➠ जो इन्द्रिय-गणों का, मन-बुद्धि गणों का स्वामी है, उस अंतर्यामी विभु का ही वाचक है ‘गणेश’ शब्द ।

‘गणानां पतिः इति गणपतिः ।’

➠ उस निराकार परब्रह्म को समझाने के लिए ऋषियों ने और भगवान ने क्या लीला की है !
कथा आती है, शिवजी कहीं गये थे । पार्वतीजी ने अपने योगबल से एक बालक पैदा कर उसे चौकीदारी करने रखा ।

➠ शिवजी जब प्रवेश कर रहे थे तो वह बालक रास्ता रोककर खड़ा हो गया और शिवजी से कहा : ‘‘आप अंदर नहीं जा सकते ।“
शिवजी ने त्रिशूल से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया । पार्वतीजी ने सारी घटना बतायी । शिवजी बोले : ‘अच्छा-अच्छा, यह तुम्हारा मानसपुत्र है । चलो, तुम्हारा मानसपुत्र है तो हम भी इसमें अपने मानसिक बल की लीला दिखा देते हैं ।“

➠ शिवजी ने अपने गण को कहा : ‘‘जाओ, जो भी प्राणी मिले उसका ,सिर ले आओ ।“ गण हाथी का सिर ले आये और शिवजी ने उसे बालक के धड़ पर लगा दिया ।

➠ सर्जरी की कितनी ऊँची घटना है ! बोले, ‘मेरी नाक सर्जरी से बदल दी, मेरा फलाना बदल दिया…’ अरे, सिर बदल दिया तुम्हारे भोले बाबा ने ! कैसी सर्जरी है और फिर इस सर्जरी से लोगों को कितना समझने को मिला !

➠ समाज को अनोखी प्रेरणा मिली :

● गणेशजी के कान बड़े सूपे जैसे हैं । वे यह प्रेरणा देते हैं कि जो कुटुम्ब का बड़ा हो, समाज का बड़ा हो उसमें बड़ी खबरदादरी होनी चाहिए । सूपे में अन्न-धान में से कंकड़-पत्थर निकल जाते हैं । असार निकल जाता है, सार रह जाता है । ऐसे ही सुनो लेकिन सार-सार ले लो । जो सुनो वह सब सच्चा न मानो, सब झूठा न मानो, सारसार लो । यह गणेशजी के बाह्य विग्रह से प्रेरणा मिलती है ।

● गणेशजी की सूँड लम्बी है अर्थात् वे दूर की वस्तु की भी गंध ले लेते हैं । ऐसे ही कुटुम्ब का जो अगुआ है, उसको कौन, कहाँ, क्या कर रहा है या क्या होनेवाला है इसकी गंध आनी चाहिए ।

● हाथी के शरीर की अपेक्षा उसकी आँखें बहुत छोटी हैं लेकिन सूई को भी उठा लेता है हाथी । ऐसे ही समाज का, कुटुम्ब का अगुआ सूक्ष्म दृष्टिवाला होना चाहिए । किसको अभी कहने से क्या होगा ? थोड़ी देर के बाद कहने से क्या होगा ? तोल-मोल के बोले, तोल-मोल के निर्णय करे ।

● भगवान गणेशजी की सवारी क्या है ? चूहा ! इतने बड़े गणपति चूहे पर कैसे जाते होंगे ? यह प्रतीक है समझाने के लिए कि छोटे-से-छोटे आदमी को भी अपने सेवा में रखो । बड़ा आदमी तो खबर आदि नहीं लायेगा लेकिन चूहा किसीके भी घर में घुस जायेगा । ऐसे छोटे-से-छोटे आदमी से भी कोई-न-कोई सेवा लेकर आप दूर तक की जानकारी रखो और अपना संदेश, अपना सिद्धांत दूर तक पहुँचाओ । ऐसा नहीं की चूहे पर गणपति बैठते हैं और घर-घर जाते हैं । यह संकेत है आध्यात्मिक ज्ञान के जगत में प्रवेश पाने का ।

~ऋषि प्रसाद, अगस्त 2013