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गुरु में हो श्रद्धा अटल तो [Guru Me Ho Shraddha Atal To]

बचपन में रंग अवधूत महाराज का नाम पांडुरंग था | उनके घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी | एक बार उनके पास महाविद्यालय की फीस भरने के लिए पैसे नहीं थे | फीस भरने की अंतिम दिन आ गया | कुछ सहपाठी मित्र आये और बोले : “हम तुम्हारी फीस भर देते हैं, फिर जब तुम्हारे पास पैसे आयें तो दे देना |”
पांडुरंग : “ नहीं, मैंने उधार न लेने का प्रण किया है | मैं किसीसे भी उधार नहीं लुँगा |”

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hindi diwas

Vishwa Hindi हिन्दी Diwas 2022 Speech Poem

‘आनन्दमठ’ जैसी कृति के लेखक बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय बंगाल में न्यायाधीश थे। वे वकीलों को अंग्रेजी की जगह बँगला का उपयोग करने की प्रेरणा दिया करते थे । 
एक दिन उनके न्यायालय में एक अग्रेंज वकील किसी मुकदमे की पैरवी करने आया । उसने बंकिम बाबू को बँगला बोलते देखा तो कहा :”शासन की भाषा अंग्रेजी है । आप इसकी जगह थोड़े-से क्षेत्र की भाषा बँगला का उपयोग क्यों करते हैं ?
आप तो अंग्रेजी के अच्छे जानकार भी हैं ।”

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बुद्धि नष्ट कैसे होती और महान कैसे होती [Dimag Tej Kaise Kare]

बुद्धि को भगवत्प्राप्ति के योग्य बनाओ। जो जरूरी है वह करो, अनावश्यक कार्य और भोग सामग्री में उलझो नहीं। जब बुद्धि बाहर सुख दिखाती है तो क्षीण हो जाती है और जब अंतर्मुख होती है तो महान हो जाती है।

बुद्धि नष्ट कैसे होती है ?

अपने-आप में अतृप्त रहना, असंतुष्ट रहना, किसी के प्रति राग-द्वेष करना, भयभीत रहना, क्रोध करना आदि से बुद्धि कमजोर हो जाती है।

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देशभक्त सुभाषचन्द्र | Subhash Chandra Bose Desh Bhakt

सन् 1915 में सुभाष ने कलकत्ता प्रेसीडेन्सी कॉलेज में बी.ए.की शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रवेश लिया। वहाँ भारतीय विद्यार्थियों के प्रति अंग्रेज प्राध्यापकों का व्यवहार अच्छा न था।

किसी भी छोटे से कारण पर वे छात्रों को बड़ी भद्दी-भद्दी गालियाँ सुना दिया करते थे। एक बार सुभाष की कक्षा के कुछ छात्र अध्ययन-कक्ष के बाहर बरामदे में खड़े थे। प्रोफेसर ई.एफ. ओटेन उधर से गुजरे और बरामदे में खड़े छात्रों पर बरस पड़े- “जंगली, काले, बदतमीज इंडियन….!”

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balak bhakt dhruv story kahani

बालभक्त ध्रुव | Balak Bhakt Dhruv ki kahani in hindi

हे विद्यार्थी ! जीवन में किसी भी क्षेत्र में सफल होना चाहते हो तो कोई-न-कोई अच्छा व्रत ले लो तथा उसका दृढ़तापूर्वक पालन करो। जिस प्रकार गांधी जी ने बाल्यावस्था में राजा हरिशचन्द्र का नाटक देखकर

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माँ, अम्मा जी , माँ मँहगीबा

माँ ने बोये प्रभुप्रीति, प्रभुरस के बीज| Maa ne diye sanskar

माता को शिशु को प्रथम गुरु कहा गया है। इतिहास में ऐसे कितने ही उदाहरण हैं जिनमें महापुरुषों के जीवन में उनकी माताओं द्वारा दिये गये सुसंस्कारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका दृष्टिगोचर होती है। हमारे शास्त्रों

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मनुष्य का चरित्र ही सबसे कीमती – Swami Vivekananda’s Quote

पूज्य संत श्री आशारामजी बापूजी स्वामी विवेकानंद अमेरिका के एक बगीचे में से गुजर रहे थे । उनको सादे कपड़ों में, बिना किसी हैट के खुले सिर देखकर लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ और वे

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सत्संग में जाने का उचित समय कब [Satsang Sunne ka Sahi Time]

( ब्रह्मलीन भगवत्पाद साईं श्री लीलाशाहजी महाराज प्राकट्य दिवस :- 28 मार्च ) एक इंजीनियर भक्त पूज्यपाद भगवत्पाद स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज के सत्संग में रोज आता था । एक दिन उसने अपने मित्र से

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behra admi satsang sunne kyun aata tha

बहरा आदमी सत्संग सुनने क्यों आता था ?

एक संत के पास बहरा आदमी सत्संग सुनने आता था। उसे कान तो थे पर वे नाड़ियों से जुड़े नहीं थे। एकदम बहरा, एक शब्द भी सुन नहीं सकता था। किसी ने संतश्री से कहाः
“बाबा जी ! वे जो वृद्ध बैठे हैं, वे कथा सुनते-सुनते हँसते तो हैं पर वे बहरे हैं।”

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