GandhiJi Aur Vinoba Bhave – Nirahankar : A Short Story in Hindi
भगवान में जिसकी प्रीति होती है वह अहंकार को नहीं पोषता है । -पूज्य संत श्री आशारामजी बापू एक बार गाँधीजी ने विनोबा भावे को एक पत्र लिखा । छात्रों के सामने ही वह पत्र
भगवान में जिसकी प्रीति होती है वह अहंकार को नहीं पोषता है । -पूज्य संत श्री आशारामजी बापू एक बार गाँधीजी ने विनोबा भावे को एक पत्र लिखा । छात्रों के सामने ही वह पत्र
लक्ष्य न ओझल होने पाये,कदम मिलाकर चल ।सफलता तेरे चरण चूमेगी,आज नहीं तो कल ।। एक मुमुक्ष ने संत से पूछा :” महाराज मैं कौन सी साधना करूँ ?” संत बड़े अलमस्त स्वभाव के थे
Pujya Shri AsharamJi Bapu Ke Sadhak ka Anubhav (Experience) ➠ साध्वी सजनी बहन, जो पिछले 36 वर्षों से संत श्री आशारामजी महिला उत्थान आश्रम में सेवा-साधना परायण जीवन का सौभाग्य प्राप्त करते हुए अपना आध्यात्मिक
बापूजी को बचपन से ही सादगी प्रिय है। सफेद वस्त्र, सात्त्विक भोजन पसंद है। पूज्यश्री कभी-कभी व्रत भी करते थे और उसमें केवल फल या दूध लेते थे। बचपन में भी सफेद कुर्ता-पजामा पहनते थे।
महात्मा हरिद्रुमत गांधार देश की ओर जा रहे थे । मार्ग में एक ऐसा गाँव पड़ा जहाँ सभी लोग बूढ़े, जवान, स्त्रियाँ और बच्चे भी भगवान को प्रेम करने वाले. भगवान की भक्ति करने वाले
पूज्य बापूजी की बचपन से ही ईश्वर-प्राप्ति की तड़प कितनी गजब की थी..! यह बच्चों को सुनाएँ,प्रभु भक्ति के संस्कार डालें। पूज्य बापूजी का घर में अलग से एक छोटा-सा पूजा का कमरा था,जिसमें बापूजी
स्वामी रामतीर्थ की ख्याति अमेरिका में दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी। लोग उन्हें ‘जिन्दा मसीहा’ कहते थे और वैसा ही आदर-सम्मान भी देते थे। कई चर्चा, क्लबों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में व्याख्यान देने के लिए
Chhatrapati Shivaji Maharaj: Ek Adarsh Rajyakarta, Parakrami, Prajahit Samrat: सत्रहवीं शताब्दी में हिन्दुस्तान में मुगल शासकों का अत्याचार, लूटमार बढ़ती जा रहा था । हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया जा रहा था । मुगलों के
( क्या आप अपने बच्चों को हर प्राणी में…. हर वस्तु में…. ईश्वर को देखने का नजरिया देना चाहते हैं ???? तो उन्हें तुलसीदासजी की जयंती पर यह प्रसंग जरूर सुनाएं । ) संत तुलसीदासजी
करम प्रधान बिस्व करि रखा। जो जस करइ सो तस फलु चाखा । (श्रीरामचरित अयो. का. 218.2) कर्म की अपनी कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है क्योंकि वह जड़ है । कर्म को यह पता नहीं