ईश्वर की सच्ची भक्ति, प्रीति गुरुज्ञान का सहज में अधिकारी बना देती है… यह संदेश देती हुई कहानी बच्चों को जरूर सुनाएँ ।
गुजरात में नारायण प्रसाद नाम के एक वकील रहते थे । वकील होने के बावजूद भी उन्हें भगवान की भक्ति अच्छी लगती थी । नदी में स्नान करके गायत्री मंत्र का जप करते, फिर कोर्ट कचहरी का काम करते । कोर्ट-कचहरी में जाकर खड़े हो जाते तो कैसा भी केस हो, निर्दोष व्यक्ति को तो हँसते-हँसते छुड़ा देते थे,उनकी बुद्धि ऐसी विलक्षण थी ।
एक बार एक आदमी को किसी ने झूठे आरोप में फँसा दिया था । निचली कोर्ट ने उसको मृत्युदंड की सजा सुना दी । अब वह केस नारायण प्रसाद के पास आया ।
ये भाई तो नदी पर स्नान करने गये और स्नान कर वहीं गायत्री मंत्र का जप करने बैठ गये । जप करते-करते ध्यानस्थ हो गये । ध्यान से उठे तो ऐसा लगा कि शाम के पाँच बज गये । ध्यान से उठे तो सोचा कि ʹआज तो महत्त्वपूर्ण केस था । मृत्युदंड मिले हुए अपराधी का आज आखिरी फैसले का दिन था। पैरवी करके आखिरी फैसला करना था । यह क्या हो गया !ʹ
जल्दी-जल्दी घर पहुँचे । देखा तो उनके मुवक्किल के परिवार वाले भी बधाई दे रहे हैं, दूसरे वकील भी बधाई देने आये हैं । उनका अपना सहायक वकील और मुंशी सब धन्यवाद देने आये हैं । बोलने लगे : “नारायण प्रसाद जी ! आपने तो गजब कर दिया ! उस मृत्युदंड वाले को आपने हँसते-खेलते ऐसे छुड़ा दिया कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे । हम आपको बधाई देते हैं ।”
नारायण प्रसाद ने गम्भीरता से उनका धन्यवाद स्वीकार कर लिया। उनको तो पता था ʹमैं कोर्ट में गया ही नहीं हूँ ।ʹ
संध्या करके जो कुछ जलपान करना था किया, थोड़ा टहलकर फिर शय़नखंड में गये। सोचते रहे कि ʹभगवान ने मेरा रूप कैसे बना लिया होगा ?ʹ इसके विषय में सूक्ष्म चिंतन किया ।
विचार करते-करते नारायण प्रसाद को हुआ कि ʹमुझे आज केस के लिए कोर्ट में जाना था, मुझे पता था और मुझे पता रहे उसके पहले मेरे अंतर्यामी जानते थे । मन में जो भाव आते हैं, उन सारे भावों को समझने वाले भावग्रही जनार्दनः हैं । जहाँ से भाव उठता है वहाँ तो वे ठाकुरजी बैठे हैं ।
ʹथोड़ा ध्यान करके जाऊँगाʹ, यह मेरा संकल्प मेरे अंतर्यामी ने जान लिया । वह मेरा अंतरात्मा ही नाराय़ण प्रसाद वकील बन के, केस जिताकर मुझे यश देता है । यह प्रभु की क्या लीला है ! यह सब क्या व्यवस्था है !ʹ – यह विचार करते-करते सो गये ।
थोड़ी नींद ली, इतने में उनके कानों में ʹनारायण….. नारायण…. नारायण…. ʹ की आवाज सुनायी दी और वे अचानक उठकर बैठ गये । उन्हें लगा कि ʹयह आवाज तो मेरे घर के प्रवेशद्वार से अंदर आ रही है ।ʹ कौन होंगे ?
दरवाजा खोला तो देखा कि एक लँगोटधारी महापुरुष खड़े हैं । वे आदेश के स्वर में बोले : “अरे नारायण ! कब तक सोता रहेगा, खड़ा हो जा।” वे उन महापुरुष के नजदीक आकर खड़े हो गये । वे घर से बाहर निकले । नारायण प्रसाद उनके पीछे-पीछे चलने लगे । कुछ दूर जाने पर बोले : “अरे, जेब में क्या रखा है ? लोहे का टुकड़ा जेब में रखा है क्या ?”
देखा कि जेब में तिजोरी की चाबियाँ हैं । उन्होंने चाबियाँ वहीं रास्ते में फेंक दीं । आगे बाबा,और पीछे नारायण प्रसाद । जाते-जाते एकांत में नारायण प्रसाद को बाबाजी ने ज्ञान दिया कि ʹवे परमात्मा विभु-व्याप्त हैं । वे यदि अंतरात्मा रूप में नहीं मिले तो बाहर नहीं मिलते हैं । यह उन्हीं आत्मदेव की लीला है । वे ही आत्मदेव तुम्हारा रूप बनाकर केस जीतकर आये हैं । उन परमेश्वर को पा लो, बाकी सब झंझट है ।ʹ
लँगोटधारी बाबा थे नित्यानंद महाराज । एक तो वज्रेश्वरी के मुक्तानंद जी के गुरु नित्यानंद जी हो गये, ये दूसरे थे । इंदौर से करीब 70 किलोमीटर दूर धार में इनका आश्रम है, मैं देखकर आया हूँ ।
नित्यानंद जी बड़े बाप जी के नाम से प्रसिद्ध थे । नित्यानंद बाबा नारायण प्रसाद को इतना स्नेह करने लगे कि लोग नारायण प्रसाद को छोटे बाप जी बोलने लगे ।
छोटे बापजी मानते थे कि ʹवास्तव में तत्त्वरूप से गुरु का आत्मा नित्य, व्यापक, विभु, चैतन्य है और मैं भी वही हूँ।ʹ बड़े बाप जी भी मानते थे कि ʹनारायण प्रसाद का शरीर और मेरा शरीर भिन्न दिखता है लेकिन चिदानंद आकाश दोनों में एकस्वरूप है ।ʹ
एक बार उत्तराखंड से कुछ संत नित्यानंद महाराज के दर्शन-सत्संग के लिए धार शहर में स्थित आश्रम में आये थे । नारायण प्रसाद आश्रम की सारी व्यवस्था सँभालते थे । उन्हें लगा कि बड़े बाप जी सबसे ज्यादा महत्त्व नारायण प्रसाद को देते हैं । विदाई के समय नित्यानंद बाबा ने कहा : “चलो, संत लोग आज विदाई ले रहे हैं तो हम आपके साथ बैठकर फोटो निकलवायेंगे ।” आग्रह किया तो सब संत राजी हो गये ।
फोटोग्राफर ने फोटो लिये । जब फोटो खींचे गये उसमें नारायण प्रसाद को शामिल नहीं किया । लेकिन जब फोटो को प्रिंट किया तो नारायण प्रसाद का फोटो बाबा के हृदय में दिखायी दे रहा था ! फोटोग्राफर दंग रह गया कि ʹयह कैसे ! किसी के हृदय में किसी का फोटो आ जाये !”
बोले : “बाबा ! यह क्या है ?”
बड़े बाप जी बोले : “मैं क्या करूँ ? इसको कितना दूर रखूँ, यह तो मेरे हृदय में समा के बैठ गया है ।” तो मन में जिसकी तीव्र भावना होती है, वह हृदय में भी दिखायी देता है । नारायण प्रसाद की तीव्र प्रीति, भावना थी तो फोटो में बाबा जी के हृदय में नारायण प्रसाद आ गये ।
हमारे कई साधकों के हृदय में ॐ कार मंत्र की, हरि ॐ मंत्र की महत्ता है तो बैंगन काटते हैं तो ॐकार दिखता है, रोटी बनाते हैं तो उस पर ॐकार उभरता है । आपकी भगवान के प्रति जैसी तीव्र भावना होती है वैसा उसका सीधा असर पड़ता है और दिखायी भी देता है ।
नित्यानंद बाबा नारायण प्रसाद से बोलते थे कि ʹनारायण भी तत्त्वरूप से आत्मदेव हैंʹ तो उन्हें हृदय में आकृतिवाले नारायण प्रसाद दिखायी दिये
।
बाबा के जीवन में बहुत सारी आध्यात्मिक चमत्कारिक घटनाएँ घटीं लेकिन बड़े-में-बड़ा चमत्कार यह है कि बाबा इन सब चमत्कारों को ऐहिक मानते थे और सारे चमत्कार जिस सत्ता से होते हैं, उस आत्मा-परमात्मा को ʹमैंʹ रूप में जानते थे ।
~ ध्यान-भजन करने से आपका पेशा बिगड़ता नहीं बल्कि आपकी बुद्धि में भगवान की विलक्षण लक्षण वाली शक्ति आती है । आप लोग भी इन महापुरुषों की जीवनलीलाओं से, घटनाओँ से अपने जीवन में यह दृढ़ करो कि-
हरि व्यापक सर्वत्र समाना ।
प्रेम में प्रगट होहिं मैं जाना ।।
(श्रीरामचरित. बा.कां. 184.3)
भगवान व्यापक हैं उनके लिए जिनके हृदय में प्रीति होती है,उनके हृदय में वे प्रकट होते हैं ।
– पूज्य बापूजी
➢ ऋषि प्रसाद, मई 2012