प्राचीन काल में जालंधर नामक एक महापराक्रमी और महाउपद्रवी राक्षस हो गया । उसकी वृंदा नाम की एक परम रूपवती व परम साध्वी पत्नी थी । वृंदा की निष्ठा थी कि ‘जब मेरा पातिव्रत्य अटल
भगवान नारायण देवर्षि नारद से कहते हैं : ‘वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी । पुष्पसारा नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनी ॥ एतन्नामाष्टकं चैव स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् । यः पठेत् तां च सम्पूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ॥’ ‘वृंदा, वृंदावनी, विश्वपूजिता,