eesh kripa bin guru nahi, guru bina nahi gyan

ईश कृपा बिन गुरु नहीं, गुरु बिना नहीं ज्ञान ।
ज्ञान बिना आत्मा नहीं, गावहिं वेद पुरान ॥

  • आज अनेक आश्रमों, समितियों एवं सेवा-प्रवृत्तियों के मार्गदर्शक व प्रेरणास्थान तथा करोड़ों शिष्यों के सद्गुरु पूजनीय संतशिरोमणि श्री आशारामजी बापू को देखने वाले इसकी कदाचित कल्पना भी न कर पायेंगे कि बापूजी अपनी साधनाकाल में किस प्रकार सद्गुरु साँईं श्री लीलाशाहजी के श्रीचरणों में पहुँचकर उनकी अग्निपरीक्षा में उत्तीर्ण हुए थे ।
  • शिखर के जगमगाते हुए कलश के तेज को देखने वालों को शिखर की नींव के निर्माण में जो तपश्चर्या हुई है वह कहाँ दिख पाती है !!!
  • माता पिता के सुसंस्कार कहो या पूर्वजन्म की दैवी सम्पदा, छोटी उम्र में ही पूज्य बापूजी संसार की असत्यता को जानकर प्रभु-मिलन की तीव्र उत्कंठा के साथ केदारनाथ, वृंदावन जैसे तीर्थों में गये परंतु सच्चा मार्ग और मार्गदर्शक नहीं मिले । वन और गिरी-गुफाओं में घूमते-घूमते आखिर नैनिताल में ब्रह्मनिष्ठ संत भगवत्पाद लीलाशाहजी बापू के आश्रम में पहुँचे ।
  • उनके दर्शन करके ही पूज्यश्री को प्रतीति हो गयी कि ‘अब मेरी खोज पूर्ण हो गयी !’ पूज्यपाद लीलाशाहजी ने भी पूज्य श्री की तीव्र तड़प देखकर उन्हें शिष्यरूप में स्वीकार किया ।
    ~ संत मिलन के संस्मरण