भगवान नारायण देवर्षि नारद से कहते हैं : 

‘वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी ।

 पुष्पसारा नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनी ॥ 

एतन्नामाष्टकं चैव स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् । 

यः पठेत् तां च सम्पूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ॥’

‘वृंदा, वृंदावनी, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी ये देवी तुलसी के आठ नाम हैं । यह सार्थक नामावली स्तोत्र के रूप में परिणत है । जो पुरुष तुलसी की पूजा करके इस ‘नामाष्टक’ का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त हो जाता है ।’ (ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खंड 22.33-34)

कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को देवी तुलसी का मंगलमय प्राकट्य हुआ और सर्वप्रथम भगवान श्रीहरि ने उनकी पूजा की । जो इस पूर्णिमा के अवसर पर विश्वपावनी तुलसी की भक्तिभाव से पूजा करता है, वह संपूर्ण पापों से मुक्त होकर भगवान विष्णु के लोक में जाता है । जो कार्तिक महीने में भगवान विष्णु का तुलसीपत्र अर्पण करता है, वह दस हजार गोदान का फल निश्चित रूप से पा लेता है ।

Tulsi Namashtak Stotram Benefits/ Fayde

इस ‘तुलसी नामाष्टक’ के नित्य स्मरण से संतानहीन पुरुष पुत्रवान बन जाता है । जिसे पत्नी न हो, उसे पत्नी मिल जाती है तथा बंधुहीन व्यक्ति बहुत-से बांधवों को प्राप्त कर लेता है । इसके स्मरण से रोगी रोगमुक्त हो जाता है, बंधन में पड़ा हुआ व्यक्ति उससे छुटकारा पा जाता है । भयभीत पुरुष निर्भय हो जाता है और पापी पापों से मुक्त हो जाता है ।

हे नारद ! वेद की ‘कण्व शाखा’ में तुलसी के ध्यान की विधि का प्रतिपादन हुआ है । ध्यान में संपूर्ण पापों को नष्ट करने की अबाध शक्ति है । 

Tulsi Puja Vidhi 

ध्यान : ‘परम साध्वी तुलसी पुष्पों में सार है । ये पूजनीया तथा मनोहारिणी है । संपूर्ण पापरूपी ईंधन को भस्म करने के लिए ये प्रज्ज्वलित अग्नि की ज्वाला के समान है ।

पुष्पों में अथवा देवियों में किसी से भी इनकी तुलना नहीं हो सकी । इसीलिए उन सबमें पवित्ररूपा इन देवी को ‘तुलसी’ कहा गया । ये सबके द्वारा अपने मस्तक पर धारण करने योग्य हैं । विश्व को पवित्र करनेवाली ये देवी जीवन्मुक्त हैं । मुक्ति और भगवान श्रीहरि की भक्ति प्रदान करना इनका स्वभाव है । ऐसी भगवती तुलसी की मैं उपासना करता हूँ ।’

ध्यान करने के पश्चात् बिना आह्वान किये भक्तिपूर्वक तुलसी के वृक्ष में षोडशोपचार से इन देवी की पूजा करनी चाहिए ।

विद्वान पुरुष इस प्रकार ध्यान, भजन, पूजन और ‘तुलसी नामाष्टक’ का पठन करके देवी तुलसी को प्रणाम करें । (‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ से)

– ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2004