Bhagwan Ke Darshan Se Bada Hai Atma Sakshatkar [Atma Gyan/ Self Realization]
(पूज्य बापू जी की ज्ञानमयी अमृतवाणी)
एक बाई राम-राम रटती थी । बड़ी अच्छी, सात्त्विक बाई थी ।
एक बार वह रोती हुई शरणानंदजी महाराज के पास गयी और बोलीः “बाबा ! मुझे रामजी के दर्शन करा दो ।”
बाबा ने कहाः “अब रामरस जग रहा है तो राम में ही विश्रांति पा । दर्शन के पचड़े में मत पड़ ।”
बोलीः “नहीं बाबा ! आप जो बोलोगे वह करूँगी लेकिन रामजी का दर्शन करा दो ।”
“ जो बोलूँ वह करेगी ?”
“ हाँ, करूँगी । ”
“ राम-राम रटना छोड़ दे । ”
अब ʹ हाँ ʹ बोल चुकी थी, वचन दे दिया था तो रामनाम रटना छोड़ दिया । दो दिन के बाद आयी और बोलीः “बाबा ! यह आपने क्या कर दिया ? मेरा सर्वस्व छीन लिया । राम-राम करने से अच्छा लगता था, वह भी अब नहीं करती हूँ, मेरा क्या होगा ?”
बाबा बोलेः “ कुछ नहीं, जब मेरे को मानती है तो मेरी बात मान । बस, मौज में रह । ”
“ लेकिन राम जी का दर्शन कराओ । ”
“ ठीक है, कल होली है । रामजी के साथ होली खेलेगी ? ”
बोलीः “ हाँ । ”
“ रामजी आ जायेंगे तो दर्शन करके क्या लेगी ? ”
“ कुछ नहीं, बस होली खेलनी है । ”
दूसरे दिन सिंदूर, कुंकुम आदि ले आयी । बाट देखते-देखते सीतारामजी प्रकट हुए, लखन भैया साथ में थे । वह देखकर दंग रह गयी, बेहोश-सी हो गयी । रामजी ने कहाः “ यह क्या कर रही है ! आँखें बद करके सो गयी, होली नहीं खेलेगी ? ”
वह उठी और रामजी के ऊपर रंग छिड़क दिया, लखन भैया के ऊपर भी छिड़का । रामजी ने, सीता जी ने उसके ऊपर छिड़का । होली खेलकर भगवान अंतर्धान हो गये ।
बाबा मिले तो पूछाः “ क्या हुआ ? ”
बोलीः “भगवान आये थे, होली खेली और चले गये लेकिन अब क्या ?”
“पगली ! मैं तो बोल रहा था न, कि वे आयें, यह करें….इस झंझट में मत पड़ । भगवान जिससे भगवान हैं, उस आत्मा को जान ले न ! उस आत्मा में संतुष्ट रह । रामजी ने वसिष्ठजी से जो ज्ञान पा लिया, वह ज्ञान तू भी पा ले । जो नित्य है, चैतन्य है, अपना-आपा है, उसी को जानने में लग जा ।”
जिस आत्मदेव को जानने से सारे पाशों से, सारे बंधनों से मुक्ति पा जाते हैं, उस आत्मदेव को जानो ।
इष्टदेव आ गये, शिवजी आ गये, विष्णुजी आ गये तो वे भी बोलेंगे कि ʹ जाओ, तुम्हें नारदजी का सत्संग मिलेगा । ʹ ( जैसा ʹ भागवत ʹ में वर्णित प्रचेताओं के प्रसंग में हुआ । ) इसलिए आत्मज्ञान, परमात्मज्ञान में आओ । परमात्म-विश्रान्ति योग, परमात्म-साक्षात्कार योग सबसे आखिरी है ।
~ ऋषि प्रसाद / जनवरी 2012