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शिष्यों का अनुपम पर्व
- Guru Purnima

सद्गुरु के आदर, पूजन एवं पावन स्मृति का पर्व..

Guru Purnima 2023 : सदगुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकटाने का पर्व ।

आषाढ़ी पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा कहा जाता है । इस ‘व्यासपूर्णिमा’ को ‘गुरुपूर्णिमा’ भी कहा जाता है । वेदव्यासजी ने ऋषियों के बिखरे अनुभवों को समाज भोग्य बनाकर व्यवस्थित किया । पंचम वेद ‘महाभारत’ की रचना इसी पूर्णिमा के दिन पूर्ण की और विश्व के सुप्रसिद्ध आर्ष ग्रंथ ब्रह्मसूत्र का लेखन इसी दिन आरंभ किया । तब देवताओं ने वेदव्यासजी का पूजन किया । तभी से व्यासपूर्णिमा मनायी जा रही है । इस दिन जो शिष्य ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु के श्रीचरणों में पहुँचकर संयम-श्रद्धा-भक्ति से उनका पूजन करता है उसे वर्षभर के पर्व मनाने का फल मिलता है । और पूनम (पूर्णिमा) तो तुम मनाते हो लेकिन गुरुपूनम तुम्हें मनाती है कि भैया ! संसार में बहुत भटके, बहुत अटके और बहुत लटके । जहाँ गये वहाँ धोखा ही खाया, अपने को ही सताया । अब जरा अपने आत्मा में आराम पाओ । गुरु शिखर ! तिनका थोड़े से हवा के झोंके से हिलता है, पत्ते भी हिलते हैं लेकिन पहाड़ नहीं डिगता । वैसे ही संसार की तू-तू, मैं-मैं, निंदा-स्तुति, सुख-दुःख, कूड़ कपट, छैल छबीली अफवाहों में जिनका मन नहीं डिगता, ऐसे सद्गुरुओं का सान्निध्य देने वाली है गुरूपूर्णिमा ।

लाख उपाय कर ले प्यारे कदे न मिलसि यार ।
बेखुद हो जा देख तमाशा आपे खुद दिलदार ॥

वेद के गूढ़ रहस्यों का विभाग करनेवाले कृष्णद्वैपायन की याद में यह गुरुपूर्णिमा महोत्सव मनाया जाता है । व्यासपूर्णिमा हमें स्वतंत्र सुख, स्वतंत्र ज्ञान, स्वतंत्र जीवन का संदेश देती है, हमें अपनी महानता का दीदार कराती है ।
मानव ! तुझे नहीं याद क्या, तू ब्रह्म का ही अंश है ।
व्यासपूर्णिमा कहती है कि तुम अपने भाग्य के आप विधाता हो, तुम अपने आनंद के स्रोत आप हो । सुख हर्ष देगा, दुःख शोक देगा लेकिन ये हर्ष-शोक आयेंगे-जायेंगे, तुम तुम्हारे आनंदस्वरूप को जगाओ फिर सब बौने हो जायेंगे । यह वह पूनम है जो हर जीव को अपने भगवत्स्वभाव में स्थिति करने में बड़ा सहयोग देती है ।

Importance of Guru

  • जो गुरु हैं वे ही शिव हैं, जो शिव हैं वे ही गुरु हैं । दोनों में जो अन्तर मानता है वह गुरुपत्नीगमन करने वाले के समान पापी है ।
  • गुरुदेव की सेवा ही तीर्थराज गया है । गुरुदेव का शरीर अक्षय वटवृक्ष है । गुरुदेव के श्रीचरण भगवान विष्णु के श्रीचरण हैं । वहाँ लगाया हुआ मन तदाकार हो जाता है । विद्या गुरुदेव के मुख में रहती है और वह गुरुदेव की भक्ति से ही प्राप्त होती है । यह बात तीनों लोकों में देव, ॠषि, पितृ और मानवों द्वारा स्पष्ट रूप से कही गई है ।
  • ‘गु’ शब्द का अर्थ है अंधकार (अज्ञान) और ‘रु’ शब्द का अर्थ है प्रकाश (ज्ञान) । अज्ञान को नष्ट करने वाले जो ब्रह्मरूप प्रकाश हैं वह गुरु हैं । इसमें कोई संशय नहीं है । सद्गुरु अज्ञान का हरण करके, जन्म-मरण के बंधनों को काटकर तुम्हें स्वरूप में स्थापित कर देते हैं ।
  • आज तक तुमने दुनिया का जो कुछ भी जाना है, वह आत्मा-परमात्मा के ज्ञान के आगे दो कौड़ी का भी नहीं है । वह सब मृत्यु के एक झटके में अंजाना हो जायेगा लेकिन सद्गुरु तो दिल में छुपे हुए दिलबर का ही दीदार करा देते हैं । ऐसे समर्थ सद्गुरुओं की दीक्षा जब हमें मिल जाती है तो जीवन की आधी साधना तो ऐसे ही पूरी हो जाती है ।
  • भगवान शिवजी कहते हैं कि “गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं, गुरु में निष्ठा ही परम तप है । गुरु से अधिक और कुछ नहीं है ।”

श्री गुरु स्तोत्रम् अनुवाद के साथ पढ़ें अथवा Download करें

Why is Guru Purnima Celebrated ?

शाश्वत सुख की मानवीय माँग की पहचान और उसकी पूर्ति करने वाला महोत्सव है – गुरुपूर्णिमा । यह आषाढी पूर्णिमा को मनाया जाता है तथा इसका बड़ा भारी महत्व है । यह उत्सव सब उत्सवों का सिरताज है । अन्य उत्सव तो लौकिक होते हैं, दैविक होते हैं परंतु यह तो आध्यात्मिकता से भरा हुआ, लौकिकता को सजाता हुआ और दैविक रहस्य बताता हुआ उत्सव है । यह उत्सव व्रत भी है और पर्व भी यह सर्वोत्तम सुख- आत्मसुख के द्वार खोलने का पर्व है । भारतीय संस्कृति के प्रमुख चालीस पर्वों में यह पर्व इस महान संस्कृति का प्रसाद बांटने वाला महास्तंभ है । भगवान वेदव्यासजी का जन्म आज ही के दिन हुआ था, इसलिए इस पर्व को व्यासपूर्णिमा भी कहते हैं । वेदव्यासजी में इतना बल, सामर्थ्य तथा मानवीय माँग को जानने की इतनी योग्यता थी कि उन्होंने वेदों का विभाजन किया तथा अठारह पुराण, अठारह उपपुराण, विश्व का सर्वप्रथम आर्षग्रंथ ब्रह्मसूत्र, पंचम वेद ‘महाभारत’ आदि की रचना की । विश्वमानव के मंगल की जो कोई सीख और उपदेश है, वह किसी भी धर्म या मजहब में हो, सीधा-अनसीधा भगवान वेदव्यासजी का ही प्रसाद है । इस विषय में यह उक्ति बहुत प्रसिद्ध है :
व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्वम् ।
गुरुपूर्णिमा पर्व गुरुपूजन के साथ-साथ उपवास-तप-साधना का पर्व है । इस दिन गुरुभक्त गुरुपूजन के बाद ही कुछ खाते हैं । यह पर्व लघु जीवन और लघु आदतों से ऊपर उठाकर शाश्वत सुख, गुरु सुख और शाश्वत जीवन देनेवाला महापर्व है ।

Significance
&
Importance
of
Guru Purnima

Why is Guru Purnima Celebrated ?

शाश्वत सुख की मानवीय माँग की पहचान और उसकी पूर्ति करने वाला महोत्सव है – गुरुपूर्णिमा । यह आषाढी पूर्णिमा को मनाया जाता है तथा इसका बड़ा भारी महत्व है ।

यह उत्सव सब उत्सवों का सिरताज है । अन्य उत्सव तो लौकिक होते हैं, दैविक होते हैं परंतु यह तो आध्यात्मिकता से भरा हुआ, लौकिकता को सजाता हुआ और दैविक रहस्य बताता हुआ उत्सव है । यह उत्सव व्रत भी है और पर्व भी यह सर्वोत्तम सुख- आत्मसुख के द्वार खोलने का पर्व है । भारतीय संस्कृति के प्रमुख चालीस पर्वों में यह पर्व इस महान संस्कृति का प्रसाद बांटने वाला महास्तंभ है ।

भगवान वेदव्यासजी का जन्म आज ही के दिन हुआ था, इसलिए इस पर्व को व्यासपूर्णिमा भी कहते हैं । वेदव्यासजी में इतना बल, सामर्थ्य तथा मानवीय माँग को जानने की इतनी योग्यता थी कि उन्होंने वेदों का विभाजन किया तथा अठारह पुराण, अठारह उपपुराण, विश्व का सर्वप्रथम आर्षग्रंथ ब्रह्मसूत्र, पंचम वेद ‘महाभारत’ आदि की रचना की । विश्वमानव के मंगल की जो कोई सीख और उपदेश है, वह किसी भी धर्म या मजहब में हो, सीधा-अनसीधा भगवान वेदव्यासजी का ही प्रसाद है । इस विषय में यह उक्ति बहुत प्रसिद्ध है :

व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्वम् ।
गुरुपूर्णिमा पर्व गुरुपूजन के साथ-साथ उपवास-तप-साधना का पर्व है । इस दिन गुरुभक्त गुरुपूजन के बाद ही कुछ खाते हैं । यह पर्व लघु जीवन और लघु आदतों से ऊपर उठाकर शाश्वत सुख, गुरु सुख और शाश्वत जीवन देनेवाला महापर्व है ।

Significance & Importance of Guru Purnima

2023 Guru Purnima Puja Vidhi

इस दिन सद्गुरु की पूजा से वर्षभर की पूर्णिमाओं के व्रत-उपवास का पुण्य होता है ।

साधक पूनम के दिन व्रत रखे सद्गुरु का मानसिक अर्घ्य-पाद्य आदि से पूजन करें, फिर मन से ही तिलक करें, पुष्पों की माला पहनाये और उनकी तरफ एकटक देखे । देखते-देखते उनके ज्ञान की स्मृति करें ।

अरे, पानी का प्याला कोई पिलाता है तो धन्यवाद देना पड़ता है, नहीं तो गुणचोर (कृतघ्न) होने का दोष लगता है । किसी ने रोटी खिला दी अथवा हमें 4 पैसे की मदद कर दी तब भी कृतघ्न नहीं होना चाहिए । कृतघ्न व्यक्ति बड़ा पापी माना जाता है । जब संसारी बात में कृतघ्न व्यक्ति दोषी हो जाता है तो सद्गुरु ने तो इतना सारा ज्ञान, भक्ति, करुणा कृपा का खजाना दिया, इतना पुण्य और सुखद जीवन जीने की कला दी तो ऐसे सद्गुरुओं के ऋण से शिष्य, भक्त ऋण न होकर कृतज्ञता के दोष से दब जायें एवं जन्मे मरे ऐसा न हो और शिष्यों का ज्ञान कहीं नष्ट न हो जाय उनकी भक्ति और साधना बिखर न जाय इसलिए शिष्य सद्गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं ।

गुरुपूर्णिमा के दिन तो विशेषरूप से गुरु का मानसिक पूजन करें, सुमिरन करे और गुरुदेव ने जो बताया उसको अपने जीवन में उतारने का संकल्प करें ।

मानस पूजन की विधि संक्षिप्त में जानने तथा Audio & Video में Download करें :

Jap Mala Pujan Vidhi

शास्त्रों के अनुसार जपमाला जागृत होती है यानी वह जड़ नहीं चेतन होती है । माना जाता है कि देवशक्तियों के ध्यान के साथ-साथ अंगूठे या उंगलियों के अलग-अलग भागों से गुजरते माला के दाने आत्मा ब्रह्म को जागृत करते हैं । इन स्थानों से दैविक ऊर्जा मन और शरीर में प्रवाहित होती है इसलिए यह भी देवस्वरूप है । जिससे मिलने वाली शक्ति या ऊर्जा अनेक दुख्यों का नाश करती है । यही कारण है कि मंत्रजप के पहले जपमाला की भी विशेष मंत्र से स्तुति एवं पूजा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है ।

विधिवत माला पूजन की विधि विस्तार में पढ़े

Jap Mala Pujan Vidhi

शास्त्रों के अनुसार जपमाला जागृत होती है यानी वह जड़ नहीं चेतन होती है । माना जाता है कि देवशक्तियों के ध्यान के साथ-साथ अंगूठे या उंगलियों के अलग-अलग भागों से गुजरते माला के दाने आत्मा ब्रह्म को जागृत करते हैं । इन स्थानों से दैविक ऊर्जा मन और शरीर में प्रवाहित होती है इसलिए यह भी देवस्वरूप है । जिससे मिलने वाली शक्ति या ऊर्जा अनेक दुख्यों का नाश करती है । यही कारण है कि मंत्रजप के पहले जपमाला की भी विशेष मंत्र से स्तुति एवं पूजा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है ।

विधिवत माला पूजन की विधि विस्तार में पढ़े

Importance of Guru Puja: Guru Poonam 2023 Special

जब तक मनुष्य को सच्चे सुख की भूख है तब तक वास्तविक सद्गुरुओं का पूजन होता रहेगा जब तक मनुष्य को सच्ची शांति और वास्तविक जीवन की मांग है तब तक समाज में ऐसे सत्पुरुषों की माँग बनी रहेगी । जैसे पिता का धन पुत्र को मिलता है, शिक्षक का ज्ञान विद्यार्थी को मिलता है ऐसे ही सद्गुरु का सत्स्वरूप-रस सत्शिष्य के हृदय में उड़ेला जाता है ।
संत कबीरजी कहते हैं :

सद्गुरु मेरा सूरमा करे शब्द की चोट ।
मारे गोला प्रेम का हरे भरम की कोट ।

हमें वास्तविक जीवन का आनंद, माधुर्य प्राप्त कराने के लिए जो हमारी वृत्तियों को सुव्यवस्थित करने में सक्षम हैं ऐसे सिद्धपुरुष वेदव्यासजी जैसे ब्रह्मज्ञान के दाता सद्गुरुओं के पूजन का दिन है गुरुपूनम ।

शिक्षकों, प्रोफेसरों या गाना बजाना अथवा दंगल सिखानेवाले गुरुओं से सद्गुरु विलक्षण होते हैं । इस आषाढी पूनम को गुरु का पूजन मतलब जो मन-इन्द्रियों के आकर्षणों से हमको बचाकर भगवद् रस की तरफ ले जाने में सक्षम हों, श्रोत्रिय हों अर्थात् शास्त्रों के ज्ञाता हों और परमात्मरस अनुभव कर रहे हों और दूसरों को उसका अनुभव कराने की रीत जानते हों एवं जिनकी सत्स्वरूप में स्थिति हो ऐसे सद्गुरुओं की पूजा है ।

गुरु पादुका का विधिवत एवं मानसिक पूजन कैसे करें ?

2023 Guru Purnima Message, Greetings, Cards

FAQ’s of Guru Poonam 2023

What should we do on Guru Purnima 2023 ?

गुरु पादुका पूजन एवं आर्त भाव से मानसिक पूजन करना चाहिए ।

How many Guru Poornima are there in 2023 ?

एक, 3 जुलाई 2023

Story of Guru Purnima

पूरा विस्तार से पढ़ें :- Click Here

When is Guru Purnima 2023 ?

सोमवार, 3 जुलाई 2023

What is special about Guru Purnima ?

Happy Guru Purnima 2023 Images, Pics, Photos, PNG

Guru Purnima Quotes in Hindi & Happy Guru Poonam Quotes

गुरुरूपी तीर्थ बड़ा उत्तम तीर्थ है । गुरु के अनुग्रह से शिष्य को लौकिक आचार-व्यवहार का ज्ञान होता है, विज्ञान की प्राप्ति होती है और वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है ।

सर्वेषामेव लोकानां यथा सूर्यः प्रकाशकः ।
गुरुः प्रकाशकस्तद्वच्छिष्याणां बुद्धिदानतः ॥

‘जैसे सूर्य सम्पूर्ण लोकों को प्रकाशित करते हैं, उसी प्रकार गुरु शिष्यों को उत्तम बुद्धि देकर उनके अन्तर्जगत को प्रकाशपूर्ण बनाते हैं ।’ (पद्म पुराण, भूमिखंड: 85.8)

सूर्य दिन में प्रकाश करते हैं, चन्द्रमा रात में प्रकाशित होते हैं और दीपक केवल घर के भीतर उजाला करता है, परन्तु गुरु अपने शिष्य के हृदय में सदा ही प्रकाश फैलाते रहते हैं । वे शिष्य के अज्ञानमय अन्धकार का नाश करते हैं । अतः शिष्यों के लिए गुरु ही सबसे उत्तम तीर्थ हैं ।

नमोऽस्तु गुरवे तुभ्यं सहजानन्दरूपिणे ।
यस्य वाक्यामृतं हन्ति संसार मोहनाभयम् ॥

‘जिनका उपदेशरूपी ‘अमृत’ संसार मोहरूपी व्याधि का नाश करता है, वे सहजानंदरूप आप सद्गुरु को नमस्कार है ।’ अमनस्कयोग’ (उत्तरार्ध, 20)

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