संतो की सहिष्णुता – Sant Swami Teoonram Ji [स्वामी टेऊँराम]
सिंधी जगत के महान तपोनिष्ठ ब्रह्मज्ञानी संत श्री टेऊँराम जी ने जब अपने चारों ओर समाज में व्याप्त भ्रष्टाचारों को हटाने का प्रयत्न किया, तब अनेकानेक लोग आत्म कल्याण के लिए सेवा में आने लगे
सिंधी जगत के महान तपोनिष्ठ ब्रह्मज्ञानी संत श्री टेऊँराम जी ने जब अपने चारों ओर समाज में व्याप्त भ्रष्टाचारों को हटाने का प्रयत्न किया, तब अनेकानेक लोग आत्म कल्याण के लिए सेवा में आने लगे
“मैं एक ही जप करता हूँ, ʹनाथ केवल एक है, एकनाथ सत्य है। नाथ केवल….. ʹ मैं आपके नाम का ही जप करता रहता हूँ।” एकनाथ जी के आश्रम में गावबा नाम का उनका एक
राजस्थान में जयपुर के पास एक इलाका है – लदाणा। पहले वह एक छोटी सी रियासत थी। उसका राजा एक बार शाम के समय बैठा हुआ था। उसका एक मुसलमान नौकर किसी काम से वहाँ
भर्तृहरि महाराज को जब परमात्मा का साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने कलम उठायी और 100 श्लोकों वाला एक शतक लिखा-“वैराग्य शतक”। उसका अनुवाद किया पंडित हरदयाल जी ने। पंडित हरदयाल संस्कृत शास्त्रों का इतना बढ़िया काव्यात्मक
नरेंद्र नाम का एक सात वर्ष का लड़का था, हमेशा सच बोलना उसके जीवन का आदर्श था। एक बार जब शिक्षक कक्षा में पढ़ा रहे थे कुछ लड़के आपस में बातें कर रहे थे…. शिक्षक
एक बार संत कबीर जी ने एक किसान से कहाः “तुम सत्संग में आया करो।” किसान बोलाः “हाँ महाराज ! मेरे लड़के की सगाई हो गयी है, शादी हो जाये फिर आऊँगा।” लड़के की शादी
महाभारत (शांति पर्व :२७.३१) में आता है :‘आलस्य सुखरूप प्रतीत होता है पर उसका अंत दुःख है तथा कार्यदक्षता दुःखरूप प्रतीत होती है पर उससे सुख का उदय होता है । इसके आलावा ऐश्वर्य, लक्ष्मी,
संवत् १८१५ में डूँगरपुर (प्राचीन गिरिपुर) गाँव (राज.) में एक कन्या का जन्म हुआ, नाम रखा गया गवरी। ५-६ साल की उम्र में ही उसका विवाह कर दिया गया। विवाह के एक वर्ष बाद ही
ब्रह्मलीन मातुश्री श्री माँ महंगीबा जी का महानिर्वाण दिवस : 1 नवंबर पूजनीया मातुश्री माँ महँगीबा जी ( अम्मा ) गुरुभक्ति व गुरुनिष्ठा के महान इतिहास की एक प्रेरणादायी स्वर्णिम अध्याय हैं। पूज्य बापूजी में
…वही बेटा मठ के चार दाने भी नहीं खाने देता और गलती से खा लिया है तो मुण्डी माँग रहा है बाप की । एक बार देवर्षि नारद अपने शिष्य तुम्बरू के साथ कहीं जा