Swami Vivekanand Maa ke Sanskar

Maa Ke Sanskar in Swami Vivekananda's Life: Matru Pitru Pujan Divas 2021 Special

  • संतान पर माता-पिता के गुणों का  बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है । पूरे परिवार में माँ के जीवन और उसकी शिक्षा का संतान पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है । एक आदर्श माँ अपनी संतान को सुसंस्कार देकर उसे सर्वोत्तम लक्ष्य तक पहुँचाने में बहुत सहायक हो सकती है । इस बात को समझनेवाली और उत्तम संस्कारों से सम्पन्न थी माता भुवनेश्वरी देवी ।
  • सुसंस्कार सिंचन हेतु माता भुवनेश्वरी देवी बचपन में नरेन्द्र को अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनातीं । वे जब भगवान श्रीरामजी के कार्यों में अपने जीवन को अर्पित कर देनेवाले वीर-भक्त हनुमानजी के अलौकिक कार्यों की कथाएँ सुनातीं तो नरेन्द्र को बहुत ही अच्छा लगता ।
  • माता से उन्होंने सुना कि हनुमानजी अमर हैं, वे अभी जीवित हैं । तब से हनुमानजी के दर्शन हेतु नरेन्द्र के प्राण छटपटाने लगे ।
  • एक दिन नरेन्द्र बाहर हो रही भगवत्कथा सुनने गये । कथाकार पंडित जी नाना प्रकार की अलंकारिक भाषा में हास्य रस मिलाकर हनुमानजी के चरित्र का वर्णन कर रहे थे । नरेन्द्र धीरे-धीरे उनके पास जा पहुँचे । पूछा : ‘‘पंडितजी ! आपने जो कहा कि हनुमानजी केला खाना पसंद करते हैं और केले के बगीचे में ही रहते हैं तो क्या मैं वहाँ जाकर उनके दर्शन पा सकूँगा ? “
  • बालक में हनुमानजी से मिलने की कितनी प्यास थी, कितनी जिज्ञासा थी इस बात की गम्भीरता को पंडितजी समझ न सके । उन्होंने हँसते हुए कहा : ‘‘हाँ बेटा ! केले के बगीचे में ढूँढने पर तू हनुमानजी को पा सकते हो। बालक घर न लौटकर सीधे बगीचे में जा पहुँचा । वहाँ केले के एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया और हनुमानजी की प्रतीक्षा करने लगा । काफी समय बीत गया पर हनुमानजी नहीं आये । अधिक रात बीतने पर निराश हो बालक घर लौट आया ।
  • माता को सारी घटना सुनाकर दुःखी मन से पूछा : ‘‘माँ ! हनुमानजी आज मुझसे मिलने क्यों नहीं आये ?” बालक के विश्वास के मूल पर आघात करना बुद्धिमति माता ने उचित न समझा ।
  • उसके मुखमंडल को चूमकर माँ ने कहा : ‘‘बेटा ! तू दुःखी न हो, हो सकता है आज हनुमानजी श्रीरामजी के काम से कहीं दूसरी जगह गये हों, किसी और दिन मिलेंगे ।”
  • आशामुग्ध बालक का चित्त शांत हुआ,उसके मुख पर फिर से हँसी आ गयी ।
  • माँ के समझदारी पूर्ण उत्तर से बालक के मन से हनुमानजी के प्रति गम्भीर श्रद्धा का भाव लुप्त नहीं हुआ, जिससे आगे चलकर हनुमानजी के ब्रह्मचर्य व्रत से प्रेरणा पाकर उसने भी ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया ।

कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर-मध्ये च सरस्वति ।
कर-मूले तू गोविन्दः, प्रभाते कर दर्शनं ।।

  • अर्थात, मेरे हाथों के अग्र भाग में लक्ष्मी जी का वास है, मेरे हाथों के मध्य भाग में सरस्वती जी हैं; मेरे हाथों के मूल में गोविन्द हैं, इस भाव से अपने दोनों हाथों के दर्शन करता हूँ…
  • फिर, जो नथुना चलता हो, वही पैर धरती पर पहले रखें; दाँया चलता हो, तो 3 कदम आगे बढायें, दांए पैर से ही । बाँया चलता हो, तो 4 कदम आगे बढायें, बाँए पैर से ही ।
  • नूतन वर्ष के दिन जो व्यक्ति हर्ष और आनंद से बिताता है, उसका पूरा वर्ष हर्ष और आनंद से जाता है ।
  • वर्ष के प्रथम दिन आसोपाल (अशोक के पत्ते) के और नीम के पत्तों का तोरण लगायें और वहां से गुजरें तो वर्षभर खुशहाली और निरोगता रहेगी ।
  • आभिभावकों से : बालमन में देवदर्शन की उठी इस अभिलाषा को,श्रद्धा की इस छोटी-सी चिंगारी को देवस्वरूपा माँ ने ऐसा तो प्रज्वलित किया कि यह अभिलाषा ईश्वर-दर्शन की तड़प बन गयी और नरेन्द्र की यह तड़प सद्गुरु रामकृष्ण परमहंसजी के चरणों में पहुँचकर पूरी हुई । सद्गुरु की कृपा ने नरेन्द्र को स्वामी विवेकानंद बना दिया । देह में रहे हुए विदेही आत्मा का साक्षात्कार कराके परब्रह्म परमात्मा में प्रतिष्ठित कर दिया ।
  • सीख : शुद्ध मन से किया गया शुभ संकल्प ईश्वर जरूर पूरा करते हैं और जीवन में यदि महान बनना है तो बचपन से महान संस्कार मिलना बहुत ही जरूरी है ।