~पूज्य संत श्री आशारामजी बापूजी
मुगलों के विरुद्ध युद्ध में बाजी राव पेशवा (Peshwa Bajirao) के सेनापतित्व में मराठी सेना सैय्यद बंधुओं की सहायता के लिए दिल्ली के समीप पड़ाव डाले हुए थी।
सेनापति बाजीराव (Peshwa Bajirao)के साथ उनका तरुण पुत्र बाजीराव भी था, जो साहसी, उद्यमी, धैर्यवान, बुद्धिमान और बड़ा पराक्रमी था।
पड़ाव के चारों ओर किसानों के खेत थे। सेनापति का आदेश था कि किसी भी सैनिक द्वारा किसानों की फसल को कोई क्षति नहीं पहुँचनी चाहिए ।
एक मराठी सेना के कुछ उद्दंड सिपाहियों ने घोड़ों को खिलाने के लिए कुछ खेत काट लिये। पीड़ित किसान रोते हुए सेनापति के पास आये पर उस समय वे शिविर में नहीं थे। तब बाजीराव (Peshwa Bajirao) ने उन किसानों की प्रार्थना सुनी। उन पर हुए अत्याचार से वे क्षुब्ध हो उठे।
जाँच करवाने पर बाजीराव (Peshwa Bajirao) को पता चला कि इन उद्दंड सिपाहियों के सेनानायक अद्वितीय मराठा वीर मल्हारराव होल्कर (Malhar Rao Holkar) हैं। बाजीराव ने दोषी सिपाहियों को उनके कृत्य पर फटकार लगायी, जिसे देखकर होल्कर क्रोध से आग बबूला हो गये और बाजीराव पर प्रहार कर बैठे।
होल्कर से कहा गया कि वे अपने दुष्कृत्य के लिए क्षमा माँगे।
होल्कर ने क्षमा तो माँगी पर मन-ही-मन वे बाजीराव से बदला लेने का अवसर ढूँढने लगे।
एक दिन बाजीराव (Peshwa Bajirao) घोड़े पर सवार अकेले ही कहीं से लौट रहे थे, दूसरी तरफ मल्हारराव भी अकेले भ्रमण के लिए निकले थे। संयोगवश दोनों का सामना हो गया। मल्हारराव (Malhar Rao Holkar) ने अपने अपमान का बदला लेने का यही उचित अवसर समझा और बाजीराव की छाती पर भाला तानते हुए बोले :”बोलो, अब बचकर कहाँ जाओगे ?”
बाजीराव (Peshwa Bajirao) इससे तनिक भी विचलित नहीं हुए, थोड़ा शांत होकर बोले :
“मल्हारराव ! जीवन-मृत्यु तो वीरों के लिए खेलमात्र है। यदि लड़ना ही चाहते हो तो मुझे शस्त्र दो और अपने शौर्य की शौर्य की परीक्षा कर लो परंतु इसके पूर्व यह समझ लो कि इस प्रकार आपस में लड़कर प्राण गँवाने से क्या मिलेगा ? क्या आपसी लड़ाई से हम अपने लक्ष्य से चूक नहीं जायेंगे ?
क्यों न हम आपसी वैर छोड़कर देश-संस्कृति की रक्षा के लिए एकजुट होने का संकल्प लें !”
देशभक्त बाजीराव के अविचल धैर्य और हितकारी वाणी का मल्हारराव के अंतर्मन में गहरा प्रभाव पड़ा। उनके मन में कुछ ऐसी दैवी प्रेरणा हुई कि वे भाला फेंक घोड़े से उतरकर बाजीराव की तरफ दौड़े, नेत्रों से अश्रुधार बह चली, सारा द्वेषभाव धुल गया।
मल्हार राव ने ईश्वर के साक्षी में आखिरी दम तक बाजीराव के साथ शत्रुओं से लोहा लेने की प्रतिज्ञा ली। इतिहास साक्षी है कि अजातशत्रु बाजीराव की दूरदृष्टि और प्रखर देशभक्ति से प्रेरित होकर मल्हारराव ही नहीं, सैंकड़ों शूरवीर प्राण हथेली पर लिए उनके साथ कदम मिलाकर चलते रहे।
✍🏻आज अनेक विदेशी शक्तियाँ भारतीय संस्कृति की जड़े खोदने में लगी हैं। हमें आपस में ही एक-दूसरे से लड़ा-भिड़ाकर वे अपना उद्देश्य सिद्ध करना चाहती हैं। हमें एकजुट होकर, कंधे-से-कंधा मिलाकर उनके बद इरादों को नाकाम कर देना है, ताकि भारतीय संस्कृति की अखंडता बनी रहे और वह मध्याकाश के सूर्य की नाईं जगमगाती रहे।
~लोक कल्याण सेतु/सित.-अक्टू./२०१०