Want to Know How to Live A Happy and Successful Life, let’s understand with a motivational Story in Hindi [Safal jeevan Ke Niyam/ Rahasya]:
करोड़ीमल सेठ ने सोने की 37 ईंटें इकट्ठी कर ली । वह रोज उन्हें तिजोरी में से निकाल के अगरबत्ती करता एवं सोचता कि ‘अब 38 इंटें करनी है… ।’ उसकी आस्था थी कि पैसे बढ़ें उधर परिवार भले भूखा मरे ।
उसका बड़ा लड़का था थोड़ा चतुर । वह नकली चाबी ले आया । धंधे-रोजगार आदि में जरूरत पड़ने पर वह एक ईंट निकालता व उसकी जगह ठीक वैसी-की-वैसी सोने की पोलिश करवायी हुई पीतल की ईंट रख देता ।
सेठ को लगता कि सोने की 37 ईंटें ही हैं इस प्रकार बड़े लड़के को जब-जब पैसे की जरूरत पड़ती, तब-तब एक-एक ईंट हटाकर पॉलिश की हुई ईंट रखता जाता और उन पैसों से अपना धंधा-रोजगार बढ़ाता जाता । इस प्रकार ईंटों का उपयोग होने लगा ।
ऐसा करते-करते करोड़ीमल सेठ की मरने की घडियाँ निकट आयीं । लड़के को हुआ कि ‘मरते वक्त अगर पिताजी की आस्था उन ईंटों में ही रह गयी तो पता नहीं उनकी क्या गति हो !’ अतः वह बोला : “पिताजी ! बड़ों के आगे झूठ बोलना ठीक नहीं होता । लेकिन मैं उस समय सच बोलता तो आप ज्यादा जी नहीं पाते क्योंकि आप सोने की ईंटों में आस्था का सुख ले रहे थे । आप मुझे कहते थे कि “तिजोरी का ख्याल रखना, ईटें बढ़ाते रहना लेकिन जो आपको 37 ईटें दिखती थीं वे भी मैंने हटा दी हैं, अब बढ़ाना क्या है ।”
पिताजी : “कैसे ?”
हर 4-6 महीने में पैसे की जरूरत पड़ती थी अपने धंधे-रोजगार के लिए, भाइयों को पढ़ाने लिखाने के लिए, घर खर्च चलाने के लिए… किंतु आपको दुःख न हो इस तरह से मैंने सोने की सब ईंट बदल दी हैं । ये सब ईंटें पीतल की हैं ।”
“पीतल की है !” यह कहकर सेठ मर गया ।
पीतल की ईंटों को सोने की मानकर जो सुख उसको मिल रहा था वह विवेक का सुख नहीं वरन् आस्था का सुख था । जगत में की हुई आस्था का सुख ज्यादा टिकता नहीं है और परमात्मा में की हुई आस्था का सुख कभी खूटता नहीं है ।
सीख : जिससे दिखता है उसमें आस्था होनी चाहिए और जो दिखता है उसमें विवेक होना चाहिए ।
जगत की जितनी भी चीजें दिखती हैं वे सब पहले नहीं थी, बाद में भी नहीं रहेंगी और अभी भी नहीं की ओर ही जा रही हैं तो जो चीजें नहीं की ओर जा रही हैं उनमें आस्था करने की कोई जरूरत नहीं है ।
उनका उपयोग भले कर लो, उपयोग करने की मना नहीं है लेकिन जो उनमें आस्था करता है वह ठीक से उनका उपयोग नहीं कर सकता । इसके विपरीत, जो आस्था के बिना उनका उपयोग कर लेता है वह उनमें बँधता नहीं है ।
गुरु-सन्देश : आस्था करो तो परमात्मा में करो और जगत की चीजों का विवेक से उपयोग करके अपना काम बना लो – यही सफल जीवन जीने की कुंजी है ।
➢ लोक कल्याण सेतु, फरवरी 2019