आत्मलाभात् परं लाभं न विद्यते ।
आत्मसुखात् परं सुखं न विद्यते ।
आत्मज्ञानात् परं ज्ञानं न विद्यते ।
आत्मलाभ से बड़ा कोई लाभ नहीं, आत्मसुख से बड़ा कोई सुख नहीं और आत्मज्ञान से बड़ा कोई ज्ञान नहीं ।
आत्मलाभात् परं लाभं न विद्यते ।
आत्मसुखात् परं सुखं न विद्यते ।
आत्मज्ञानात् परं ज्ञानं न विद्यते ।
आत्मलाभ से बड़ा कोई लाभ नहीं, आत्मसुख से बड़ा कोई सुख नहीं और आत्मज्ञान से बड़ा कोई ज्ञान नहीं ।
7 दिन में कोई स्नातक नहीं हो सकता । 7 दिन में 2 कक्षा भी पास नहीं कर सकता लेकिन राजा परीक्षित को 7 दिन में भगवत्प्राप्ति, परमात्म साक्षात्कार हो गया, इतना सरल है ! परीक्षित की तड़प ऐसी थी कि सातवें दिन तक्षक काटने वाला था तो पूरे राजपाट का त्याग कर शुक्रताल (शुक्रताल) चले गये ।
स्नातं तेन सर्व तीर्थ दातं तेन सर्व दानम् ।
कृतं तेन सर्व यज्ञं येन क्षणं मनः ब्रह्मविचारे स्थिरं कृतम् ।।
सारे तीर्थों में उसने स्नान कर लिया, सारा दान उसने दे दिया, सारे यज्ञ उसने कर लिये, जिसने एक क्षण भी ब्रह्मज्ञान में मन स्थिर किया ।
पानी बीच मीन पियासी रे,
सुन-सुन बतिया आये मोहे हांसी…
हम ब्रह्म-परमात्मा में उत्पन्न होते हैं, ब्रह्म परमात्मा में रहते हैं, परमात्मा में जीते हैं, खाते-पीते हैं, परमात्मा में देखते-सुनते हैं, परमात्मा में बोलते हैं और आज तक परमात्मा का साक्षात्कार नहीं हुआ… कितना अटपटा मामला है ! यह अटपटा मामला झटपट समझ में नहीं आता लेकिन जब पूज्य साईं श्री लीलाशाहजी बापू जैसे कोई ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु मिल जाते हैं तो गुत्थी खुल जाती है और जन्म-मरण की खटपट मिट जाती है ।
धरती पर तो रोज करीब डेढ़ करोड़ लोगों का जन्मदिन होता है । शादी-दिवस और प्रमोशन दिवस भी लाखों लोगों का हो सकता है । शपथ-दिवस भी कई नेताओं का हो सकता है । ईश्वर के दर्शन का दिवस भी दर्जनों भक्तों का हो सकता है लेकिन ईश्वर साक्षात्कार दिवस तो कभी-कभी और कहीं-कहीं किसी-किसी विरले का देखने को मिलता है । हे मनुष्य ! तू भी उस सत्स्वरूप परमात्मा के साक्षात्कार का लक्ष्य बना । वह कोई कठिन नहीं है, बस उससे प्रीति हो जाए ।
‘तुम यह शरीर रूपी घड़ा नहीं हो !’
जैसे घड़े का आकाश महाकाश का अंश है । जो घड़े में है, वह आकाश वास्तव में उतना नहीं है, वह तो घड़े की आकृति ने उसको उतना बनाया लेकिन घड़े का आकाश महाकाश से अलग नहीं है । ऐसे ही आत्मा-परमात्मा से अलग नहीं है । वह आत्मा-परमात्मा व्यापक ब्रह्मस्वरूप तुम हो । तुम यह शरीर रूपी घड़ा नहीं हो ।
दिल के दिलबर तुम्हीं हो,
तुम्हारा दीदार कैसे करें ?
चाहत है तुमसे मिलने की,
प्रभु सच्चा प्यार कैसे करें ?
प्रियतम प्यारे तुम कैसे हो,
तुमसे प्यार कैसे करें ?
दिल के दिलबर तुम्हीं हो,
तुम्हारा दीदार कैसे करें ?
चाहत है तुमसे मिलने की,
प्रभु सच्चा प्यार कैसे करें ?
प्रियतम प्यारे तुम कैसे हो,
तुमसे प्यार कैसे करें ?
तू कच्चा घड़ा है...
ईश्वर-दर्शन और आत्मसाक्षात्कार….
प्रश्नोत्तरी [Questions]
पूज्य बापूजी : ‘ करनी पड़ती है… ‘ तो बोझा है, फिर नहीं होगा चाहें कितनी भी माला कर डालो । माला ऐसे हो कि होने लग जाए। ‘ करनी पड़ती है… ‘ तो फिर मुझे लगता है कि 120 माला रोज करने का विधान है लेकिन इतनी माला करने के बाद मेरे को ईश्वर मिलेगा ‘ यह बना रहा तो नहीं मिलेगा । साधन के बल से नहीं मिलेगा । साधन करते-करते ईश्वर की कृपा उसमें आवश्यक है । यह भी तो आता है रामायण में :
यह गुन साधन तें नहिं होई ।