असंभव कुछ नहीं |Nothing is impossible – A True Story
आज रात के बारह बजे मैं जिस कमरे (500 कमरों से) में सो रहा होऊँगा वहाँ आकर मुझे जगा दो तो मैं आत्मा की शक्ति को स्वीकार करूँगा। सन् 1910 की एक घटित घटना है…..:
आज रात के बारह बजे मैं जिस कमरे (500 कमरों से) में सो रहा होऊँगा वहाँ आकर मुझे जगा दो तो मैं आत्मा की शक्ति को स्वीकार करूँगा। सन् 1910 की एक घटित घटना है…..:
एक संत के पास बहरा आदमी सत्संग सुनने आता था। उसे कान तो थे पर वे नाड़ियों से जुड़े नहीं थे। एकदम बहरा, एक शब्द भी सुन नहीं सकता था। किसी ने संतश्री से कहाः
“बाबा जी ! वे जो वृद्ध बैठे हैं, वे कथा सुनते-सुनते हँसते तो हैं पर वे बहरे हैं।”
मालवीयजी के एक मित्र उन्हें धन के सहयोग की अपेक्षा से एक बड़े व्यापारी के घर ले गये। आवाज देने पर सेठजी ने बैठक का द्वार खोला और दोनों अतिथियों को आदर से बिठाया। उस वक्त शाम हो गयी थी और अँधेरा छाने लगा था। बैठक में बिजली नहीं थी, अतः सेठजी ने अपने छोटे पुत्र को लालटेन जलाने को कहा।
पुत्र लालटेन और दियासिलाई लेकर आया। उसने माचिस की एक तीली जलायी परंतु वह लालटेन तक आते-आते बुझ गयी। फिर दूसरी जलायी, वह भी बीच में ही बुझ गयी। जब तीसरी तीली का भी वही हाल हुआ, तब सेठजी लड़के पर नाराज होकर बोलेः “तुमने माचिस की तीन तीलियाँ नष्ट कर दीं। कितने लापरवाह हो !”
एक बार मालवीय जी के पास एक धनी सेठ अपनी कन्या के विवाह का निमन्त्रण-पत्र देने आये। संयोग से जिस युवक के साथ उनकी कन्या का विवाह होने वाला था, वह मालवीय जी का शिष्य था।
राजस्थान में एक हो गये केताजी महाराज। उनके पास एक लड़का आया दीक्षा लेने के लिए।
वे बोले :”अरे,क्या दीक्षा दें, जरा रुको,देखेंगे।”
लड़का भी पक्का था। देखते-देखते,गुरु महाराज की गायें चराते-चराते एक साल हो गया।
एक बार उनके गुरु ख्वाजा बहाउद्दीन ने उनको किसी खास काम के लिए मुलतान भेजा। उन दिनों वहाँ शम्सतबरेज के शिष्यों ने गुरु के नाम का दरवाजा बनाया था और घोषणा की थी कि आज इस दरवाजे से जो गुजरेगा वह जरूर स्वर्ग में जायेगा।
एक मिशनरी ने श्री रामकृष्ण परमहंस से पूछा :”आप माता काली के रोम-रोम में अनेक ब्रह्माण्डों की बातें करते हैं और उस छोटी-सी मूर्ति को काली कहते हैं,यह कैसे ?
इस पर परमहंसजी ने पूछा :”सूरज दुनिया से कितना बड़ा है ?
मिशनरी ने उत्तर दिया :”नौ लाख गुना ।”
जनाबाई का जप समझने की बात है। जनाबाई हर समय विट्ठल नाम का जप करती रहती है। मंत्रजप करते-करते जनाबाई की रगों में.नस-नाड़ियों में एवं पूरे शरीर में मंत्र का प्रभाव छा गया था। वे जिन वस्तुओं को छूतीं,उनमें भी मंत्र की सूक्ष्म तरंगों का संचार हो जाता था। जनाबाई उपले पाथते समय ‘विट्ठल’ नाम का जप करती रहतीं थीं। उनके पाथे हुए उपलों को कोई चुरा ले जाता था।अतः उन्होंने नामदेवजी से फरियाद की।
स्वामी रामकृष्ण को जब गले का कैंसर हो गया था, तब नाग महाशय रामकृष्णदेव की पीड़ा को देख नहीं पाते थे। एक दिन जब नाग महाशय उनको प्रणाम करने गये, तब रामकृष्णदेव ने कहाः”ओह ! तुम आ गये। देखो, डॉक्टर विफल हो गये। क्या तुम मेरा इलाज कर सकते हो?”