लोकसंत तुलसीदास जी – Lok Sant Tulsidas Ji
आज हम जानेंगे : एक अभागे के जीवन में भी जब सद्गुरु आ जाते हैं तो उसका जीवन कैसे चमक जाता है ? संत तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्माराम था। कहा जाता है
आज हम जानेंगे : एक अभागे के जीवन में भी जब सद्गुरु आ जाते हैं तो उसका जीवन कैसे चमक जाता है ? संत तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्माराम था। कहा जाता है
कुलपति स्कंधदेव के गुरुकुल में प्रवेशोत्सव समाप्त हो चुका था। कक्षाएँ नियमित रूप से चलने लगी थीं। उनके योग और अध्यात्म संबंधित प्रवचन सुनकर विद्यार्थी उनसे बड़े प्रभावित होते थे। एक दिन प्रश्नोत्तर काल में
श्रीमद् भागवत [Shrimad Bhagwat] में आता है: सांकेत्यं पारिहास्यं वा स्तोत्रं हेलनमेव वा ।वैकुण्ठनामग्रहणमशेषधहरं विटुः ।।पतितः स्खलितो भग्नः संदष्टस्तप्त आहतः ।हरिरित्यवशेनाह पुमान्नार्हति यातनाम् ।। ‘भगवान का नाम चाहें जैसे लिया जाए- किसी बात का संकेत
[Childhood of Vidyasagar in Hindi] सच्ची लगन व दृढ़ पुरुषार्थ का संदेश देती हुई यह कहानी बच्चों को अवश्य सुनाएँ। एक होनहार बालक था।घर में आर्थिक तंगी… पैसे-पैसे को मोहताज… न किताबें खरीद सके न
सन् १८९३ में गोरखपुर (उ.प्र.) में भगवती बाबू एवं ज्ञान प्रभा देवी के घर एक बालक का जन्म हुआ, नाम रखा गया मुकुंद । मुकुंद (Mukund) के माता-पिता ब्रह्मज्ञानी महापुरुष योगी श्यामाचरण लाहिड़ी जी के
परीक्षा के दिनों में जो विद्यार्थी अधिक चिंतित और परेशान रहते हैं, वे साल भर मेहनत करने के बाद भी अच्छे अंकों से पास नहीं हो पाते। नीचे दी गई बातों का ध्यान रखकर पढ़ाई
जब स्वामी रामतीर्थ (Swami Ramtirth) प्राध्यापक थे, वे छात्रों को बड़ी लगन और तन्मयता से पढ़ाते थे। छात्रों की जिज्ञासा बढ़ाने के लिए उनसे कई तरह के प्रश्न पूछा करते थे और उत्तर उनसे ही
एक दिन गुरु द्रोणाचार्य जी (Guru Dronacharya) शिष्यों के साथ गंगाजी में स्नान करने गये। जैसे ही उन्होंने गंगा में गोता लगाया, अचानक एक मगरमच्छ ने उनके पैर की पिंडली पकड़ ली । गुरु तो
एक बार मदालसा के छोटे पुत्र ने अपनी माँ से प्रश्न कियाः- “हे कल्याणमयी पुण्यशीला माता ! मेरे सभी बड़े भाइयों को आपने उपदेश देकर जंगल में घोर तपस्या करने एवं कठिन जीवन बिताने के
सत्संग-प्रसंग पर एक जिज्ञासु ने पूज्य बापू जी से प्रश्न कियाः “स्वामी जी ! कृपा करके बतायें कि हमें अभ्यास में रूचि क्यों नहीं होती ?” पूज्य स्वामी जीः “बाबा ! अभ्यास में तब मजा