Skip to content

गुरुप्रसाद का आदर [Respect Guru’s Value]

देवशर्मा नामक ब्राह्मण ने गुरुकुल में पढ़-लिखकर घर लौटते समय गुरुदेव के चरणों में प्रणाम करके दक्षिणा रखी ।
गुरु ने कहा : ‘‘बेटा ! तूने गुरु-आश्रम में बहुत सेवा की है और तू गरीब ब्राह्मण है, तेरी दक्षिणा मुझे नहीं चाहिए।”

देवशर्मा : ‘‘गुरुदेव ! कुछ-न-कुछ तो देने दीजिये । मेरा कर्तव्य निभाने के लिए ही सही, कुछ तो आपके
चरणों में रखने दीजिये ।’’

शिष्य की श्रद्धा को देखकर गुरुदेव ने दक्षिणा स्वीकार कर ली और कुछ प्रसाद देना चाहा ।

Read More »