A Short Story from Biography of Maharana Bhim Singh of Mewar.

मेवाड़ (राज.) के महाराणा भीम सिंह के समय मेवाड़ की स्थिति अच्छी नहीं थी । लोग महाराणा की रीति-नीति से असंतुष्ट थे किंतु महाराणा के सामने कोई कुछ भी कहने का साहस नहीं कर पाता था । बिगड़ती हुई स्थिति को सँभालने के उद्देश्य से चारण जाति के कवि एक दिन महाराणा के महल में पहुँचे और कविताओं के माध्यम से सच्चाई का बखान करने लगे । बस, अब क्या था, राजदरबार में हलचल मच गयी । कुछ निंदक लोगों ने महाराणा को बहका दिया और चारणों के विरुद्ध कान भर दिये ।

कुछ ही समय में चारणों को बंदी बना लिया गया तथा समस्त चारणों को 24 घंटों में मेवाड़ छोड़कर चले जाने का आदेश दे दिया गया । घोषणा की गयी कि ‘आदेश का पालन न करनेवाले को बंदी बना लिया जायेगा अथवा मौत की सजा दी जायेगी ।’

सभी चारण मेवाड़ छोड़कर चले गये । कुछ चारण कवि मेवाड़ के जेल में बंदी भी थे । ऐसी स्थिति में एक युवा चारण अजयदान ने प्रतिज्ञा की : ‘एक बार फिर से मैं महाराणा को सत्य से अवगत कराऊँगा । बदले में मुझे मृत्युदंड भी भुगतना पड़े तो स्वीकार करूँगा ।’

 एक दिन महाराणा नगर के बाहर एकांत में भ्रमण कर रहे थे । अजयदान को उचित अवसर मिल गया, उसका वेश बदला हुआ था । वह तुरंत महाराणा के पास पहुँचा और अपनी कविता को गाने लगा । उसकी कविता में अपने चारण भाइयों की सेवाओं का वर्णन और यह निवेदन था कि ‘हे महाराणा ! आप अपनी बुद्धि से काम करें । इस समय आप झूठे प्रशंसकों से घिरे हैं और मेवाड़ की जनता परेशान है ।’

महाराणा ने कविता पढ़ने के ढंग से उसे पहचान लिया और बोले : “तुम यहाँ कैसे रह गये ? मैंने तो तुम्हारी पूरी चारण जाति को राज्य से बाहर निकलवा दिया है ! ‘हुजूर से सही स्थिति अर्ज कर मौत की सजा पाने के लिए ।”

महाराणा का संकेत पाकर अजयदान को बंदी बना के कारागार में डाल दिया गया । एक सप्ताह बाद अजयदान के पास महाराणा का बुलावा आया । जब वह महाराणा के सम्मुख पहुँचा तो उन्होंने उठकर उसका स्वागत किया और बोले : “अजयदानजी ! हमने सात दिन तक आपकी बातों का पता लगाया । सचमुच में मुझे चाटुकार लोगों ने अंधकार में रखा था । मुझे दुःख है कि मैंने आपकी जाति के साहसी, सच्ची बात कहनेवाले लोगों को राज्य से बाहर कर दिया । मैं उन्हें आज ही ससम्मान वापस बुलवा रहा हूँ और आपने जिस साहस के साथ मृत्यु की परवाह किये बिना मेरी आँखें खोलीं, उसके लिए मैं और मेवाड़ की जनता आपके प्रति कृतज्ञ हैं। आज से आप मंत्रि-पद सँभालें ।”

अजयदान : ‘‘नहीं हुजूर ! मैं और मेरी जाति को पद नहीं चाहिए । अगर हमने वह लिया तो फिर हमारी कविताएँ सूख जायेंगी और जो हम आपको कह पाये, कभी नहीं कह सकेंगे ।”

“आप धन्य हैं ! आपकी गौरवशाली जाति धन्य है ! आप जैसे लोगों के रहते मेवाड़ की जनता को कोई शिकायत नहीं रहेगी ।”

हाँ में हाँ मिलाकर हमारे अहंकार को पोषित करनेवाले लोगों से संसार भरा पड़ा है । ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जिनकी नजर हमारी पसंदगी-नापसंदगी से ज्यादा हमारी सच्ची उन्नति पर होती है और जो हमारे अहं को नष्ट करने का साहसपूर्ण कार्य कर पाते हैं । वास्तव में वे ही हमारे वास्तविक हितैषी हैं, सच्चे सलाहकार हैं ।

– लोक कल्याण सेतु, जनवरी 2016