एक लड़का काशी में हरिश्चन्द्र हाईस्कूल में पढ़ता था । उसका गाँव काशी से आठ मील दूर था । वह रोजाना वहाँ से पैदल चलकर आता, बीच में गंगा नदी बहती है उसे पार करता
लालबहादुर शास्त्रीजी के मामा लगभग रोज मांस खाने के आदी थे।
कबूतर पालना, उड़ाना और रोज उनमें से एक को मारकर खा जाना उनका नियम था।
एक दिन वे एक कबूतर को हाथ में लेकर बोले: “आज शाम तुम्हारी बारी है।”
शाम को सभी कबूतर वापस आ गये पर वह कबूतर नहीं आया। वह खपड़े में छिपा हुआ था।