भगवन्नाम के लगातार जप से मन भगवान में तल्लीन हो जाता है और मन भगवान में तल्लीन हो गया तो मानों,व्यक्ति का जन्म और जीवन धन्य हो गया,कृतार्थ हो गया।
-पूज्य संत श्री आशारामजी बापूजी

जनाबाई का जप समझने की बात है। जनाबाई हर समय विट्ठल नाम का जप करती रहती है। मंत्रजप करते-करते जनाबाई की रगों में.नस-नाड़ियों में एवं पूरे शरीर में मंत्र का प्रभाव छा गया था। 

वे जिन वस्तुओं को छूतीं,उनमें भी मंत्र की सूक्ष्म तरंगों का संचार हो जाता था। जनाबाई उपले पाथते समय ‘विट्ठल’ नाम का जप करती रहतीं थीं। उनके पाथे हुए उपलों को कोई चुरा ले जाता था।अतः उन्होंने नामदेवजी से फरियाद की।

नामदेवजी ने पूछा :”इतने सारे उपलों में से तुम्हारे उपले किस तरह पहचान में आयेंगे ?”
जनाबाई ने कहा :”मेरे उपले पहचानने में सरल हैं। मेरे उपलों को जब कान के निकट लाया जायेगा तो उनमें से ‘विट्ठल-विट्ठल’ की ध्वनि निकलेगी।”

नामदेवजी ने जब जनाबाई के उपलों को कान के निकट किया तो उनसे विट्ठल नाम की ध्वनि सुनायी पड़ने लगी। तब उन्होंने जनाबाई से कहा कि “नामदेव मैं नहीं तुम हो। तुम्हारी नाम-तल्लीनता तो मुझसे भी ज्यादा है।”

जनाबाई का भगवन्नाम-जप  हो चाहे एकलव्य का गुरुमूर्ति-ध्यान,जो अपने कार्य में पूरी तल्लीनता से लग जाता है,वह तो उस क्षेत्र में परम ऊँचाई,परम सफलता को पा ही लेता है ।