- पुराणों में एक कथा आती है कि उपमन्यु माँ से दूध माँगता है और माँ बीजों को पीसकर पानी में घोल के उसे दे देती है कि ‘‘बेटा ! ले दूध ।” अब वह ननिहाल में गाय का दूध पीकर आया था । बोला : ‘‘माँ ! यह असली दूध नहीं है ।”
- ‘‘बेटा ! हमारे पास दूध कहाँ ? अगर दूध पीना है और खीर खानी है तो सृष्टि के जो मूल कारण हैं भगवान शिव, उनकी तू आराधना कर । वे तेरी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण करेंगे ।”
- “शिवजी की पूजा कैसे करें ?”
- ‘‘बेटा ! मन को लगाना है, ‘ॐ नमः शिवाय ।’ मंत्र जपना है ।”
- उपमन्यु हिमालय में जाकर उपासना करने लगा । जिनकी उपासना कर रहा था उनके समीप उसका चित्त पहुँचा । शिवजी ने उसकी परीक्षा हेतु नंदी को ऐरावत के रूप में बदल दिया और स्वयं इन्द्र का रूप धारण कर प्रकट हुए । उपमन्यु ने आवभगत की । इन्द्ररूपधारी शिवजी ने कहा : ‘‘जो तुझे माँगना है माँग ले, मैं तुझ पर प्रसन्न हूँ ।”
- ‘‘मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए । मेरे इष्ट तो शिवजी हैं, मुझे तो उनके ही दर्शन करने हैं ।” शिवजी के चित्त में हुआ कि इसकी थोडी और परीक्षा लें । अपने मुँह से भगवान स्वयं अपनी निंदा करने लगे ।
- उपमन्यु कहता है : ‘‘वरदान हम नहीं लेते, हम तो शिवजी की भक्ति में ही रहेंगे ।” उपमन्यु ने अघोरास्त्र से अभिमंत्रित भस्म इन्द्र पर फेंका । नंदी ने अस्त्र को पकड लिया । भगवान शिव भीतर से प्रसन्न हुए । फिर उपमन्यु ने स्वयं को भस्म करने के लिए अग्नि की धारणा की परंतु शिवजी ने उसे शांत कर दिया । शिवजी अपने असली रूप में प्रकट हुए । उपमन्यु ने क्षमा-याचना की लेकिन भगवान कहते हैं : ‘‘मैं तो तेरी परीक्षा ले रहा था । पुत्र ! मैं तुझ पर प्रसन्न हूँ ।”
- शिवजी ने उपमन्यु का हाथ पकड के माँ पार्वती के हाथ में दिया ।
- पार्वतीजी ने उपमन्यु के सिर पर अपना कृपापूर्ण वरदहस्त रखा : ‘‘बेटा ! तुझे खीर खानी थी, दूध चाहिए था । अब तुझे जो भी चाहिए होगा, तेरे लिए कुछ असम्भव नहीं है ।”
- सीख : इस कथा से यह समझना है कि जिसके जीवन में संयम, व्रत, एकाग्रता और इष्ट के प्रति दृढ निष्ठा है, उसके जीवन में असम्भव कुछ नहीं है । जिसके जीवन में दृढता नहीं है, वह चाहे अभी कितना भी ऊँचा दिख रहा हो लेकिन वह सरक जायेगा । अपने सिद्धांत की दृढता होनी चाहिए ।
- – पूज्य संत श्री आशारामजी बापू के सत्संग प्रवचन से…