महामना पं. मदन मोहन मालवीयजी जयंती : 25 दिसम्बर
दैनिक सफलता की कुंजी
महामना मदनमोहन मालवीयजी उनके विश्वविद्यालयों के युवकों से ब्राह्ममुहूर्त में उठने का आग्रह रखते थे।
उनके जीवन की एक घटना है। शीतकाल में
प्रात: आठ बजे एक ब्राह्मण युवक मौलिन्द्र उनसे मिलने आया। उसे अंदर आने की अनुमति मिली। मालवीय जी उस समय पूजा में बैठे थे। युवक ने अंदर जाकर प्रणाम किया। उसके माथे पर तिलक न देख उन्होंने इसका कारण पूछा।
युवक बोला :”अभी स्नान-संध्या बाकी है।”
मालवीय जी :”अच्छा,तो अभी तक स्नान-संध्या भी नहीं की है !”
युवक शर्म के मारे पानी-पानी हो गया।
मालवीय जी बोले :”बेटा ! तुम्हें पश्चाताप हो रहा है न ? फिर ऐसी भूल न करने का संकल्प ले लो।”
उस युवक को प्रात:काल ब्राह्ममुहूर्त में उठकर स्नान,संध्या-वंदन आदि करने की प्रेरणा देने हेतु उन्होंने उसे कुछ श्लोक पढ़ने को दिये,जिसने भगवान श्रीरामजी अपने सद्गुरु वसिष्ठजी महाराज के आश्रम में विद्याध्ययन के लिए गये तो श्रीरामजी की दिनचर्या क्या थी,इसका वर्णन था। उसे पढ़कर युवक को अपनी दिनचर्या पर बहुत ग्लानि हुई।
मालवीयजी ने उस युवक से एक महीने तक प्रतिदिन प्रात: संध्या-वंदन कर उसका पाठ करने का वचन लिया। युवक अब रामजी की तरह ब्राह्ममुहूर्त में उठकर संध्या-वंदन करने लगा और आगे चलकर उसका जीवन इतना संयमी,
ओजस्वी-तेजस्वी हुआ कि उसके साथी एवं प्राध्यापक भी उसका आदर करने लगे।
कहाँ तो देर से उठनेवाले उस युवक का वह संयम व ओज-तेज हीन जीवन और कहाँ ब्राह्ममुहूर्त में उठकर संध्या-वंदन से संयमी,
सदाचारी,सबसे सम्मानित बना उसका अब का जीवन ! आप कौन-सा जीवन पसंद करोगे ?
किसी कवि ने ठीक ही कहा है :
हर रात के पिछले पहर में,
इक दौलत लुटती रहती है ।
जो जागत है सो पावत है,
जो सोवत है सो खोवत है।।