पूज्य संत श्री आशाराम बापूजी
जीवन में कोई-न-कोई व्रत, नियम अवश्य होना चाहिए । छोटा-सा नियम भी जीवन में बड़ी मदद करता है।
एक सेठ किसी महात्मा की कथा में गया । महात्मा ने उससे कहा : ‘‘जीवन में कोई-न-कोई नियम ले लो । उस पेटू सेठ ने कहा : ‘‘बाबाजी ! और तो कोई नियम नहीं लेकिन जब तक मेरे घर के सामने रहनेवाला बूढ़ा कुम्हार जिंदा होगा, तब तक उसको देखकर ही दोपहर का भोजन करूँगा ।
बाबा : ‘‘चलो… ठीक है । इतना ही व्रत रख लो भाई !”
यह व्रत तो आसान था । बूढ़ा कुम्हार घर के सामने ही रहता था । इस व्रत को पालने में कोई श्रम भी नहीं था । दूर से देख ले तब भी काम बन जाता था । एक दिन बूढ़े का लड़का ससुराल चला गया । बूढ़ा गधे को लेकर मिट्टी लाने गया ।
सेठ घर पर भोजन करने आया तो वह बूढ़ा नहीं दिखा । कुम्हार की पत्नी से सेठ ने पूछा : ‘‘कहाँ गया बूढ़ा ?”
पत्नी : ‘‘गधे को लेकर मिट्टी लाने गये हैं ।”
‘‘कब आयेगा ?”
‘‘अभी ही गये हैं, थोड़ी देर लगेगी ।”
‘‘कहाँ गया है ?”
बुढ़िया ने जगह बता दी। सेठ गया उस जगह की ओर तो दूर से ही देखा कि वह बूढ़ा मिट्टी भर रहा है । यह देखकर सेठ वापस लौटने लगा । उसका तो केवल दूर से देखने का ही व्रत था । उसे लौटते हुए देखकर बूढ़े ने आवाज लगायी : ‘‘ऐ भाई ! इधर आ ।”
बात यह थी कि बूढ़े को मिट्टी खोदते-खोदते अशर्फियों का घड़ा मिला था और वह घड़े को व्यवस्थित ही कर रहा था कि उसी वक्त सेठ को लौटते हुए देखकर उसे लगा कि, ‘यह घड़ा देखकर जा रहा है पुलिस को बताने । सरकार में चला जाय इससे अच्छा तो आधा इसका आधा मेरा… यह सोचकर उसने सेठ को आवाज लगायी थी । कहानी कहती है कि सेठ ने एक बूढ़े कुम्हार को देखकर दोपहर के भोजन का जरा-सा व्रत लिया तो अशर्फियों का आधा घड़ा उसे मिल गया । अगर बाबाजी के कहे अनुसार वह कोई व्रत लेता तो बाबाजी के पूरे अनुभव का घड़ा भी उसके हृदय में छलकने लग जाता ।
सीख :
जिसके जीवन में नियम होता है, वही महान बनता है इसलिए हमें छोटा-सा भी क्यों ना हो पर नियम अपने जीवन में लेना ही चाहिए ।