जीवन की सार्थकता
राजा विक्रमादित्य अत्यंत पराक्रमी, न्यायप्रिय, प्रजाहितैषी, ईमानदार एवं दयालु शासक थे । उनकी प्रजा उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना करते नहीं थकती थी। एक बार वे अपने गुरु के दर्शन करने उनके आश्रम
राजा विक्रमादित्य अत्यंत पराक्रमी, न्यायप्रिय, प्रजाहितैषी, ईमानदार एवं दयालु शासक थे । उनकी प्रजा उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना करते नहीं थकती थी। एक बार वे अपने गुरु के दर्शन करने उनके आश्रम
एक बार मदालसा के छोटे पुत्र ने अपनी माँ से प्रश्न कियाः- “हे कल्याणमयी पुण्यशीला माता ! मेरे सभी बड़े भाइयों को आपने उपदेश देकर जंगल में घोर तपस्या करने एवं कठिन जीवन बिताने के
एक गरीब परिवार में एक बालक ने जन्म लिया उसके माता-पिता ने उसे अक्षर ज्ञान के साथ संस्कृत-ज्ञान तथा धर्मग्रंथों के सुंदर संस्कार भी दिये । जब बालक 5 वर्ष का हुआ, तब पिताजी उसे
ईश्वर की सच्ची भक्ति, प्रीति गुरुज्ञान का सहज में अधिकारी बना देती है… यह संदेश देती हुई कहानी बच्चों को जरूर सुनाएँ । गुजरात में नारायण प्रसाद नाम के एक वकील रहते थे । वकील
न्यायाधीश गुरुदास सिंह, उच्च न्यायालय में वादी-प्रतिवादी को सुन रहे थे । इतने में एक वृद्धा जीर्ण-शीर्ण वस्त्र पहने न्यायालय के द्वार पर पहुँची । गंगा-स्नान करके आयी उस वृद्धा के वस्त्र गीले थे ।
दैव उन्हीं की सहायता करते हैं, जो दृढ़ पुरुषार्थ करते हैं । -पूज्य संत श्री आशारामजी बापू आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता सभी कार्य में सफलता का साधन हैं । दूसरे का सहारा लेने वाले व्यक्ति हर
सत्संग-प्रसंग पर एक जिज्ञासु ने पूज्य बापू जी से प्रश्न कियाः “स्वामी जी ! कृपा करके बतायें कि हमें अभ्यास में रूचि क्यों नहीं होती ?” पूज्य स्वामी जीः “बाबा ! अभ्यास में तब मजा
एक समय की बात है, आत्मानंद की मस्ती में रमण करने वाले भगवान बुद्ध जेतवन में ठहरे हुए थे । एक सुबह कौशल नरेश प्रसेनजित बुद्ध के पास आकर बैठ गए । नींद उन्हें अभी
समय का महत्व बताती हुई प्रेरणादायी आज की कहानी बच्चों को अवश्य सुनाएँ। ~गुरु-सन्देश~“विद्यार्थीकाल सद्गुणों के उपार्जन, चरित्र-निर्माण व सुषुप्त योग्यताओं को विकसित करने का सुनहरा अवसर है । यदि यह अवसर खो
बालक गणेश प्रसाद पाँचवी कक्षा में पढ़ता था । गणित में अनुत्तीर्ण होने पर शिक्षक ने उसे ‘फिसड्डी’ छात्र की उपाधि दी। गणेश के स्वाभिमान को गहरा धक्का लगा उसने गुरु जी के बताए अनुसार