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Mahapurusho ke vachan akatya hote hai - An Interesting Story in Hindi

महापुरुषों के वचन अकाट्य होते हैं..: An Interesting Story in Hindi

नाथ सम्प्रदाय में श्री आमनाथजी एक सिद्ध योगी हो गये । एक बार उन्होंने शिष्यों सहित सिरमौर राज्य (वर्तमान सिरमौर जिला) के नाहन शहर के बाहर डेरा डाला । बाबाजी ने अपने शिष्य अँतवारनाथ से

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गुरुप्रसाद का आदर [Respect Guru’s Value]

देवशर्मा नामक ब्राह्मण ने गुरुकुल में पढ़-लिखकर घर लौटते समय गुरुदेव के चरणों में प्रणाम करके दक्षिणा रखी ।
गुरु ने कहा : ‘‘बेटा ! तूने गुरु-आश्रम में बहुत सेवा की है और तू गरीब ब्राह्मण है, तेरी दक्षिणा मुझे नहीं चाहिए।”

देवशर्मा : ‘‘गुरुदेव ! कुछ-न-कुछ तो देने दीजिये । मेरा कर्तव्य निभाने के लिए ही सही, कुछ तो आपके
चरणों में रखने दीजिये ।’’

शिष्य की श्रद्धा को देखकर गुरुदेव ने दक्षिणा स्वीकार कर ली और कुछ प्रसाद देना चाहा ।

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चेला नहीं,सीधे गुरु बनाया

राजस्थान में एक हो गये केताजी महाराज। उनके पास एक लड़का आया दीक्षा लेने के लिए।
वे बोले :”अरे,क्या दीक्षा दें, जरा रुको,देखेंगे।”

लड़का भी पक्का था। देखते-देखते,गुरु महाराज की गायें चराते-चराते एक साल हो गया।

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बाबा फरीद की गुरुभक्ति

एक बार उनके गुरु ख्वाजा बहाउद्दीन ने उनको किसी खास काम के लिए मुलतान भेजा। उन दिनों वहाँ शम्सतबरेज के शिष्यों ने गुरु के नाम का दरवाजा बनाया था और घोषणा की थी कि आज इस दरवाजे से जो गुजरेगा वह जरूर स्वर्ग में जायेगा।

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आस्था की दृष्टि

एक मिशनरी ने श्री रामकृष्ण परमहंस से पूछा :”आप माता काली के रोम-रोम में अनेक ब्रह्माण्डों की बातें करते हैं और उस छोटी-सी मूर्ति को काली कहते हैं,यह कैसे ?

इस पर परमहंसजी ने पूछा :”सूरज दुनिया से कितना बड़ा है ?

मिशनरी ने उत्तर दिया :”नौ लाख गुना ।”

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नामदेव’ मैं नहीं तुम

जनाबाई का जप समझने की बात है। जनाबाई हर समय विट्ठल नाम का जप करती रहती है। मंत्रजप करते-करते जनाबाई की रगों में.नस-नाड़ियों में एवं पूरे शरीर में मंत्र का प्रभाव छा गया था। वे जिन वस्तुओं को छूतीं,उनमें भी मंत्र की सूक्ष्म तरंगों का संचार हो जाता था। जनाबाई उपले पाथते समय ‘विट्ठल’ नाम का जप करती रहतीं थीं। उनके पाथे हुए उपलों को कोई चुरा ले जाता था।अतः उन्होंने नामदेवजी से फरियाद की।

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नाग महाशय का अदभुत गुरु-प्रेम

स्वामी रामकृष्ण को जब गले का कैंसर हो गया था, तब नाग महाशय रामकृष्णदेव की पीड़ा को देख नहीं पाते थे। एक दिन जब नाग महाशय उनको प्रणाम करने गये, तब रामकृष्णदेव ने कहाः”ओह ! तुम आ गये। देखो, डॉक्टर विफल हो गये। क्या तुम मेरा इलाज कर सकते हो?”

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