है… । वृक्षों में यही आत्मदेव रस खींचने की सत्ता देता है ।
- यह जो पक्षियों का किल्लोल हो रहा है, यह भी आत्मा की सत्ता से हो रहा है । इन पेड़-पौधों, पत्थरों में भी वही आत्मचेतना है किंतु उनमें सुषुप्त है ।
- सारा जगत उस आत्मा का ही विवर्त है । जैसे सागर की एक भी तरंग सागर से अलग नहीं है, ऐसे ही सृष्टि का एक कण भी आत्मा से अलग नहीं है ।
- एक बार उस आत्मा-परमात्मा को जान लो, उसमें ३ मिनट बैठ जाओ, रुक जाओ, गुरु की कृपा से आत्मसाक्षात्कार हो जाए, केवल 3 मिनट के लिए तो पार हो गये… फिर गर्भवास नहीं होता, जन्म-मरण नहीं होता ।
- एक वस्तु में अपने मूल स्वभाव को छोड़े बिना ही अन्य वस्तु की प्रतीति होना यह ‘विवर्त’ है । सीपी में चाँदी दिखना, रस्सी में सांप दिखना विवर्त है ।
What is Self Realization (Atma Sakshatkar/ Brahmagyan)
- जैसे देखने के विषय अनेक लेकिन देखने वाला एक, सुनने के विषय अनेक लेकिन सुनने वाला एक, चखने के विषय अनेक चखने वाला एक, मन के संकल्प-विकल्प अनेक लेकिन मन का द्रष्टा एक, बुद्धि के निर्णय अनेक लेकिन उसका अधिष्ठान एक ! उस एक को जब ‘मैं’ रूप में जान लिया, अनंत ब्रह्मांडों में व्यापक रूप में जिस समय जान लिया वे घड़ियाँ सुहावनी होती हैं, मंगलकारी होती हैं । वे ही आत्म साक्षात्कार की घड़ियाँ हैं । एक इंच भी परमात्मा हमसे दूर नहीं है, फिर भी आज तक मुलाकात नहीं हुई ।
पानी बीच मीन पियासी रे,
सुन-सुन बतिया आये मोहे हांसी…
हम ब्रह्म-परमात्मा में उत्पन्न होते हैं, ब्रह्म परमात्मा में रहते हैं, परमात्मा में जीते हैं, खाते-पीते हैं, परमात्मा में देखते-सुनते हैं, परमात्मा में बोलते हैं और आज तक परमात्मा का साक्षात्कार नहीं हुआ… कितना अटपटा मामला है ! यह अटपटा मामला झटपट समझ में नहीं आता लेकिन जब पूज्य साईं श्री लीलाशाहजी बापू जैसे कोई ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु मिल जाते हैं तो गुत्थी खुल जाती है और जन्म-मरण की खटपट मिट जाती है ।
Atma Sakshatkar Diwas 2024
धरती पर तो रोज करीब डेढ़ करोड़ लोगों का जन्मदिन होता है । शादी-दिवस और प्रमोशन दिवस भी लाखों लोगों का हो सकता है । शपथ-दिवस भी कई नेताओं का हो सकता है । ईश्वर के दर्शन का दिवस भी दर्जनों भक्तों का हो सकता है लेकिन ईश्वर साक्षात्कार दिवस तो कभी-कभी और कहीं-कहीं किसी-किसी विरले का देखने को मिलता है । हे मनुष्य ! तू भी उस सत्स्वरूप परमात्मा के साक्षात्कार का लक्ष्य बना । वह कोई कठिन नहीं है, बस उससे प्रीति हो जाए ।
‘तुम यह शरीर रूपी घड़ा नहीं हो !’
जैसे घड़े का आकाश महाकाश का अंश है । जो घड़े में है, वह आकाश वास्तव में उतना नहीं है, वह तो घड़े की आकृति ने उसको उतना बनाया लेकिन घड़े का आकाश महाकाश से अलग नहीं है । ऐसे ही आत्मा-परमात्मा से अलग नहीं है । वह आत्मा-परमात्मा व्यापक ब्रह्मस्वरूप तुम हो । तुम यह शरीर रूपी घड़ा नहीं हो ।
How to Get Enlightenment
दिल के दिलबर तुम्हीं हो,
तुम्हारा दीदार कैसे करें ?
चाहत है तुमसे मिलने की,
प्रभु सच्चा प्यार कैसे करें ?
प्रियतम प्यारे तुम कैसे हो,
तुमसे प्यार कैसे करें ?
How to get Enlightenment
दिल के दिलबर तुम्हीं हो,
तुम्हारा दीदार कैसे करें ?
चाहत है तुमसे मिलने की,
प्रभु सच्चा प्यार कैसे करें ?
प्रियतम प्यारे तुम कैसे हो,
तुमसे प्यार कैसे करें ?
तू कच्चा घड़ा है...
ईश्वर-दर्शन और आत्मसाक्षात्कार….
- ‘भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन हो गया, श्रीकृष्ण ने बातचीत की !!’- यह ईश्वर दर्शन हो गया । प्रचेताओं को भगवान शिव का दर्शन हो गया, भगवान नारायण का दर्शन हो गया ।
- भगवान शिव का, भगवान नारायण का दर्शन हो गया फिर भी आत्मसाक्षात्कार बाकी रह जाता है । नामदेव महाराज को भगवान विट्ठल के दर्शन होते थे, वे उनसे बातचीत करते थे, फिर भी संतों ने कहा कि ʹ तू कच्चा घड़ा है । ʹ
- ʹ नामदेव चले गये मंदिर में और भगवान को प्रार्थना की : “ माइया पांडुरंगा ! लवकर या… भगवान जल्दी प्रकट हो जाओ । मेरे को सभी संतों ने कच्चा घड़ा घोषित कर दिया है । ” तो पांडुरंग प्रकट होकर बोलेः “ संतों ने जो कहा है, ठीक ही कहा है । ”
- ʹʹ प्रभु ! आप तो बोलते हैं, ʹ नाम्या ! तु मुझे बहुत प्यारा है । ʹ आप प्रकट होकर मेरे से बातचीत करते हो, मेरे को स्नेह करते हो और फिर मैं कच्चा घड़ा कैसे ? ”
- “ तुम मुझे और अपने को अलग मानते हो तथा संसार को सच्चा मानते हो । तुम्हारा नजरिया कच्चा है । संसार मेरी सत्ता से कैसे विलसित हुआ है, तुम्हारा शरीर और तुम मेरी सत्ता से कैसे मेरे में अभिन्न हो – इसका ज्ञान जब तक तुम्हें नहीं होता तब तक तुम्हारी स्थिति कच्ची है । संत विसोबा खेचर के पास जाओ । वे तुमको ब्रह्मज्ञान का उपदेश देंगे, तभी तुम पक्का घड़ा होओगे । ” नामदेव जी संत विसोबा खेचर के चरणों में गये, उपदेश लिया तब आत्मसाक्षात्कार हुआ ।
प्रश्नोत्तरी [Questions]
Atma Sakshatkar Ke liye Kitna Jap (Mala) Karni Hai
पूज्य बापूजी : ‘ करनी पड़ती है… ‘ तो बोझा है, फिर नहीं होगा चाहें कितनी भी माला कर डालो । माला ऐसे हो कि होने लग जाए। ‘ करनी पड़ती है… ‘ तो फिर मुझे लगता है कि 120 माला रोज करने का विधान है लेकिन इतनी माला करने के बाद मेरे को ईश्वर मिलेगा ‘ यह बना रहा तो नहीं मिलेगा । साधन के बल से नहीं मिलेगा । साधन करते-करते ईश्वर की कृपा उसमें आवश्यक है । यह भी तो आता है रामायण में :
यह गुन साधन तें नहिं होई ।