❀ गुरु-सन्देश

जहाँ दृढ़ विश्वास एवं श्रद्धा होती है, वहाँ प्रभु स्वयं साकार रूप धारण करके भोजन स्वीकार करें, इसमें क्या आश्चर्य !

गणपति के भक्त मोरया बापा, विठ्ठल के भक्त तुकारामजी एवं श्री रघुवीर जी के भक्त श्री समर्थ – तीनों आपस में मित्र संत थे।

➠ किसी भक्त ने हक की कमाई करके,चालीस दिन के लिए अखंड कीर्तन का आयोजन करवाया । पूर्णाहुति के समय दो हजार भक्त कीर्तन कर रहे थे । उन भक्तों के लिए बड़ी सात्विकता एवं पवित्रता से भोजन बना था ।

➠ किसी ने कहा : ‘‘श्री समर्थजी को श्री सिया-राम साकार रूप में दर्शन देते हैं । तुकारामजी महाराज की भक्ति से प्रसन्न होकर विठ्ठल साकार रूप प्रगट कर देते हैं ।

गणानांपतिः इति गणपतिः ।

➠ इन्द्रिगण के जो स्वामी हैं, सच्चिदानंद आत्मदेव हैं वे गणपति मोरया बापा की दृढ उपासना के बल से निर्गुण-निराकार होकर भी सगुण-साकार गणपति के रूप में प्रगट हो जाते हैंं । ये तीनों महान संत हमारी सभा में विराजमान हैं । क्यों न हम उन्हें हृदयपूर्वक प्रार्थना करें कि वे अपने-अपने इष्टदेव का आह्वान करके,उन्हें भोजन-प्रसाद करवायें, बाद में हम सब प्रसाद ग्रहण करें ?!”

➠ सबने सहमति प्रदान कर दी । तब उन्होंने श्री समर्थ से प्रार्थना की । श्री समर्थ ने मुस्कुराते हुए तुकोबा की तरफ नजर फेंकी और कहा : ‘‘यदि तुकोबा विठ्ठल को बुलायें तो मैं सियाराम का आह्वान करने का प्रयत्न करूँगा।”

➠ तुकारामजी मंद-मंद मुस्कुराते एवं विनम्रता का परिचय देते हुए बोले : ‘‘अगर समर्थ की आज्ञा है तो मैं जरूर विठ्ठल को आमंत्रित करूँगा लेकिन मैं श्री समर्थ से यह प्रार्थना करता हूँ कि वे श्री सियाराम के दर्शन करवाने की कृपा करें । फिर दोनों संतों ने मीठी नजर डाली मोरया बापा पर और बोले : ‘‘बापा ! अगर विघ्नविनाशक श्री गजानन संतुष्ट हैं तो आप उनका आह्वान करियेगा । मोरया बापा भी मुस्कुरा पड़े। उदयपुर के पास नाथद्वारा है । वहाँ वल्लभाचार्य के दृढ़ संकल्प और प्रेम के बल से भगवान श्रीनाथजी ने उनके हाथ से दूध का कटोरा लेकर पिया था । श्री रामकृष्ण परमहंस के हाथों से माँ काली भोजन को स्वीकार कर लेती थीं । धन्ना जाट के लिए भगवान ने सिलबट्टे से प्रगट होकर उसका रूखा-सूखा भोजन भी बड़े प्रेम से स्वीकार किया था ।

➠ श्री समर्थ रामदास ने आसन लगवाये । तुकारामजी एवं मोरया बापा ने सम्मति दी और तीनों संत आभ्यांतर-बाह्य शुचि करके अपने-अपने इष्टदेव का आह्वान करने लगे ।

➠ श्रीरामकृष्ण परमहंस कहते हैं : ‘‘जब तुम्हारा हृदय और शब्द एक होते हैं तो प्रार्थना फलित होती है।

➠ तीनों अपने-अपने इष्टदेव का आह्वान कर ही रहे थे कि इतने में देखते-ही-देखते एक प्रकाशपुंज धरती की ओर आने लगा । उस प्रकाशपुंज में सियाराम की छवि दिखने लगी और वे आसन पर विराजमान हुए । फिर विठ्ठल भी पधारे तथा गणपति दादा भी पधारे एवं अपने-अपने आसन पर विराजमान हुए ।

➠ दो हजार भक्तों ने अपने चर्मचक्षुओं से उन साकार विग्रहों के दर्शन किये एवं उन्हें प्रसाद पाते देखा । उनके प्रसाद पाने के बाद ही सब लोगों ने प्रसाद लिया।
इस घटना को महाराष्ट्र के लाखों लोग जानते-मानते हैं । कैसी दिव्य महिमा है संतों-महापुरुषों की ! कितना बल है दृढ़ विश्वास में !

✸ सीख : जहाँ दृढ़ विश्वास एवं श्रद्धा होती है वहाँ कोई भी कार्य असम्भव नहीं है । अपने को दीन-हीन दुर्बल न समझकर हमारे अंदर अथाह सामर्थ्य है उसे जगाकर अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए ।

~ {बाल संस्कार पाठ्यक्रम से-सितम्बर/दूसरा सप्ताह}