क्या आपने देखे हैं कभी लाल रंग के आँवले (Red Color Amla) ….???
अगर नहीं ! तो इस पूरी धरती पर ये फलाफूला एक मात्र आँवले का वृक्ष आपको संत श्री आशारामजी बापू की कुटीर में ही देखने को मिल सकता है ।
पूज्य बापूजी की ये कुटीर बापूजी के अहमदाबाद आश्रम से मात्र 3 KM की दूरी पर ही स्थित है । जहाँ पूज्य श्री अपने ध्यान, एकांत-साधना, आत्म-चिंतन, स्वाध्याय और विश्वमानव के हित-चिंतन में समय व्यतीत करते हैं ।
देखने में तो आज तक आपने हरे आँवले ही देखे होंगे लेकिन ये तस्वीर जो कुछ ही दिनों पहले हमने खुद ही खींची है और इसलिए ये तस्वीर आपके सम्मुख रख रहें हैं कि धरती पर आज भी ऐसे महापुरुष विराजमान हैं जिनके संकल्प मात्र से प्रकृति अपना स्वभाव बदलने को तत्पर रहती है और नित्य अपना सिर झुकाए उन ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों के सम्मुख सेवा में संलग्न रहती है ।
घटना कुछ ऐसी घटी कि एक बार पूज्य बापूजी अपनी कुटिया में टहल रहे थे तो एक शिष्य ने कहा कि -“बापूजी !! रामकृष्ण परमहंस के शिष्यों द्वारा पूछने पर कि इन फूलों का रंग भी ज्ञानी के सामर्थ्य द्वारा परिवर्तित हो सकता है ???” तो स्वामी रामकृष्ण जी ने कहा -“क्यों नहीं ?” और संकल्प कर दिया !! अगले ही दिन उन फूलों को प्रकृति ने लाल फूलों से बदलकर सफेद फूलों में परिवर्तित कर दिया था ।।
पूज्य बापूजी ने कहा कि ब्रह्मज्ञानी पुरुषों की आज्ञा पूरी प्रकृति मानती है । ऐसी चर्चा चल ही रही थी कि टहलते-टहलते इस आँवले के पेड़ की ओर पूज्य बापूजी की दृष्टि गई और उस शिष्य से कहा कि: “आज से इसमें लाल आँवले आयेंगे और देखते ही देखते कुछ ही महीनों में हरे आँवलों में लाल-लाल धाराएँ आने लगीं। फिर सब आश्रमवासी ये देखकर दंग रह गये । समय और गुजरा तो अब तो पूरे आँवले का रंग ही लाल हो गया । सभी शिष्य पूज्य बापूजी की महानता को समझते थे और स्वीकार करते थे और कई शिष्य और सेवक आश्चर्य भी करने लगे! आज हम प्रत्यक्ष इन आँवलों को देख सकते हैं, स्पर्श कर सकते हैं, और प्रसाद रूप में खा भी सकते हैं ।
कैसा है ये ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों का संकल्प ‼
अब कुछ अनाप-शनाप बकने वाले ये बकेंगे कि यदि तुम्हारे बापू में इतना सामर्थ्य है तो वे संकल्प करके बाहर क्यों नहीं आ जाते ?
तो सुन ले भैया –
पहली बात कि ब्रह्मज्ञानी महापुरुष कभी भी अपने निजी स्वार्थ के लिए संकल्प नहीं करते।
दूसरी बात कि भरत जी को राजगद्दी और भगवान रामजी को वनवास मिलने पर भी रामजी वनगमन स्वीकार किये थे । चाहते तो मना भी कर सकते थे । लेकिन वो भगवान हैं । मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं । उन्होंने वनगमन को स्वीकार किया और स्वीकारने के पीछे उनका उद्देश्य धर्म की स्थापना और रावण जैसे राक्षसों का वध करना था । तभी तो राक्षसों को व रावण को खत्म करके ही लौटे ।
बापूजी अभी जेल गए हैं न तो उन्होंने उस बात को स्वीकारा है वरना किसी के बाप की ताकत नहीं कि बापूजी को छू भी सके ।
ये तो आज जो बापूजी के आस-पास के सिपाहियों और वकीलों को स्पर्श मिल रहा है न तो ये समझो कि वो बापूजी की कृपा पा रहें हैं…. उन लोगों का सौभाग्य है कि किसी ज्ञानी महापुरुष का उन्हें स्पर्श मिल रहा है ।
बापूजी के शिष्यों से पूछो कि आज उनको यदि गुरुजी का तनिक भी, हल्का सा भी स्पर्श मिल जाये तो उनकी क्या भावना होती है ?? वो तो बापूजी के शिष्य ही समझ सकते हैं कि कितना प्रेम और अहोभाव से उनका दिल भर जायेगा । एक पल के दर्शन के लिए ही इतना तड़पते हैं तो स्पर्श की तो बात ही निराली है ।
पूज्य बापूजी को याद करने मात्र से ही दीक्षित साधकों के जीवन में कई चमत्कारिक अनुभव होने लगते हैं । ये तो आप प्रत्येक भक्त से पूछ सकते हैं । हर एक भक्त के जीवन में मात्र एक-एक ही नहीं, हजारों अनुभव वे अपने दिल के भीतर संजोये हुए हैं । वो तो भक्त और भगवान ही जान सकते हैं ।
निगुरों की तो बात क्या करें । बेचारे 84 लाख करोड़ जन्मों के बाद तो मनुष्य जन्म नसीब होता है और उस मनुष्य जन्म को तिनके इकट्ठे करने में नष्ट कर रहे हैं आज के कलयुगी मानव !!
पता ही नहीं चल रहा उन्हें कि आखिर मनुष्य जन्म किस बात के लिए मिला है ? बस आँखें बंद करके मानो खा रहे हैं, पी रहे हैं, सो रहे हैं, जी रहे हैं और अंत में मृत्यु आयी तो सब छोड़कर “राम नाम सत” और पूछो तो क्या किया, क्या मिला जीवन भर ? बोले कि यूँ ही 4 कौड़ी कमाने में समय गवाँ दिया और अंत में पछतावा हाथ लगा ।
रोते हुए आये और रोते हुए ही चले गये ।
उन्धे लटकते आये, उन्धे पैर ही चले गये ।।
हाय मानव !!
परन्तु ऐसे समर्थ सद्गुरु हमें मिले हैं तो जन्म जन्मांतर की इस परम्परा को इसी जन्म में तोड़ना है…. गुरुवर द्वारा प्रदत्त मार्ग का अनुसरण कर मुक्ति को पाना है।
।। हरि ॐ ।।