Samarth Ramdas Ka Shishya Tantrik Ke Shraap Se Kaise Bach Gaya
आज हम जानेंगे : समर्थ रामदास का शिष्य तांत्रिक के श्राप से कैसे बच गया..? एक शिष्य था समर्थ गुरु रामदास जी का जो भिक्षा लेने के लिए गाँव में गया और घर-घर भिक्षा की
आज हम जानेंगे : समर्थ रामदास का शिष्य तांत्रिक के श्राप से कैसे बच गया..? एक शिष्य था समर्थ गुरु रामदास जी का जो भिक्षा लेने के लिए गाँव में गया और घर-घर भिक्षा की
एक बार गुरु नानक देव जी यात्रा करते-करते लाहौर पहुँचे । हयात संत के पुण्यमय दर्शन-सान्निध्य का लाभ उठाने भक्त उमड़ने लगे। करोड़पति सेठ दुनीचंद भी दर्शन करने पहुँचा और बड़े आदर से उन्हें अपने घर ले
सर्दी के मौसम में गाँधीजी सिर पर ऊन का एक टुकड़ा बाँधते थे । जब वह जर्जरीभूत हो गया, तब उनकी सेविका मनु ने उन्हें एक नया टुकड़ा दे दिया । गाँधीजी बोले : “न
भूत का डर भाग गया…!! रात बहुत काली थी और मोहन डरा हुआ था । हमेशा से ही उसे भूतों से डर लगता था। वह जब भी अँधेरे में अकेला होता, उसे लगता की कोई
प्रेरक-प्रसंग : लाल बहादुर ही क्यों ? (लाल बहादुर शास्त्री जयंती : २ अक्टूबर) लाल बहादुर शास्त्री जी एक दिन सोचने लगे कि “परिवार में सभी लोगों का नाम प्रसाद व लाल पर है लेकिन
एक लड़का काशी में हरिश्चन्द्र हाईस्कूल में पढ़ता था । उसका गाँव काशी से आठ मील दूर था । वह रोजाना वहाँ से पैदल चलकर आता, बीच में गंगा नदी बहती है उसे पार करता
गुरु-सन्देश – जो दृढ़ निश्चयी हैं वे ही जीवन के संग्राम में सफल होते हैं, जीवनदाता की यात्रा में प्रवेश पाकर पूर्ण हो जाते हैं । जिस श्रेष्ठ कर्म का पालन हितकर हो, गांधीजी (Gandhi
लालबहादुर शास्त्रीजी के मामा लगभग रोज मांस खाने के आदी थे।
कबूतर पालना, उड़ाना और रोज उनमें से एक को मारकर खा जाना उनका नियम था।
एक दिन वे एक कबूतर को हाथ में लेकर बोले: “आज शाम तुम्हारी बारी है।”
शाम को सभी कबूतर वापस आ गये पर वह कबूतर नहीं आया। वह खपड़े में छिपा हुआ था।
गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका में थे। एक दिन वहाँ उनके आश्रम में भोजन में कढ़ी-खिचड़ी भी बनी। साधारणतया आश्रम में कढ़ी बनने का मौका कभी-कभी ही आता था।
जिन विद्यार्थियों ने नमक न खाने का नियम लिया था,वे कढ़ी-खिचड़ी नहीं ले सकते थे। किसको क्या और कितना खाने को देना है,गाँधीजी इसका भी पूरा ध्यान रखते थे।
उनके पुत्र देवदास ने कढ़ी-खिचड़ी लेने के लिए अपना भोजनपात्र रखा। गाँधीजी ने उससे पूछा :”देवा ! तुझे तो बिना नमक का खाना है न ?”
अम्माजी कहती थीं कि ”साँई ( पूज्य बापूजी ) के पिताजी ने मुझे साफ कह रखा था कि ”किन्हीं संत या गरीब को दान देकर ही भोजन बनाना।” तो इस नियम का मैं पहले भी