पंजाब केसरी रणजीत सिंह के बचपन की यह बात है। उनके पिता महासिंह के पास एक जौहरी जवाहरात लेकर आया। राजा, रानी और राजकौर जवाहरात देखने बैठे। जौहरी उत्साहपूर्वक एक के बाद एक चीज दिखाता। इतने में बाल कुमार का आगमन हुआ।
लाडले कुमार ने कहाः “पिता जी ! मेरे लिए भी हीरे की एक अंगूठी बनवाओ न ! मेरी इस उँगली पर वह शोभायमान होगी।”
पिता का प्रेम उमड़ पड़ा। रणजीत सिंह को आलिंगन देते हुए वे बोलेः “मेरा पुत्र ऐसे साधारण हीरे क्यों पहने ? ये हीरे तो साधारण हैं।”
राजकौर ने पूछाः “तो फिर आपका इकलौता बेटा कैसे हीरे पहनेगा?”
महासिंह ने कोई दृढ़ स्वर से कहाः “कोहीनूर।”
राजकौर ने पूछाः “कोहीनूर अब कहाँ है पता है ?”
महासिंहः “हाँ। अभी वह कोहीनूर अफगानिस्तान के एक अमीर के पास है। मेरा लाल तो वही हीरा पहनेगा। क्यों बेटा पहनेगा न ?”
रणजीत सिंह ने सिर हिलाकर कहाः “जी पिता जी ! ऐसे साधारण हीरे कौन पहने ? मैं तो कोहीनूर ही पहनूँगा।”
……और आखिर रणजीत सिंह कोहीनूर पहन कर ही रहे।
✍🏻पिता ने यदि इस बालक के चित्त में संत होने के या परमात्मप्राप्ति करने के उच्च संस्कार डाले होते तो वह महत्वाकांक्षी और पुरुषार्थी बालक मात्र पंजाब का स्वामी ही नहीं बल्कि लोगों के हृदय का स्वामी बना होता। लोगों के हृदय का स्वामी तो बने या नहीं बने लेकिन अपने हृदय का स्वामी तो बनता ही। ….. और अपने हृदय का स्वामी बनने जैसा, अपने मन का स्वामी बनने जैसा बड़ा कार्य जगत में और कोई नहीं है। क्योंकि यही मन हमें नाच नचाता है, इधर उधर भटकाता है। अतः उठो जागो। अपने मन के स्वामी बन कर आत्मतत्त्वरूपी कोहीनूर धारण करने की महत्त्वाकांक्षा के साथ कूद पड़ों संसार-सागर को पार करने के लिए।
✒सोचें,समझें और जवाब दें…
🔖अपने हृदय का स्वामी बनने जैसा, अपने मन का स्वामी बनने जैसा बड़ा कार्य जगत में और कोई नहीं है। कैसे ?