आज रात के बारह बजे मैं जिस कमरे (500 कमरों से) में सो रहा होऊँगा वहाँ आकर मुझे जगा दो तो मैं आत्मा की शक्ति को स्वीकार करूँगा।

सन् 1910 की एक घटित घटना है…..:

जर्मनी का एक लड़का वुल्फ मेहफिन स्कूल में ढंग से पढ़ता न था। मास्टर की मार के भय से एक दिन वह स्कूल छोड़कर भाग गया। भागकर वह गाड़ी में जा बैठा किन्तु उसके पास टिकट नहीं था। जब टिकट चेकर टिकट चेक करने के लिए आया तो वह सीट के नीचे जा छुपा किन्तु उसके मन में आया कि ʹयदि टिकट चेकर आकर मुझसे पूछेगा तो मैं क्या करूँगा ? हे भगवान्…! मैं क्या करूँ तू ही बता….ʹ इस प्रकार प्रार्थना करते-करते उसे कुछ अन्तः प्रेरणा हुई। उसने पास में पड़ा हुआ कागज का एक टुकड़ा उठाया और मोड़कर टिकट के आकार का बना दिया। जब टिकट चेकर ने टिकट माँगा तो वुल्फ मेहफिन ने उसी कागज के टुकड़े को देते हुए कहाः “This is my Ticket. यह मेरा टिकट है।” उसने इतनी एकाग्रता और विश्वास से कहा कि टी.सी. को वह कागज का टुकड़ा सचमुच टिकट जैसा लगा।
तब उसने कहाः “लड़के ! जब तेरे पास टिकट है तो तू नीचे क्यों बैठा है ?”
यह कहकर टी.सी. ने उसे सीट दे दी। वुल्फ मेहफिन को युक्ति आ गयी कि प्रार्थना करते-करते मन जब एकाग्र होता है तब आदमी जैसा चाहता है वैसा हो जाता है।

धीरे-धीरे उसने ध्यान करना शुरु किया और उसका तीसरा नेत्र (जहाँ तिलक करते हैं वह आज्ञा चक्र) खुल गया।

फिर तो वह तीसरे नेत्र के प्रभाव से लोगों को जादू दिखाने लगा। जो चीज ʹहैʹ उसे ʹनहींʹ दिखा देता और जो चीज ʹनहींʹ है उसे ʹहैʹ दिखा देता। धीरे-धीरे उसका नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध होने लगा। यहाँ तक कि रशिया के प्रेसिडेण्ट स्तालिन के कान में भी वुल्फ मेहफिन की बात पहुँची।

स्तालिन नास्तिक था। अतः उसने कहाः “ध्यान व्यान कुछ नहीं होता। जाओ पकड़कर लाओ वुल्फ मेहफिन को।”

वुल्फ मेहफिन एक मंच पर खड़ा होकर लोगों को चमत्कार दिखा रहा था, वहीं उसे स्तालिन के सैनिकों ने कैद करके स्तालिन के पास पहुँचा दिया।

स्तालिन ने कहाः “यह जादू वादू कैसे संभव हो सकता है ?”

मेहफिनः “Nothing is impossible. Everything is possible in the world.”

असंभव कुछ नहीं है। इस दुनिया में आत्मा की शक्ति से सब कुछ संभव है। जहाँ आप आत्मशक्ति को लगायें वहाँ वह कार्य हो जाता है।

जैसे विद्युत को आप फ्रीज में लगायें तो पानी ठण्डा होगा, गीजर में लगायें तो पानी गर्म होगा और सिगड़ी में लगायें तो आग पैदा करेगा। पंप में लगायें तो पानी को ऊपर टंकी तक पहुँचा देगा। विद्युत एक शक्ति है। उसे जहाँ भी लगायेंगे, वहाँ उस साधन के अनुरूप कार्य करेगी। विद्युत शक्ति, अणु शक्ति, परमाणु शक्ति आदि सब शक्तियों का मूल है आत्मा और वह अपने हृदय में रहता है। अतः असंभव कुछ नहीं।

स्तालिनः “यदि सब संभव है तो मैं जैसा कहूँ वैसा तुम करके बताओ। मोस्को की बैंक से एक लाख रूबल लेकर आओ तो मैं तुम्हें मानूँगा। बैंक के चारों ओर मेरे सैनिक होंगे। तुम किसी ओर से पैसे लेकर नहीं जाओगे। बैंक में खाली हाथ जाओगे और बैंक वाले से एक लाख रूबल लेकर आओगे।”

मेहफिनः “मेरे लिए असंभव कुछ नहीं है। मुझे ध्यान की कुँजी पता है।”

मेहफिन गया बैंक के कैशियर के पास और कागज लेकर उसे भरा, और भी जो कुछ करना था वह किया। फिर वह पर्ची कैशियर को दी। कैशियर ने एक लाख रूबल गिनकर मेहफिन को दे दिये। मेहफिन ने वे रूबल ले जाकर स्तालिन को दे दिये। स्तालिन हतप्रभ रह गया कि “यह कैसे संभव हुआ ! तुम्हारे सिवा उस बैंक में दूसरा कोई न जा सके, ऐसा कड़क बंदोबस्त किया गया था। फिर भी तुम पैसे कैसे निकाल लाये ? अच्छा, अब उसे वापस देकर आओ।”

मेहफिन पुनः गया बैंक में कैशियर के पास और बोलाः “कैशियर ! मैंने तुम्हें जो सैल्फ चेक दिया था लाख रूबल का,वह वापस करो।”

कैशियर ने वह कागज निकालकर देखा तो दंग रह गया। ʹइस साधारण कागज की पर्ची पर मैंने लाख रूबल कैसे दे दिये !ʹ सोचकर वह घबरा उठा।
मेहफिन ने कहाः “इस पर्ची पर तुमने मुझे लाख रूबल कैसे दे दिये ?”

कैशियरः “मुझे माफ करो, मेरा कसूर है।”

मेहफिनः “यह तुम्हारा कसूर नहीं है। मैंने ही दृढ़ संकल्प किया था कि यह कागज तुम्हें लाख रूबल का ʹसेल्फ चैकʹ दिखे इसीलिए तुमने लाख रूबल गिनकर मुझे दे दिये। लो, ये लाख रूबल वापस ले लो और मुझे यह कागज दे दो।” कागज ले जाकर स्तालिन को बताया।

स्तालिन के आश्चर्य का पार न रहा। फिर भी वह बोलाः “अच्छा, अगर आत्मा की शक्ति में इतना सामर्थ्य है तो तुम एक चमत्कार और दिखाओ। मैं रात को किस कमरे में रहूँगा यह मुझे भी पता नहीं है। अतः आज रात के बारह बजे मैं जिस कमरे में सो रहा होऊँगा वहाँ आकर मुझे जगा दो तो मैं आत्मा की शक्ति को स्वीकार करूँगा।”

स्तालिन बड़ा डरपोक व्यक्ति था। ʹकोई मुझे मार न डालेʹ इस डर से उसके पाँच सौ कमरे में से वह किस कमरे में रहेगा इस बात का पता उसके अंगरक्षकों तक को नहीं चलने देता था। 112 नंबर के कमरे में सोयेगा कि 312 में, 408 में सोयेगा कि 88 में… इसका पता किसी को नहीं रहता था। स्तालिन ने अपने महल के चारों ओर इस प्रकार सैनिक तैनात कर रखे थे कि कोई भी उसके महल में प्रवेश न कर सके। उसने आदेश दे दिया कि आज रात को कोई भी व्यक्ति उसके महल में प्रवेश न कर सके इस बात का पूरा ध्यान रखा जाये।

फिर भी रात्रि के ठीक बारह बजे स्तालिन के कमरे में पहुँच कर मेहफिन ने दरवाजा खटखटाया। स्तालिन दंग रह गया और बोलाः “तुम यहाँ कैसे आ सके ?”

मेहफिनः “आपने पूरी सेना तैनात कर दी थी ताकि कोई भी महल में प्रवेश न कर सके। सैनिक किसी को भी आने नहीं देंगे किन्तु सेनापति को तो नहीं रोक सकेंगे ? मैंने सेनापति बेरिया (तत्कालीन के.जी.बी. का चीफ) का ड्रेस पहना और दृढ़ संकल्प किया कि ʹमैं सेनापति मि. बेरिया हूँ…. मैं मि. बेरिया हूँ….ʹ और उसी अदा से तुम्हारे महल में प्रवेश किया। मैंने ध्यान कर के पता कर लिया कि आप किस कमरे में सो रहे हो। मुझे आता देखकर आपके सैनिकों ने मुझे सेनापति बेरिया समझा और सलाम करके मुझे आसानी से अंदर आने दिया। इसलिए मैं आपके कमरे तक इतनी सरलता से,आत्मा की शक्ति से ही आ गया।”

आत्मा की यह शक्ति जब तीसरे केन्द्र में आती है तो असंभव सा दिखने वाला कार्य भी संभव हो जाता है। इस शक्ति को अगर योग में लगाये तो व्यक्ति योगी हो जाता है और अगर भगवान को पाने में लगाये तो व्यक्ति भगवान को भी पा लेता है। जिस-जिस कार्य में यह शक्ति लगायी जाती है वह-वह कार्य अवश्य सिद्ध हो जाता है लेकिन शर्त केवल इतनी ही है कि दूसरों को सताने में यह शक्ति न लगाई जाय। अगर दूसरों को सताने में इस शक्ति का उपयोग किया जाता है तो हिरण्यकशिपु जैसी या रावण और कंस जैसी दुर्दशा होती है। यदि अच्छे कार्यों में उपयोग किया जाता है तो व्यक्ति हजारों-लाखों लोगों को उन्नत करने में भी सहायक हो जाता है। फिर वही व्यक्ति महापुरुष बन जाता है….. जैसे, एकनाथ जी महाराज।